कुछेक दिन पहले हमारे मित्र सुनील उर्फ साहिर की शादी हुई। वह रुद्रप्रयाग के रहने वाले हैं और उनका विवाह हुआ गुप्तकाशी में..हम उनकी शादी में शरीक होने मय कई मित्रों के, वहां तशरीफ ले गए, रास्ते में हमारे साथ जो घटा उसका विवरण अगली पोस्ट में, फिलहाल तो आप नवविवाहित दंपत्ति को शुभकामनाएं दें। तस्वीर चस्पां कर रहा हूं..
Monday, May 31, 2010
Tuesday, May 18, 2010
उड़ीसा में गुस्ताख- तस्वीरों में भीतरकनिका
गुस्ताख उड़ीसा गया था। कवरेज के सिलसिले में। वहां मैं भीतरकनिका नैशनल पार्क के भीतर गया था। उसकी तस्वीरों का लुत्फ उठाइए। भीतरकनिका नैशनल पार्क घड़ियालों के लिए मशहूर है। वे अक्सर शाम को किनारे निकलते थे।
भीतरकनिका में सूर्योदय और सूर्यास्त बेहद मनोरम है। अगर आप जंगल के अनछुए जीवन का आनंद लेना चाहते हैं तो वहां गुप्ती के इंस्पेक्शन बंगलो में रुक सकते हैं। यह भुवनेश्वर से महज 140 किलोमीटर उत्तर केंद्रापारा जिले में पड़ता है।
आप चाहे तो एक बार वहां घूम कर आ सकते हैं। उम्मीद है कि अनछुए कु
दरती सौंदर्य को चाहनेवाले वहां जाकर निराश नहीं होंगे।
Sunday, May 9, 2010
हम फाइनल-वाइनल के चक्कर में हीं पड़ते
गुस्ताख का मूड खराब हो गया था। दफ्तर में किसिम-किसिम के लोगों से मगजमारी करने के बाद मैच देखने बैठो। घरवालों का सारा गुबार झेलों और फिर भारत की क्रिकेट टीम हैकि ....बस।
कक्का जी को गुस्ताख का ऐसे बिदकना नहीं सुहाया।
अरे बचवा, थके मांदे खिलाड़ियों से ज्यादा उम्मीद ही रखना बेकार है। बेचारे आईपीएल में खेल-खेल के थक गए थे...थके हुए शहसवार तो धराशायी ही होते हैं ना...
लेकिन कक्का विश्व कप में तो वे भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं ना
लेकिन बचवा आईपीएस में वह पैसे का प्रतिनिधित्व करते हैं। देखो ना हमारे आईपीएल के तमाम विजेता ऑस्ट्रेलियाई बाउंसरों और वेस्ट इंडियन तेजी के सामने मुंह बा दिए।
और यह भी सत्य है कि हमारे खिलाड़ी खेल में भरोसा रखते हैं जीत में नहीं। खेल भावना से खेलते हैं, जीत से ज्यादा जरुरी है खेल का होना। इसलिए तो हम भारतीय फाइनल वाइनल में भरोसा नहीं रखते।
सुपर आठ तक पहुंच गए यह कम है क्या,,,यहां एक मैच बचा है उसको निपटा कर घर चलेंगे। बहुत सारे विज्ञापनों की शूटिंग बची है उसे पूरा करना है।
कक्का जी को गुस्ताख का ऐसे बिदकना नहीं सुहाया।
अरे बचवा, थके मांदे खिलाड़ियों से ज्यादा उम्मीद ही रखना बेकार है। बेचारे आईपीएल में खेल-खेल के थक गए थे...थके हुए शहसवार तो धराशायी ही होते हैं ना...
लेकिन कक्का विश्व कप में तो वे भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं ना
लेकिन बचवा आईपीएस में वह पैसे का प्रतिनिधित्व करते हैं। देखो ना हमारे आईपीएल के तमाम विजेता ऑस्ट्रेलियाई बाउंसरों और वेस्ट इंडियन तेजी के सामने मुंह बा दिए।
और यह भी सत्य है कि हमारे खिलाड़ी खेल में भरोसा रखते हैं जीत में नहीं। खेल भावना से खेलते हैं, जीत से ज्यादा जरुरी है खेल का होना। इसलिए तो हम भारतीय फाइनल वाइनल में भरोसा नहीं रखते।
सुपर आठ तक पहुंच गए यह कम है क्या,,,यहां एक मैच बचा है उसको निपटा कर घर चलेंगे। बहुत सारे विज्ञापनों की शूटिंग बची है उसे पूरा करना है।
Thursday, May 6, 2010
ब्राह्मण पिता का पत्र विद्रोहिणी पुत्री के नाम
कभी बेहद निजी रहा यह खत तकरीबन हर पत्रकार के पास है। पिता का पत्र बेटी के नाम हो तो शायद उतना गोपन होता नहीं, लेकिन सवाल जीवन का हो तो मुमकिन है गोपन हो भी जाए।
पुत्री ने परिवार के खिलाफ जाकर विजातीय विवाह करने की ठानी, तो पिता ने समझाने की कोशिश की। प्रसंग का अंत सबसे पहले लोगों के सामने आया..किसी प्रेम कहानी का ऐसा दुखद अंत विचलित ही करने वाला होता है। लोग पूछने लगे तुम्हारे झारखंड में भी खाप पंचायतें चलती हैं क्या..।
कौन जाने मृत्यु कैसे हुई निरुपमा की..बिसरे की रिपोर्ट गायब है। पोस्टमॉर्टम मे घपला है, बिजली से मौत हुई या इज्जत डूब जाने के झटके से..एक रहस्य तो है। यह भी रहस्य ही है कि जाति की गांठ ज्यादा गहरी निकली कि कुछ और। कहीं ऐसा तो नहीं कि मासूम से दिखने वाले प्रेमी ने ही डिच कर दिया हो निरुपमा को..। और लड़की खुदकुशी करने पर विवश कर दी गई हो। यह मौत एक लड़की की नहीं एक विश्वास की ,एक भरोसे की है।
यह हमारे ज़माने में प्रेम की मौत है.. चाहे उसे जिसने मारा हो, पैदा करने वाले मां-बाप ने या फिर मुहब्बत करने वाले ने...शक तो यही है।
बहरहाल, उसके पिता धर्मेंद्र पाठक ने निरुपमा को धर्म की सच्ची राह पर चलाने के लिए अच्छी हिंदी में एक भावनात्मक पत्र लिखा था। अक्षरशः पेश कर रहा हूं, यह भावनात्मक रुप से ब्लैकमेल करने का बेहतरीन उदाहरण है
निरुपमा,
ईश्वर तुम्हें सद्बुद्धि दे।
तुम्हारा नाम मैंने निरुपमा रखा, जिसका अर्थ है जिसकी कोई उपमा नहीं दी जा सके और यह शब्द शंकराचार्य जी के देव्यापराधक्षमां स्तोत्र से मैंने लिया था। वाक्य है- मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे।
तुमने जो कदम उठाया है, अथवा उठाने जा रही हो इस संबंध में मैं कहूंगा कि सनातन धर्म के विपरीत कदम है। आदमी जब धर्म के अनुरुप आचरण करता है तो धर्म उसकी रक्षा करता है और जब धर्म के प्रतिकूल आचरण करता है तो धर्म उसका विनाश कर देता है।
भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि वयस्क लोग अपनी मर्जी से विवाह के बंधन में बंध सकते हैं लेकिन हमारे संविधान को बने मात्र 60 वर्ष हुए हैं इसके विपरीत हमारा धर्म सनातन कितना पुराना है यह कोई बता नहीं सकता। अपने धर्म एवं संस्कृति के अनुसार उच्च वर्ग की कन्या निम्न वर्ग के वर से ब्याही नही जा सकती है, इसका प्रभाव हमेशा अनिष्टकर होता है।
थोड़ी देर तक यह सब तो अच्छा लगता है लेकिन बाद में समाज, परिवार, के ताने जब सुनने पड़ते हैं को पश्चाताप के अलावा कुछ नही मिलता है। इस तरह के कदम से लड़का लड़की दोनों के परिवार दुखी होते है। मां-बाप, भाई बहन जब दुखी होते हैं तो उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करने वाला जीवन में कभी सुखी नहीं होगा। ये सब चार दिन की चादंनी फिर अंधेरी रात वाली कहावत के समान है।
तुमको पढाने में तथा पालन-पोषण में तथा संस्कार देने में हम लोगों ने कोई कंजूसी नहीं की। और जब तुम वयस्क हुईं, पढ़-लिखकर स्नातक हुईं, एवं स्नाकोत्तर हुईं, तो तुम जैसी पढी-लिखी कुलीन लड़की को इस तरह का आचरण शोभा देता है यह तुम स्वयं विचार करो।
अभी तुम सिलेबस की किताब पडी हो, एवं जीवन का अनुभाव जो कि उम्र के साथ मिलता है अभी नहीं के बराबर है। मां-बाप अपने बच्चों के लिए अच्छा से अच्छा खानपान शिक्षा एवं संस्कार देना चाहते हैं। अतः बच्चों का भी कर्तव्य बनता है कि उसके अनुकूल आचरण करें। क्षणिक चमक-दमक के फेर में मानव जन्म जो कि अत्यंत दुर्ळभ है उसको बर्बाद न करे।
लड़के के मां-बाप भी ऐसा ही सोचते होंगे। उसे भी मां-बाप की आज्ञा काअनुसरण करना चाहिए। यदि सुबह का भूला हुआशाम को वापस आ जाए तो से भूला हुआ नहीं कहते।आदमी को जिंदा रहने के लिए समाज एवं परिवार की आवश्यकता होती है। अतः ऐसा काम करने से हमेशा बचना चाहिए, जिसमें बदनामी मिलती हो।
मन बहुत चंचल होता है उसे मजबूत एवं दृढ़ बनाकर काबू में रखना होता है। आज के फिल्मी एवं टीवी वातावरण जो कि वास्तविक नहीं होता है उससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। मां-बाप की गलती का फल आनेवाली पीढियों को भुगतना होता है। उसे वर्तमान एवं भविष्य में होने वाले परिवार सभी गालियां देते हैं।
भावना में बहकर कोई काम नहीं करना चाहिए। इस पत्र को दोनों आदमी पढ़कर संकल्प ले लो,कि गलती सुधार करेंगे और मां-बाप की इच्छा के प्रतिकूल कोई काम नहीं करेंगे। मां-बाप अपने बच्चों की भूल को माफ कर देंगे। मां-बाप अपने बेटे-बेटियों को अपने से दूर भेजते हैं ताकि वे हमारे नाम को उज्जवल करें ना कि मलिन।
आशा है इन सद्विचारों से प्रेरणा मिलेगी एवं भूल सुधारने में मदद भी।
वर्तमान में तुम्हारी राहु की महादशा चल रही है जो तुम्हारे विवेक और बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है। इसमें कोई भी धर्मविरुद्ध काम तुम्हें पूरी तरह चौपट कर देगा.
धर्मेंद्र पाठक
पुत्री ने परिवार के खिलाफ जाकर विजातीय विवाह करने की ठानी, तो पिता ने समझाने की कोशिश की। प्रसंग का अंत सबसे पहले लोगों के सामने आया..किसी प्रेम कहानी का ऐसा दुखद अंत विचलित ही करने वाला होता है। लोग पूछने लगे तुम्हारे झारखंड में भी खाप पंचायतें चलती हैं क्या..।
कौन जाने मृत्यु कैसे हुई निरुपमा की..बिसरे की रिपोर्ट गायब है। पोस्टमॉर्टम मे घपला है, बिजली से मौत हुई या इज्जत डूब जाने के झटके से..एक रहस्य तो है। यह भी रहस्य ही है कि जाति की गांठ ज्यादा गहरी निकली कि कुछ और। कहीं ऐसा तो नहीं कि मासूम से दिखने वाले प्रेमी ने ही डिच कर दिया हो निरुपमा को..। और लड़की खुदकुशी करने पर विवश कर दी गई हो। यह मौत एक लड़की की नहीं एक विश्वास की ,एक भरोसे की है।
यह हमारे ज़माने में प्रेम की मौत है.. चाहे उसे जिसने मारा हो, पैदा करने वाले मां-बाप ने या फिर मुहब्बत करने वाले ने...शक तो यही है।
बहरहाल, उसके पिता धर्मेंद्र पाठक ने निरुपमा को धर्म की सच्ची राह पर चलाने के लिए अच्छी हिंदी में एक भावनात्मक पत्र लिखा था। अक्षरशः पेश कर रहा हूं, यह भावनात्मक रुप से ब्लैकमेल करने का बेहतरीन उदाहरण है
निरुपमा,
ईश्वर तुम्हें सद्बुद्धि दे।
तुम्हारा नाम मैंने निरुपमा रखा, जिसका अर्थ है जिसकी कोई उपमा नहीं दी जा सके और यह शब्द शंकराचार्य जी के देव्यापराधक्षमां स्तोत्र से मैंने लिया था। वाक्य है- मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे।
तुमने जो कदम उठाया है, अथवा उठाने जा रही हो इस संबंध में मैं कहूंगा कि सनातन धर्म के विपरीत कदम है। आदमी जब धर्म के अनुरुप आचरण करता है तो धर्म उसकी रक्षा करता है और जब धर्म के प्रतिकूल आचरण करता है तो धर्म उसका विनाश कर देता है।
भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि वयस्क लोग अपनी मर्जी से विवाह के बंधन में बंध सकते हैं लेकिन हमारे संविधान को बने मात्र 60 वर्ष हुए हैं इसके विपरीत हमारा धर्म सनातन कितना पुराना है यह कोई बता नहीं सकता। अपने धर्म एवं संस्कृति के अनुसार उच्च वर्ग की कन्या निम्न वर्ग के वर से ब्याही नही जा सकती है, इसका प्रभाव हमेशा अनिष्टकर होता है।
थोड़ी देर तक यह सब तो अच्छा लगता है लेकिन बाद में समाज, परिवार, के ताने जब सुनने पड़ते हैं को पश्चाताप के अलावा कुछ नही मिलता है। इस तरह के कदम से लड़का लड़की दोनों के परिवार दुखी होते है। मां-बाप, भाई बहन जब दुखी होते हैं तो उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करने वाला जीवन में कभी सुखी नहीं होगा। ये सब चार दिन की चादंनी फिर अंधेरी रात वाली कहावत के समान है।
तुमको पढाने में तथा पालन-पोषण में तथा संस्कार देने में हम लोगों ने कोई कंजूसी नहीं की। और जब तुम वयस्क हुईं, पढ़-लिखकर स्नातक हुईं, एवं स्नाकोत्तर हुईं, तो तुम जैसी पढी-लिखी कुलीन लड़की को इस तरह का आचरण शोभा देता है यह तुम स्वयं विचार करो।
अभी तुम सिलेबस की किताब पडी हो, एवं जीवन का अनुभाव जो कि उम्र के साथ मिलता है अभी नहीं के बराबर है। मां-बाप अपने बच्चों के लिए अच्छा से अच्छा खानपान शिक्षा एवं संस्कार देना चाहते हैं। अतः बच्चों का भी कर्तव्य बनता है कि उसके अनुकूल आचरण करें। क्षणिक चमक-दमक के फेर में मानव जन्म जो कि अत्यंत दुर्ळभ है उसको बर्बाद न करे।
लड़के के मां-बाप भी ऐसा ही सोचते होंगे। उसे भी मां-बाप की आज्ञा काअनुसरण करना चाहिए। यदि सुबह का भूला हुआशाम को वापस आ जाए तो से भूला हुआ नहीं कहते।आदमी को जिंदा रहने के लिए समाज एवं परिवार की आवश्यकता होती है। अतः ऐसा काम करने से हमेशा बचना चाहिए, जिसमें बदनामी मिलती हो।
मन बहुत चंचल होता है उसे मजबूत एवं दृढ़ बनाकर काबू में रखना होता है। आज के फिल्मी एवं टीवी वातावरण जो कि वास्तविक नहीं होता है उससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। मां-बाप की गलती का फल आनेवाली पीढियों को भुगतना होता है। उसे वर्तमान एवं भविष्य में होने वाले परिवार सभी गालियां देते हैं।
भावना में बहकर कोई काम नहीं करना चाहिए। इस पत्र को दोनों आदमी पढ़कर संकल्प ले लो,कि गलती सुधार करेंगे और मां-बाप की इच्छा के प्रतिकूल कोई काम नहीं करेंगे। मां-बाप अपने बच्चों की भूल को माफ कर देंगे। मां-बाप अपने बेटे-बेटियों को अपने से दूर भेजते हैं ताकि वे हमारे नाम को उज्जवल करें ना कि मलिन।
आशा है इन सद्विचारों से प्रेरणा मिलेगी एवं भूल सुधारने में मदद भी।
वर्तमान में तुम्हारी राहु की महादशा चल रही है जो तुम्हारे विवेक और बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया है। इसमें कोई भी धर्मविरुद्ध काम तुम्हें पूरी तरह चौपट कर देगा.
धर्मेंद्र पाठक