अंधेरा घिर चुका था। बिहार की सड़के काफी बदनाम रही हैं...एक नेता तो हेमा मालिनी के गालों जैसी सड़के बनवाने के चक्कर में अपनी भद पिटवा चुके थे। लेकिन, सड़क अब उतनी भी बुरी नहीं है।
अभिजीत को लिटाए, मृगांका उसके चेहरे को एकटक देखती जा रही थी। बढी हुई बेतरतीब खिचड़ी दाढ़ी और बाल...गाल भी पिचक से गए थे। कार सरपट भागी जा रही थी।
...लेकिन अचानक गाड़ी चीख मारती रूक गई थी।
सूनी सड़क पर, घिरता अंधेरा। मृगांका ने बिहार के गुंडा-राज के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। दो गाड़ियों ने सड़क पर आड़े-तिरछे होकर रास्ता रोक रखा था। पांच-छह लोग गाड़ी से उतर आए थे।
एक आवाज़ आई, यही गाड़ी है।
...इस गाड़ी में अभिजीत जी हैं? एक सरगना से दिखते शख्स ने आवाज़ लगाई।
कार में मौजूद पापा समेत प्रशांत तक को सांप सूंघ गया। ये लोग अभिजीत को कैसे जानते हैं। मृगांका को लगा
उसे ही उतरना होगा।
सवाल पूछने की बारी अब मृगांका की थी, आप लोग...?
हमारी मत पूछिए, पहले बताएं कि आप की कार में अभिजीत हैं?
हैं बिलकुल हैं...
वो आपके साथ नहीं जाएंगे..
ऐसे कैसे नहीं जाएंगे...जरा भी देर हुई तो उनकी जान को खतरा होगा..बोलते-बोलते गला रूंध गया मृगांका का। चलते चलते सरगना जैसा वो शख्स कार की पिछली सीट तक आ गया। मृगांका को आशंका होने लगी..ये है कौन..लगता तो किसी गिरोह का अगुआ है. अभिजीत को जानता कैसे है और उसे खोज क्यों रहा है..?
आपलोगों को अभिजीत से क्या काम है...? मृगांका ने सशंकित होकर पूछा।
सरगना जैसे उस शख्स ने तबतक अभिजीत को उस तरह लेटे देख लिया था। पूछा, क्या हुआ है इनको...?
उतना बताने का वक्त नहीं है हमारे पास...मृगांका के हाथ स्वतः जुड़ से गए। वह शख्स मृगांका के पास आया, आप मृगांका जी हैं क्या?
जी...
ओह, ठीक है आप अभिजीत जी को ले जाएं, बाकी बातें हम बाद में कर लेंगे...उसने जल्दी से अपना फोन नंबर एक कागज पर लिखकर मृगांका को दे दिया। कार फिर से सरपट दौड़ने लगी थी। उन दोनों गाड़ियों में से एक वापस लौट गई थी और सरगना जैसे उस शख्स की गाड़ी पीछे चल रही थी।
शाम से आंख में नमी सी है...
रात गुजर चुकी थी, लेकिन अंधेरा बाकी था। देर रात पटना के अस्पताल में अभिजीत को भर्ती करा दिया गया था। आईसीयू में। डॉक्टरों में गहन चेकअप के बाद कहा था, कल सुबह तक अगर ऐसा ही रहा...तो अभिजीत बचा लिया जाएगा। स्थिति में थोड़ी भी गिरावट...मृगांका सोच भी नहीं पा रही थी।
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों ने यह भी जोड़ दिया था साथ में, आने में थोड़ी देर हो गई...स्थितियां इसी देरी की वजह से जटिल हुई हैं।
देरी, हमेशा स्थितियों को जटिल कर देती है।
रात बीत रही थी...बीता हुआ हर पल मृगांका को राहत दे जाता, आने वाला हर पल अनिश्चित भविष्य की आशंका से हिलोर जाता...लग रहा था मानो नटिनी की तरह रस्सी पर चल रही हो, हाथों में पकड़ा बांस डगमग कर रहा हो...हर पल सदियों की तरह बीत रहा था।
अतीत ने, खासकर अभि से अलग होकर बीते अतीत ने कभी राहत नहीं बख्शी थी मृगांका को। पिछले कुछ साल गुजरते हुए हर पल ने टीस दी थी मृगांका को। अब बीत रहा हर पल, राहत दे रहा था। वक्त बहुत ताकतवर है...वक्त ही ईश्वर है।
प्रशांत सारी रात भागदौड़ ही करता रहा। मां इधर-उधर जाकर दो आंसू रोकर आ जाती, कभी मृगांका के गले लगती, कभी उसका चेहरा निहारती। भाभी और भैया भी आ चुके थे...मृगांका को मालूम तो सब कुछ था परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में, लेकिन पछतावे में जलती भाभी और भाई की बीमारी में भी शर्मिन्दा से बड़े भैया के जब उसने पैर छू लिए, तो बड़े भाई से रहा ही नहीं गया।
कई बार प्रशांत ने अभिजीत को कहा था कि तेरी लवस्टोरी में तेरा भाई कैरेक्टर आर्टिस्ट है। लेकिन अभी शायद गांधी जी वाले हृदय परिवर्तन का दौरे-दौरा था। भाई ने जब अभिजीत के आने और सब कुछ दे जाने की बात मृगांका को सनाई तो मृगांका के चेहरे पर गुस्सा नहीं था अभि के भैया के लिए...लेकिन एक गहरी शिकायत तो थी ही।
सुबह हुई...हर रात की सुबह होती है। लेकिन इस बार ऐसा लग रहा था सुबह होगी ही नहीं। कुछ सुबहों का इंतजार सदियों के इंतजार सरीखा हो जाता है।
प्रशांत दौड़ता हुआ सा आया...भाभी...अभि, ठीक है अब।
मृगांका के चेहरे पर से तनाव छंट गया। अभि ठीक है, तो दुनिया सलामत है।
जिस अभिजीत की हर धड़कन मृगांका के नाम हो, वह ऐसे कैसे मर सकता है. अभिजीत मरा नहीं करते, अभिजीत मर नहीं सकते।
...जारी
अभिजीत को लिटाए, मृगांका उसके चेहरे को एकटक देखती जा रही थी। बढी हुई बेतरतीब खिचड़ी दाढ़ी और बाल...गाल भी पिचक से गए थे। कार सरपट भागी जा रही थी।
...लेकिन अचानक गाड़ी चीख मारती रूक गई थी।
सूनी सड़क पर, घिरता अंधेरा। मृगांका ने बिहार के गुंडा-राज के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। दो गाड़ियों ने सड़क पर आड़े-तिरछे होकर रास्ता रोक रखा था। पांच-छह लोग गाड़ी से उतर आए थे।
एक आवाज़ आई, यही गाड़ी है।
...इस गाड़ी में अभिजीत जी हैं? एक सरगना से दिखते शख्स ने आवाज़ लगाई।
कार में मौजूद पापा समेत प्रशांत तक को सांप सूंघ गया। ये लोग अभिजीत को कैसे जानते हैं। मृगांका को लगा
उसे ही उतरना होगा।
सवाल पूछने की बारी अब मृगांका की थी, आप लोग...?
हमारी मत पूछिए, पहले बताएं कि आप की कार में अभिजीत हैं?
हैं बिलकुल हैं...
वो आपके साथ नहीं जाएंगे..
ऐसे कैसे नहीं जाएंगे...जरा भी देर हुई तो उनकी जान को खतरा होगा..बोलते-बोलते गला रूंध गया मृगांका का। चलते चलते सरगना जैसा वो शख्स कार की पिछली सीट तक आ गया। मृगांका को आशंका होने लगी..ये है कौन..लगता तो किसी गिरोह का अगुआ है. अभिजीत को जानता कैसे है और उसे खोज क्यों रहा है..?
आपलोगों को अभिजीत से क्या काम है...? मृगांका ने सशंकित होकर पूछा।
सरगना जैसे उस शख्स ने तबतक अभिजीत को उस तरह लेटे देख लिया था। पूछा, क्या हुआ है इनको...?
उतना बताने का वक्त नहीं है हमारे पास...मृगांका के हाथ स्वतः जुड़ से गए। वह शख्स मृगांका के पास आया, आप मृगांका जी हैं क्या?
जी...
ओह, ठीक है आप अभिजीत जी को ले जाएं, बाकी बातें हम बाद में कर लेंगे...उसने जल्दी से अपना फोन नंबर एक कागज पर लिखकर मृगांका को दे दिया। कार फिर से सरपट दौड़ने लगी थी। उन दोनों गाड़ियों में से एक वापस लौट गई थी और सरगना जैसे उस शख्स की गाड़ी पीछे चल रही थी।
शाम से आंख में नमी सी है...
रात गुजर चुकी थी, लेकिन अंधेरा बाकी था। देर रात पटना के अस्पताल में अभिजीत को भर्ती करा दिया गया था। आईसीयू में। डॉक्टरों में गहन चेकअप के बाद कहा था, कल सुबह तक अगर ऐसा ही रहा...तो अभिजीत बचा लिया जाएगा। स्थिति में थोड़ी भी गिरावट...मृगांका सोच भी नहीं पा रही थी।
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों ने यह भी जोड़ दिया था साथ में, आने में थोड़ी देर हो गई...स्थितियां इसी देरी की वजह से जटिल हुई हैं।
देरी, हमेशा स्थितियों को जटिल कर देती है।
रात बीत रही थी...बीता हुआ हर पल मृगांका को राहत दे जाता, आने वाला हर पल अनिश्चित भविष्य की आशंका से हिलोर जाता...लग रहा था मानो नटिनी की तरह रस्सी पर चल रही हो, हाथों में पकड़ा बांस डगमग कर रहा हो...हर पल सदियों की तरह बीत रहा था।
अतीत ने, खासकर अभि से अलग होकर बीते अतीत ने कभी राहत नहीं बख्शी थी मृगांका को। पिछले कुछ साल गुजरते हुए हर पल ने टीस दी थी मृगांका को। अब बीत रहा हर पल, राहत दे रहा था। वक्त बहुत ताकतवर है...वक्त ही ईश्वर है।
प्रशांत सारी रात भागदौड़ ही करता रहा। मां इधर-उधर जाकर दो आंसू रोकर आ जाती, कभी मृगांका के गले लगती, कभी उसका चेहरा निहारती। भाभी और भैया भी आ चुके थे...मृगांका को मालूम तो सब कुछ था परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में, लेकिन पछतावे में जलती भाभी और भाई की बीमारी में भी शर्मिन्दा से बड़े भैया के जब उसने पैर छू लिए, तो बड़े भाई से रहा ही नहीं गया।
कई बार प्रशांत ने अभिजीत को कहा था कि तेरी लवस्टोरी में तेरा भाई कैरेक्टर आर्टिस्ट है। लेकिन अभी शायद गांधी जी वाले हृदय परिवर्तन का दौरे-दौरा था। भाई ने जब अभिजीत के आने और सब कुछ दे जाने की बात मृगांका को सनाई तो मृगांका के चेहरे पर गुस्सा नहीं था अभि के भैया के लिए...लेकिन एक गहरी शिकायत तो थी ही।
सुबह हुई...हर रात की सुबह होती है। लेकिन इस बार ऐसा लग रहा था सुबह होगी ही नहीं। कुछ सुबहों का इंतजार सदियों के इंतजार सरीखा हो जाता है।
प्रशांत दौड़ता हुआ सा आया...भाभी...अभि, ठीक है अब।
मृगांका के चेहरे पर से तनाव छंट गया। अभि ठीक है, तो दुनिया सलामत है।
जिस अभिजीत की हर धड़कन मृगांका के नाम हो, वह ऐसे कैसे मर सकता है. अभिजीत मरा नहीं करते, अभिजीत मर नहीं सकते।
...जारी