आमिर खान ने पत्नी के मन की बात क्या कही, भूचाल आ गया। आना ही था। आमिर ख़ान ने कह दिया कि भारत में बढ़ती असहिष्णुता की वजह से उनकी पत्नी भारत में रहने की इच्छुक नहीं थी। इतना कहना था कि सोशल मीडिया पर आमिर को लेकर नफरत भरी टिप्पणियों का सैलाब आ गया।
मैं भी आमिर की इस टिप्पणी से इत्तफाक नहीं रखता। मैं यह भी नहीं कहता कि देश में मौजूदा प्रशासन आजतक का आदर्श प्रशासन है। लेकिन आमिर को (या उनकी पत्नी को) अपनी बात तर्कों के ज़रिए साबित करनी चाहिए थी।
आखिर असहिष्णुता या सहिष्णुता एक अमूर्त्त चीज है। महसूस करने की। आमिर या उनके जैसे कलाकारों ने आखिर कैसे महसूस कर लिया कि देश में असहिष्णु वातावरण बन गया है। और यह वातावरण आखिर बेहतर कब था।
आप चाहें तो मेरे सवाल के लिए मुझ पर लानतें भेज सकते हैं क्योंकि आमिर खान ने सरफरोश जैसी फिल्म में बेहद देशभक्त पुलिस अफसर का किरदार अदा किया है, साथ ही आमिर खान भारत सरकार के विज्ञापनों में देश को इंक्रेडिबल इंडिया यानी अतुल्य भारत कहते हैं।
अब या तो वह विज्ञापन में असत्य उचार रहे हैं या उस दिन पुरस्कार समारोह में। जो भी हो, साहित्यकारों और कलाकारों की इस बेचैनी के कारण को समझकर उसका निदान जरूरी है।
वैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सहिष्णुता की एक मिसाल मैं देना जरूर चाहूंगा।
भारत ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती की एक बड़ी पहल की है। भारत ने अगले कुछ दिनो में पेरिस में होने वाले शिखर सम्मेलन से पहले जलवायु परिवर्तन पर अपने रोडमैप की घोषणा कर दी है। केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि वह 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 33 से 35 फीसदी कटौती करेगी। यह कमी साल 2005 को आधार मान कर की जाएगी। इमिशन इंटेसिटी कार्बन उत्सर्जन की वह मात्रा है, जो 1 डॉलर कीमत के उत्पाद को बनाने में होती है।
सरकार ने यह भी फैसला किया है कि 2030 तक होने वाले कुल बिजली उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सा कार्बनरहित ईंधन से होगा। यानी, भारत साफ-सुथरी ऊर्जा के लिए बड़ा कदम उठाने जा रहा है। भारत पहले ही कह चुका है कि वह 2022 तक वह 1 लाख 75 हजार मेगावॉट बिजली सौर और पवन ऊर्जा से बनाएगा। वातावरण में फैले ढाई से तीन खरब टन कार्बन को सोखने के लिए अतिरिक्त जंगल लगाए जाएंगे।
भारत ने यह भी साफ कर दिया है कि वह सेक्टर आधारित (जिसमें कृषि भी शामिल है) लिटिगेशन प्लान के लिए बाध्य नहीं है। इस साल के अंत में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन फ्रांस की राजधानी पैरिस में हो रहा है। अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ ने पहले ही अपने रोडमैप की घोषणा कर दी है। भारत का रोडमैप इन देशों के मुकाबले ज्यादा प्रभावी दिखता है।
पिछले दिनों अपनी अमेरिका की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति से भी मिलकर जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत द्वारा सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों ही राष्ट्राध्यक्षों से कहा कि भारत इस मामले की अगुवाई करने को तैयार है। विश्लेषकों का कहना है इस साल के आख़िर में पेरिस में होने वाले जलवायु सम्मेलन से पहले राष्ट्रपति ओबामा इस मुद्दे पर एकमत कायम करने की कोशिश कर रहे हैं। और अगर भारत इस मुहिम में उनके साथ आता है तो जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए एक बड़े समझौते की उम्मीद बनती है।
न्यू यॉर्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाक़ात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ जंग में आनेवाले कई दशकों तक भारत के नेतृत्व की बेहद अहम भूमिका होगी।
मैं भी आमिर की इस टिप्पणी से इत्तफाक नहीं रखता। मैं यह भी नहीं कहता कि देश में मौजूदा प्रशासन आजतक का आदर्श प्रशासन है। लेकिन आमिर को (या उनकी पत्नी को) अपनी बात तर्कों के ज़रिए साबित करनी चाहिए थी।
आखिर असहिष्णुता या सहिष्णुता एक अमूर्त्त चीज है। महसूस करने की। आमिर या उनके जैसे कलाकारों ने आखिर कैसे महसूस कर लिया कि देश में असहिष्णु वातावरण बन गया है। और यह वातावरण आखिर बेहतर कब था।
आप चाहें तो मेरे सवाल के लिए मुझ पर लानतें भेज सकते हैं क्योंकि आमिर खान ने सरफरोश जैसी फिल्म में बेहद देशभक्त पुलिस अफसर का किरदार अदा किया है, साथ ही आमिर खान भारत सरकार के विज्ञापनों में देश को इंक्रेडिबल इंडिया यानी अतुल्य भारत कहते हैं।
अब या तो वह विज्ञापन में असत्य उचार रहे हैं या उस दिन पुरस्कार समारोह में। जो भी हो, साहित्यकारों और कलाकारों की इस बेचैनी के कारण को समझकर उसका निदान जरूरी है।
वैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सहिष्णुता की एक मिसाल मैं देना जरूर चाहूंगा।
भारत ने कार्बन उत्सर्जन में कटौती की एक बड़ी पहल की है। भारत ने अगले कुछ दिनो में पेरिस में होने वाले शिखर सम्मेलन से पहले जलवायु परिवर्तन पर अपने रोडमैप की घोषणा कर दी है। केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि वह 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 33 से 35 फीसदी कटौती करेगी। यह कमी साल 2005 को आधार मान कर की जाएगी। इमिशन इंटेसिटी कार्बन उत्सर्जन की वह मात्रा है, जो 1 डॉलर कीमत के उत्पाद को बनाने में होती है।
सरकार ने यह भी फैसला किया है कि 2030 तक होने वाले कुल बिजली उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सा कार्बनरहित ईंधन से होगा। यानी, भारत साफ-सुथरी ऊर्जा के लिए बड़ा कदम उठाने जा रहा है। भारत पहले ही कह चुका है कि वह 2022 तक वह 1 लाख 75 हजार मेगावॉट बिजली सौर और पवन ऊर्जा से बनाएगा। वातावरण में फैले ढाई से तीन खरब टन कार्बन को सोखने के लिए अतिरिक्त जंगल लगाए जाएंगे।
भारत ने यह भी साफ कर दिया है कि वह सेक्टर आधारित (जिसमें कृषि भी शामिल है) लिटिगेशन प्लान के लिए बाध्य नहीं है। इस साल के अंत में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन फ्रांस की राजधानी पैरिस में हो रहा है। अमेरिका, चीन, यूरोपीय संघ ने पहले ही अपने रोडमैप की घोषणा कर दी है। भारत का रोडमैप इन देशों के मुकाबले ज्यादा प्रभावी दिखता है।
पिछले दिनों अपनी अमेरिका की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति से भी मिलकर जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत द्वारा सकारात्मक भूमिका निभाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों ही राष्ट्राध्यक्षों से कहा कि भारत इस मामले की अगुवाई करने को तैयार है। विश्लेषकों का कहना है इस साल के आख़िर में पेरिस में होने वाले जलवायु सम्मेलन से पहले राष्ट्रपति ओबामा इस मुद्दे पर एकमत कायम करने की कोशिश कर रहे हैं। और अगर भारत इस मुहिम में उनके साथ आता है तो जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए एक बड़े समझौते की उम्मीद बनती है।
न्यू यॉर्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाक़ात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ जंग में आनेवाले कई दशकों तक भारत के नेतृत्व की बेहद अहम भूमिका होगी।