Tuesday, June 7, 2016

जहां न पहुंचे रवि...

बिहार के छात्रों के बीच एक कहावत बहुत मशहूर है कि जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि और जहां न पहुंच पाए कवि, वहां पहुंचे पैरवी। भुसकोल छात्रों के लिए पैरवी यानी सिफारिश उम्मीद की किरण की तरह है तो प्रतिभाशाली छात्रों के लिए एक और बाधा की तरह, जो बिहार में पढ़ने वाले बाक़ी छात्रों को भी झेलना ही होता है।

आप सबको याद होगा, कुछ बरस-डेढ़ बरस पहले बिहार के वैशाली में नकल करवाने वालो की एक तस्वीर सोशल मीडिया में, और उसके बाद मुख्यधारा की मीडिया में भी वायरल हुई थी। उस समय कहा गया कि बिहार की छवि बिगाड़ने की कोशिश है। ठीक है। लेकिन उसके बाद अभी बिहार में परीक्षा के परिणामों ने उस आरोप को एक तार्किक परिणति तक पहुंचा दिया है।

स्कूली शिक्षा में भ्रष्टाचार किस कदर जड़ जमा चुका है, उसकी मिसाल हैं टॉपर रूबी राय। वह आर्ट्स में टॉप आई हैं और उन्हें यह तक पता नहीं कि उन्होंने कुल कितने विषयों की परीक्षा दी है। हो सकता है मीडिया के सामने वह अकबका गई हों, और भूल गई हों, लेकिन जिस विषय में उन्हें 91 नंबर आए हैं, उन्हें यह भी याद नहीं कि उस विषय में पढ़ाया क्या जाता है! कुल 500 अंको की परीक्षा में उन्हें 444 अंक हासिल हुए हैं लेकिन उनके हिसाब से उनके पांच पेपरों में एक ‘पोडिकल साइंस’ विषय भी था। और इस विषय में बकौल रूबी, खाना पकाना सिखाया जाता है। बढ़िया।

अब इस बार बिहार के विज्ञान के टॉपर की सुनिए। यह हैं सौरभ श्रेष्ठ। अपने टॉप होने का श्रेय वह स्कूल की पढ़ाई और अच्छे तरीके से दोहराने को तो देते हैं लेकिन उनके हिसाब से रसायन की आवर्त सारणी में सबसे रिएक्टिव एलिमेंट एल्युमिनियम होता है। वाह! आवर्त सारणी बनाने वाले मेंडलीफ अपना माथा फोड़ रहे होंगे। और, सोडियम के इलेक्ट्रॉनिक स्ट्रक्चर में आउटर मोस्ट सर्किल में कितने इलेक्ट्रॉन होते हैं, इसका उतरा सौरभ श्रेष्ठ के पास नहीं है।

अब हकबकाया बिहार के शिक्षा बोर्ड के अधिकारी इन टॉपरों को साक्षात्कार के लिए बुलाने की योजना बना रहे हैं। और टॉपर रूबी के पिता कह रहे हैं कि उन्होंने प्रिंसिपल को बेटी का ध्यान रखने भर को कहा था, उन्होंने तो टॉपर ही बना दिया।

कोई बात नहीं। टॉपर ही बनाइए। लेकिन इस तरह की शिक्षा से बिहार का नाम कितना बदनाम हो रहा है इसपर क्या राज्य के नेता ध्यान देंगे? क्या जो बिहार अपनी प्रतिभा के लिए देश भर में मशहूर है उसके बाकी के छात्रों पर क्या बीतेगी? उनकी प्रतिष्ठा का क्या होगा? छोड़िए पुराने छात्रो की प्रतिष्ठा का, इस बार जो कथित टॉपर हैं, वह क्या नज़रें मिला पाएंगे।

किसी महान शख्स ने कहा भी है कि, अगर आप सम्मान के लायक हैं और आपको सम्मान नहीं मिलता तो शायद उतना बुरा नहीं, जितना कि आप सम्मान के लायक नहीं हैं और फिर सम्मान मिल जाए।

कल को, मुझे फीजिक्स का नोबेल मिल जाए तो क्या मैं इसी बेसाख्ता अंदाज़ में यह स्तंभ लिख पाऊंगा? लेकिन इस शर्मो-लिहाज के लिए आंखों में पानी होना चाहिए। जो पानी शायद सूखे की वजह से खत्म होती जा रही है। तभी तो बिहार में वंशवाद ने समाजवाद को खूंटी पर टांग दिया है। और बिहार ही क्यों, देश भर में जितनी समाजवादी पार्टियां है, सबकी सब जेबी पार्टियां ही तो हैं।

लेकिन बिहार का प्रसंग चल निकला है तो याद आया कि किंगमेकर लालू प्रसाद ने एक नया रिकॉर्ड कायम करने की पूरी तैयारी कर ली है। बीते नवंबर में जब बिहार के चुनाव हुए थे तो लालू के दो बेटे चुनकर विधानसभा पहुंच गए। तेजस्वी तो उप-मुख्यमंत्री भी बन गए। बिटिया मीसा यादव लोकसभा चुनाव में बीजेपी में गए रामकृपाल यादव से हार गई थीं, अब उनका करियर बनाने के लिए राज्य सभा भेजने की तैयारी है। लालू की पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री बिहार की पहली ऐसी मां हैं जिन्हें अपने बच्चों के साथ सदन में बैठने का गौरव हासिल है।

अब, इतने आंकड़ों के बाद क्या यह सवाल प्रासंगिक भी रह जाता है कि बिहार में प्रतिभा की कद्र होगी? वैसे, याद रखिए, लालू की नौ संतानें हैं। कुल मिलाकर उनका परिवार, (साले, भाई, चाचा-फूफा जैसे संबंधियों को छोड़कर) ग्यारह का है। लालू चाहें तो विधानसभा में चौथाई बहुमत तो सिर्फ परिवारवालों के सहारे ला सकते हैं।

आप लाख सिर पटक लीजिए, बिहार में प्रतिभा पर सिफारिश भारी पड़ती है, पड़ती रहेगी। कोई रूबी, कोई सौरभ, सर्वश्रेष्ठ छात्रों की प्रतिभा भर भारी पड़कर श्रेष्ठतम साबित होता रहेगा। जहां कवि की कल्पना भी नहीं पहुंच पाए, वहां पैरवी पहुंचती रहेगी।

मंजीत ठाकुर

2 comments:

कविता रावत said...

बिंदास प्रस्तुति ...

sameer said...

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