खबर है कि ट्रेनों में अब एटीएम लगा करेगा. पंचवटी एक्सप्रेस में शायद लग भी गया है. यह अच्छा है. सरकार सबका भला चाहती है, ट्रेन लुटेरों का भी.
पहले लुटेरे लोग कट्टा-चाकू दिखाकर घड़ी-चेन-बटुआ निकालते थे. मोबाइल छीनते थे. गहना-गुरिया तो अब ज्यादा लोग पहनते नहीं. और बाकी का माल सेकेंडहैंड जवानी की तरह कौड़ी के दाम बिकती थी. तो सरकार ने लूट के काम को बूस्ट करने के वास्ते ट्रेन में एटीएम लगाने का काम किया है. अब लुटेरे प्रो-लेवल पर आएंगे. मुसाफिरों को भी कष्ट नहीं होगा.
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ट्रेन में एटीएमः AI इमेज |
लुटेरे आए, आपको कट्टा या चाकू जो भी उनके पास उपलब्ध हो दिखाया, आपको उठाकर ले गए दरवाजें के पास लगे एटीएम के पास. फिर बैलेंस चेक करवा कर दूसरी बार में सारा माल-मत्ता निकलवा लिया. यह सब आसानी से कर लेंगे.
इससे मुसाफिर भी खुश रहेंगे कि भारतीय रेल में सफर करते हुए पहले जब लुटते थे--और लुटते तो थे ही काहे कि सुरक्षा की स्थिति तो आप जानते ही हैं--तो कुछ न मिलने की सूरत में डाकू लोग चाकू-वाकू मार देते थे. अब चाकू तो नहीं मारेंगे कम से कम.
आप में से कोई शक्की यह कह देगा कि भाई सारी ट्रेनें तो नहीं लूट ली जातीं है. अरे भाई, सुरक्षा के मद्देनजर संभावनाएं तो हर ट्रेन में हैं कि जब चाहे तब लूटी जा सकती हैं. लेकिन वह तो लुटेरों का अभी वर्क फोर्स कम है--कुछ लोग असल में राजनीति में चले गए हैं, कुछ पत्रकार बन गए हैं--और कुछ तो उनकी भलमनसाहत है. दूसरी, मूड का मसला है कि जाओ जी, इस ट्रेन को नहीं लूटेंगे.
बिहार जाने वाले यात्रियों से अनुरोध है भैय्ये जरा धेयान से, सूबे में इलेक्शन आने वाला है. इलेक्शन के टाइम में उधर ट्रेने बहुत लूटी जाती हैं. लूटी नहीं जाएंगी तो क्या लोग घर के खर्चे से इलेक्शन लड़ेंगे? घर फूंक कर तमाशा देखने कह रहे हैं आप लोग! जनसेवा क्या घर की बचत से होगी? तो चुनावी खर्चे के लिए ट्रेन नहीं लूटी जाएगी तो क्या डाकू घर-घर जाकर वोट और नोट दोनों छीनें! हां नीं तो!
यह तो सरकार ने अच्छा किया है कि ट्रेनों में एटीएम लगवा दिया. चुनाव को सपोर्ट करने का यह अच्छा सिस्टम है. सरकार चुनावी लोकतंत्र को मजबूत करना चाहती है. सरकार का पूरा भरोसा है कि सिर्फ मछली पकड़ना सिखाना ही किसी को सपोर्ट करना नहीं होता, कई दफे उसकी झोरी में पांच किलो का रोहू सीधे-सीधे भी डाल दिया जाना चाहिए.
इससे मुसाफिर भी खुश रहेंगे कि भारतीय रेल में सफर करते हुए पहले जब लुटते थे--और लुटते तो थे ही काहे कि सुरक्षा की स्थिति तो आप जानते ही हैं--तो कुछ न मिलने की सूरत में डाकू लोग चाकू-वाकू मार देते थे. अब चाकू तो नहीं मारेंगे कम से कम.
आप में से कोई शक्की यह कह देगा कि भाई सारी ट्रेनें तो नहीं लूट ली जातीं है. अरे भाई, सुरक्षा के मद्देनजर संभावनाएं तो हर ट्रेन में हैं कि जब चाहे तब लूटी जा सकती हैं. लेकिन वह तो लुटेरों का अभी वर्क फोर्स कम है--कुछ लोग असल में राजनीति में चले गए हैं, कुछ पत्रकार बन गए हैं--और कुछ तो उनकी भलमनसाहत है. दूसरी, मूड का मसला है कि जाओ जी, इस ट्रेन को नहीं लूटेंगे.
बिहार जाने वाले यात्रियों से अनुरोध है भैय्ये जरा धेयान से, सूबे में इलेक्शन आने वाला है. इलेक्शन के टाइम में उधर ट्रेने बहुत लूटी जाती हैं. लूटी नहीं जाएंगी तो क्या लोग घर के खर्चे से इलेक्शन लड़ेंगे? घर फूंक कर तमाशा देखने कह रहे हैं आप लोग! जनसेवा क्या घर की बचत से होगी? तो चुनावी खर्चे के लिए ट्रेन नहीं लूटी जाएगी तो क्या डाकू घर-घर जाकर वोट और नोट दोनों छीनें! हां नीं तो!
यह तो सरकार ने अच्छा किया है कि ट्रेनों में एटीएम लगवा दिया. चुनाव को सपोर्ट करने का यह अच्छा सिस्टम है. सरकार चुनावी लोकतंत्र को मजबूत करना चाहती है. सरकार का पूरा भरोसा है कि सिर्फ मछली पकड़ना सिखाना ही किसी को सपोर्ट करना नहीं होता, कई दफे उसकी झोरी में पांच किलो का रोहू सीधे-सीधे भी डाल दिया जाना चाहिए.
#ठर्राविदठाकुर