tag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post5095187193556739355..comments2024-02-21T06:21:43.492+05:30Comments on गुस्ताख़: भोपाल गैस त्रासदीः दो कविताएँManjit Thakurhttp://www.blogger.com/profile/09765421125256479319noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post-32025464404261844252012-12-05T19:57:20.736+05:302012-12-05T19:57:20.736+05:30ये त्रासदी भारतीय समाज की विकृतियों के चमत्कारिक र...ये त्रासदी भारतीय समाज की विकृतियों के चमत्कारिक रूप से रिफ्लेक्ट करती है . दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की ब्लैक एंड व्हाट तस्वीर . जहाँ हजारो आदमी रातो रात नींद के आगोश में मौत की गोद में चले जाते है , आने वाली नस्ले अगले कई सालो तक अपंगता ओर अनेको रोगों का शिकार होती है ओर सत्ता इसके जिम्मेदार आदमी को न केवल सेफ पैसेज का रास्ता मुहैय्या कराती है बल्कि उसे देश से बाहर भेजने का इंतजाम भी करती है . इतने हज़ार लोगो की ऐसी म्रत्यु क्या हत्या नहीं है ? ओर उन्हें बचाने की कोशिश क्या हत्या में भागादारी नहीं ? देश द्रोह नहीं ?राजीव गांधी ओर अर्जुन सिंह उसके बाद भी आराम तलब जिंदगी बसर करते है बिना किसी गिल्ट के . देश के इस कोने में बैठे बैठे हम इस दुःख को आहिस्ता आहिस्ता भूल जाते है क्यूंकि ये "भोपाल का दुःख" है .<br />एक क्षेत्र का राजनैतिक व्यक्ति जब किसी स्वाभाविक म्रत्यु को प्राप्त करता है इस देश का मीडिया २४ X 7 उसका लाइव प्रसारण ऐसे करता है जैसे कोई शहीद गया हो ओर भोपाल गैस त्रासदी के अवसर पर इस देश का कोई भी राजनातिक तंत्र सत्ता दो मिनट का मौन रखने को नहीं कहेगा .तारीख ऐसी ही गुजर जाती है .डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post-49530099858143534112012-12-05T16:19:48.540+05:302012-12-05T16:19:48.540+05:30इस कड़ी की आखरी कविता
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भागती - दौड़ती - चिल्ल...इस कड़ी की आखरी कविता <br />3-<br /><br /><br />भागती - दौड़ती - चिल्लाती आवाज...<br />कुछ हवाओं में, कुछ पावों तले,<br />कुछ दब गयी,<br />दीवारों के बीच।<br />कुछ नींद की गहराइयों में,<br />कुछ मौत की तन्हाइयों में खो गई। <br />कुछ माँ के पेट में,<br />कुछ कागजों में,<br />कुछ अदालतों में गूँगी हो गयी।<br />गुजारिश तुमसे है दानव,<br />तुम न खो देना मुझको,<br />जहाँ रहते हैं मानव।<br />[प्रकाशित- दैनिक विश्वमित्र, कोलकाता 5 नवम्बर 1988]<br /><br />-शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453/2, साल्टलेक सिटी, कोलकाता - 700106nimishhttps://www.blogger.com/profile/03895455868696863964noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post-26743371393378405292012-12-05T16:13:29.419+05:302012-12-05T16:13:29.419+05:30इस कड़ी की आखरी कविता
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भागती - दौड़ती - चिल्ल...इस कड़ी की आखरी कविता <br />3-<br /><br /><br />भागती - दौड़ती - चिल्लाती आवाज...<br />कुछ हवाओं में, कुछ पावों तले,<br />कुछ दब गयी,<br />दीवारों के बीच।<br />कुछ नींद की गहराइयों में,<br />कुछ मौत की तन्हाइयों में खो गई। <br />कुछ माँ के पेट में,<br />कुछ कागजों में,<br />कुछ अदालतों में गूँगी हो गयी।<br />गुजारिश तुमसे है दानव,<br />तुम न खो देना मुझको,<br />जहाँ रहते हैं मानव।<br />[प्रकाशित- दैनिक विश्वमित्र, कोलकाता 5 नवम्बर 1988]<br /><br />-शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453/2, साल्टलेक सिटी, कोलकाता - 700106nimishhttps://www.blogger.com/profile/03895455868696863964noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post-64734374004299345892012-12-04T08:45:24.736+05:302012-12-04T08:45:24.736+05:30आधुनिक गैस चैम्बर..आधुनिक गैस चैम्बर..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com