tag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post5789037549683246808..comments2024-02-21T06:21:43.492+05:30Comments on गुस्ताख़: स्वर्ण-(अ)कालManjit Thakurhttp://www.blogger.com/profile/09765421125256479319noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post-49236591254050470362016-08-30T19:42:07.205+05:302016-08-30T19:42:07.205+05:30सच कड़वा होता है | भारत में अब गिने चुने खेलों को ह...सच कड़वा होता है | भारत में अब गिने चुने खेलों को ही अहमियत दी जाती है और उसमे भी अपने सगे को आगे करने की कोशिश की जाती है भले ही उसमे रत्ती भर भी क़ाबलियत न हो |और जो काबिल होते है उन्हें सही facilities नहीं मिल पति है | ऐसे में हम पदक की उम्मीद कैसे कर सकते है ? Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/14406060730529763862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7338682564613289699.post-66974699960927727042016-08-28T06:08:39.962+05:302016-08-28T06:08:39.962+05:30दो टूक ....बिलकुल खरी खरी ...अभी करना तो दूर अभ...दो टूक ....बिलकुल खरी खरी ...अभी करना तो दूर अभी तो इन बातों पर सोचा भी नहीं जा सका है ..सामयिक पोस्ट अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.com