चढ़ते सूरज को सलाम करना फिल्म इंडस्ट्री की खासियत है। जो एक बार नज़र से उतर गया उसे फिर कोई याद भी नहीं करता। बीते जमाने की बेहद प्रतिभाशाली ओर मशहूर गायिका मुबारक बेगम इन दिनों गोवा में हैं। भारत के ३८ वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के गैर फीचर फिल्मों के वर्ग में विपिन चौबल की फिल्म मुबारक बेगम भी दिखाई जा रही है। यह बीते दिनों की इस मशहूर पार्श्व गायिका के जीवन पर आधारित है। उनके साथ बातचीत में हमने बांटे कुछ खास पल और अतीत वर्तमान हो गया।- गुस्ताख़
गुस्ताख़- आपके ज़माने और आज में क्या कोई फर्क पड़ा है?
गुस्ताख़- बहुत दिनों के बाद इंडस्ट्री ने आपको याद किया है?
मुबारक बेगम- हां, ...आखिरकार याद तो किया। ये तो फिल्म्स डिवीजन वाले और विपिन जी हैं, जिन्होने लोगो को बताया कि मुबारक अभी भी ज़िंदा है। मेरे घर आकर फिर से उतना सम्मान मिलने से खुश हूं.. फिल्म्स डिवीजन की आभारी हूं। यहां लोग अब फिल्म देखकर जान रहे हैं कि मुबारक बेगम ने भी कुछ गाया था।
गुस्ताख़- आपके ज़माने और आज में क्या कोई फर्क पड़ा है?
मुबारक बेगम- बहुत फर्क पड़ा है। लोग डूब के गाते थे। आज की तरह नहीं। म्यूजिक सिर्फ पैसे कमाने का ज़रिया नहीं था। लोग अपने लिए भी गाते थे. संतुष्टि के लिए। आज तो गाने क्या होते हैं...गिनती की तरह एक दो तीन चार होते हैं। पहले ऐसा नहीं था।
गुस्ताख़- आजकल तो आपके गाने का रीमिक्स भी आ गया है?
मुबारक बेगम-( पूछती हैं..) किस गाने का आया है? .. (मैं बताता हूं) ...अच्छा वो वाला...क्या अच्छे भले गाने का कचरा करके रख दिया है। ... चेहरे पर असंतुष्टि के भाव हैं।
गुस्ताख़- कुछ गा सकती हैं? हमारे लिए...???
मुबारक बेगम- विवशता में सर हिलाती हैं... नहीं गा सकती.. गला खराब रहता है.. खांसी के दौरे होते रहते हैं..(फिर पूछती हैं) क्या नाम है तुम्हारा? मैं बताता हूं.. अच्छा... चलो तुम कह रहे हो तो गा देती हूं... गाती हैं.. फिल्म हमारी याद आएगी का गना... कभी तनहाईयों में हमारी याद आएगी.......पुरकशिश आवाज़ की तान होटल में लॉबी में बैठे लोगों को ध्यान खींचती है, फिर वह आवाज़ पास ही हिलोरें मार रहे समंदर की आवाज़ से बंदिश करने लग जाती है। गाना खत्म होता है, मेरा कैमरामैन कैबल समेट रहा है.. मैं ठगा-सा बैठ हूं। निर्देशक विपिन चौबल की आंखे पनीली हैं।
मुबारक बेगम के काम के बारे में और हाल ही में सारेगामा पर जारी सीडी पर कभी फिर लिखूंगा..
मंजीत
मंजीत
अच्छा लगा. आपको साधुवाद.
ReplyDeleteअच्छा लगा, आपके लेखन को देखकर। फिल्म, संगीत, नाटक जैसे विषयों पर नियमित और पेशेवर कुशलता से लेखन करने वाले साथियों को चिट्ठा जगत में सक्रिय देखकर खुशी हो रही है।
ReplyDeleteमंजीत तुम इतिहास को जी रहे हो..मुझे वाकई तुमसे ईर्ष्या है....
ReplyDelete