Sunday, December 16, 2007

हे दुष्टता, तुझे नमन,


हे दुष्टता, तुझे नमन,

कुछ न होने से-

शायद बुरा होना अच्छा है।


भलाई-सच्चाई में लगे हैं,

कौन से ससुरे सुरखाब के पंख


घिसती हैं ऐडियां,

सड़कों पर सौ भलाईयां,

निकले यदि उनमें एक बुराई,


तो समझो पांच बेटियों पर हुआ,

एक लाडला बेटा


ढेर सारी भलाई पर,

छा जाती है

थोड़ी सी बुराई,


जैसे टनों दूध पर तैरती है,

थोड़ी सी मलाई


मंजीत ठाकुर

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया भाई…
    कार्टून ने ही सबकुछ व्यक्त कर दिया…।
    अतिसुंदर!!!

    ReplyDelete
  2. अच्छी लगी आपकी कविता ...बधाई

    ReplyDelete