हे दुष्टता, तुझे नमन,
कुछ न होने से-
शायद बुरा होना अच्छा है।
भलाई-सच्चाई में लगे हैं,
कौन से ससुरे सुरखाब के पंख
घिसती हैं ऐडियां,
सड़कों पर सौ भलाईयां,
निकले यदि उनमें एक बुराई,
तो समझो पांच बेटियों पर हुआ,
एक लाडला बेटा
ढेर सारी भलाई पर,
छा जाती है
थोड़ी सी बुराई,
जैसे टनों दूध पर तैरती है,
थोड़ी सी मलाई
मंजीत ठाकुर
बहुत बढ़िया भाई…
ReplyDeleteकार्टून ने ही सबकुछ व्यक्त कर दिया…।
अतिसुंदर!!!
अच्छी लगी आपकी कविता ...बधाई
ReplyDelete:)
ReplyDelete