Wednesday, March 19, 2008

छायाकार रघु राय


जिंदगी के रंग ब्लैक एंड वाईट भी होते हैं, और इन रंगों में जीवन कई बार रंगीन तस्वीरों से भी ज़्यादा रंग होते हैं। आप शायद इस बात पर मुश्किल से यकीन करें, लेकिन आप अगर मशहूर फोटोग्राफर और फोटो जर्नलिस्ट रघु राय के तस्वीरों की दिल्ली के नैशनल गैलरी ऑफ़ मॉाडर्न आर्ट्स में लगी प्रदर्शनी घूम आएं, तो मुमकिन है कि इससे जरूर इत्तेफाक रखेंगे। मंगलवार को शुरु हुई यह प्रदर्शनी 15 अप्रैल तक चलेगी।

तस्वीरों को ज़रिए ज़िंदगी के फलसफे को लेंस से कहने वाले रघुराय ने अपने करिअर के शुरुआती दौर में ब्लैक एंड वाइट माध्यम को तरज़ीह दी, लेकिन बाद में उन्होंने रंगीन तस्वीरों से भी जिंदगी के पल कैंमरे में क़ैद किए। बदलते वक्त के साथ डिजिटल फोटोग्रफी में उनकी महारत ने लोगों को मुग्ध कर दिया। रघु से बात करने पर उन्होंने बताया कि फोटोग्रफी की दोनों विधाओं की तुलना बेमानी है।

बकौल रघु, हर रंग का अपान भावनात्मक मूल्य होता है और लोग रंगीन तस्वीरों के अलग परेशान करने वाले रंगों की बनिस्पत ब्लैक एंड वाईट तस्वीरों को ज्यादा सहजता से लेते हैं। कैमरे पर ब्लैक एंड वाईट फिल्टर लगाते ही तस्वीरों की भाषा ज्यादा सहज हो जाती है।

ऱघु राय ने फोटोग्रफी में हॉरिजॉन्टल और वर्टिकल पैनोरमा में काफी कुछ दिखाने की गुंजाइश पैदा की है। वैसे तो फोटोग्रफी एक पल, एक ॿण को लेंस के जरिए कैद करने का हुनर है, लेकिन यही पल बाद में यादों की अनमोल विरासत और न बदलने वाला इतिहास बन जाता है।
मंजीत ठाकुर

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