Saturday, May 17, 2008

एफटीआईआई और विस्डम ट्री


एफटीआईआई में हमने सुना था कि एक बोधि वृक्ष भी है। अंग्रेजी में जिसे लोग विस्डम ट्री कहते हैँ। एफटीआईआई के अपने शुरुआती दिनों में यह कयास लगाते रहे कि इन ढेर सारे पेड़ों में विस्डम ट्री आखिर है कौन सा। किसी ने कहा कि मेन गेट के अगल बगल खड़े बरगद के पेडो में से ही कोई एक विस्डम ट्री है। कोई पीपल को बतात रहा।

हमारे सात दिल्ली से गए विनेश शर्मा थे। विनेश अपना प्रोडक्शन हाउस चलाते हैं। फिल्म के पक्के कीड़े। हमारे अन्य साथियों में बौद्धिकों की कमी नहीं थी। यूजीसी से गए सुनील मेहरू, सहारा न्यूज के आउटपुट हेड पुनीत कुमार, एफटीआईआई में ही एक्टिंग का कोर्स कर रहे आशुतोष दूबे, स्क्रिप्ट राईटिंग सीख रहे मुकेश नीमा... हमारी पांच लोगों की टीम बन गई। पक्के गपोड़बाजों की टीम।

मेरे रूममेट थे सौम्या सेन.. अफवाह थी कि वह नंदिता दास के पूर्व पति हैं। यह अपवाह कई लोगों ने बड़े भरोसे के साथ बताई थी। धीरे-धीरे अपने साथि्यों से परिचय हुआ.. कोई बेवसाईट चलाती थी, कोई मेरी तरह पत्रकारिता में थी, कोई कटरपोरेट फिल्में बनाते थे, कोई वृत्तचित्र निर्माता थे, किसी का सपना था आगे चलकर अपने भाई की तरह बड़ा फिल्मकार बनाना। बता दूं कि महेश मांजरेकर के छोटे भाई संतोष मेरे साथ थे। मतलब एक मुकम्मल टीम तैयार थी।

बहरहाल, बाद में खुलासा हुआ कि एफटीआईआई के बीचोंबीच मुख्य तियेटर के पास का आम का पेड़ ही विस्डम ट्री है। इसी का छांव में ऋत्विक घटक छात्रों को सिनेमा पढाते थे। मैं अभिभूत था। गरमी अपने शबाब पर थी, और विस्डम ट्री भी आम से लदी थी। दूबे और उसके दूसरे पुराने साथियों के साथ मैं भी भदेस था और हमारी नजर पकते हुए आमों पर लगी रहती। २० मई के बाद जब हवा की चाल ने दुलकी पकड़ी आम धड़ाधड़ धराशायी होने लगे और हम और लोगों की नज़र उस पर पड़े उससे पहले ही उन्हे उदरस्थ कर जाते। दूबे जैसे सिने-भक्तों के लिए उसका स्वाद अहम नहीं था। उनको भरोसा था कि विस्डम ट्री का कुछ विस्डम तो उनके हिस्से भी इस प्रक्रिया में ुनके अंतस में जाएगा ही।

बहराहाल, लोगबाग देर रात तक उस पेड़ के नीचे बैठते। सिनेमा पर चर्चा होती। लेकिन पेड़ की उस शीतल छांव में बैठकर चर्चा और लफ्फाजी का आनंद शब्दों में बयां करने से परे हैं। उस जबानी जमाखर्च का मज़ा तो ऐसी बैटकों में शामिल होकर ही लिया जा सकता है।

लेकिन एक बात जिसपर हमेशा लोगों से हम पांच असहमत होते थे, वह था बॉलिवुड को लेकर वहां के लोगों का नज़रिया । एफटीआईआई में प्रफेसर्स से लेकर छात्र तक मुंबईया पिल्मों को दोयम दर्जे का मानते थे। हम ऐसा नहीं मानते। इसके लिए हम वहां के निदेशक त्रिपुरारी शरण से भी भिड़ गए। लेकिन वह सब अगली पोस्ट में....

जारी

5 comments:

  1. अच्छा लग रहा है सिलसिलेवार एफ़ टी आई आई के बारे में पढ़ना।
    मैं भी इस 25 को परीक्षा दे रहा हूं। बाकी बातें छोड़कर जल्दी से अगली पोस्ट में दाखिले के लिए कोई गुरुमंत्र बता दीजिए। हो गया तो चेला जीवन भर आपका उपकार मानेगा।

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  2. जारी रखिये ......पढ़ रहे है.....

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  3. मंजीत भाई आपसे ये सब सुन चुके हैं कि आप के दिन कैसे मजे किये थे आपने लेकिन अब पढने मैं और भी मजा आ रहा है। लिखते रहिए.........

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  4. अच्छा लगा, जारी रखिये.

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