Thursday, September 25, 2008

मैथिली लोकगीत

सावन-भादों मे बलमुआ हो चुबैये बंगला

सावन-भादों मे...!

दसे रुपैया मोरा ससुर के कमाई

हो हो, गहना गढ़एब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...! ]

पांचे रुपैया मोरा भैन्सुर के कमाई

हो हो, चुनरी रंगायब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!

दुइये रुपैया मोरा देवर के कमाई

हो हो, चोलिया सियायेब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!

एके रुपैया मोरा ननादोई के कमाई

हो हो, टिकुली मंगायेब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!

एके अठन्नी मोरा पिया के कमाई

हो हो, खिलिया मंगाएब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!

5 comments:

  1. दिल्ली में हुए बम धमाको के बाद एक ऐसा नक्शा देश के सामने आया जो देश के नक्शे से भी बड़ा था । ये नक्शा है आजमगढ़ का । दिल्ली बम धमाको में जितने भी आतंकवादी का नाम सामने आया है उसमें आजमगढ़ का नाम सबसे बड़ा है । और यह भी खुलकर सामने आ रहा है कि दिल्ली बलास्‍ट में मुम्बई से गिरफ्तार पांच आतंकवादियो के तार २००५ से लेकर अबतक के धमाको से है । और इन धमाको के तार कही न कही आजमगढ़ से जुड़े रहे है । जो भी हो उत्तर प्रदेश के नक्शे पर आजमगढ़ काफी समृद्ध रहा है । कारण यह है कि यहां के लोग कुशल कारीगर रहे है । जिसकी झलक बनारसी साड़ियो में देखी जाती है । इसके अतिरिक्त यहां के लोगो के लिए समृध्दि की लहर अरब देश से भी आती रही है ।अरब देश में काम करनेवाले लगभग ४०० परिवार आजमगढ़ के रहे है । आजमगढ़ का महत्व विद्वान से लेकर मशहूर शायक तक रहे है । राहुल सास्कृतायन से लेकर मशहूर शायर कैफी आजमी तक का धर आजमगढ़ रहा है । लेकिन इस सब के बाबजूद आजमगढ़ की नयी फसल आतंक औऱ दहशत से तैयार हो रही है ।कारण जो भी हो लेकिन अभी जो स्थिति आजमगढ़ की है इसमें यही कहा जा सकता है कि इस आजमगढ़ में आतंकवाद की नई फसल तैयार हो रही है । दिल्ली बम धमाको में गिरफ्तार किये गये ये आतंकी इसके सबूत है ।
    लेकिन सवाल यह है कि आजमगढ़ में आतंक की इस फसल का कारण क्या है ...इसके बीच यह भी हो सकता है कि इन नये चेहरो को आजमगढ़ में अबु सलेम का घर लुभा रहा है । कारण जो भी हो लेकिन आतंक के इस नये चेहरे ने आजमगढ़ की तस्वीर को बदल दिया है ।

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  2. कितने सामान्य शब्दों में मिथिला हीं नहीं पूर्वी भारत के पूरे बाढग्रस्त इलाके के नियति और मजबूरियों की कहानी कहता है ये लोकगीत। इंटरनेट पाठकों के सामने लाने के लिए आभार।

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  3. मंजीत,बाबा नागार्जुन के एक टा कविता यादि आबि रहल अछि जे मिथिलांचल के गरीबी के तीन पांति मे बयान करैत अछि-
    बांसक ओधि उपारि करै छी जारनि...
    हमर दिन की नै घुरतै हे जगतारिणि?

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  4. ati sundar पांचे रुपैया मोरा भैन्सुर के कमाई हो हो, चुनरी रंगायब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!

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