Monday, January 26, 2009

सुनामी

रोहन सिंह दूरदर्शन न्यूज़ के पत्रकार हैं, ऐसे पत्रकार जिनके पास विचार हैं। मेरे साथी होने के साथ ही एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके अंदर में एक अदद अकुलाहट भरी आत्मा है। उनकी कविता सुनामी से नए साल के अपने ब्लॉग लेखन की शुरुआत करना चाह रहा हूं. उनकी इस कविता को कादंबिनी ने पहला पुरस्कार दिया था। उम्मीद है कि आपको भी पसंद आएगी। --गुस्ताख़

हेमिंग्वे,
तुम्हारा बूढा आदमी अभी जिंदा है ,
क्यूंकि लहरों से ऊँची है जिजीविषा,
क्यूंकि समुद्र से संघर्ष अब भी जारी है
समुद्र को हम तबसे जानते हैं
जब उसका रंग हुआ करता था नीला
जैसे कि नीला होता ही आकाश
जैसे कि होता है नीलम
जब उसके पानी में घुला होता था रोमांच
जब मछलियों से थी हमारी दोस्ती और मुंगो के महलो में करते थे विश्राम

हाँ तब समुद्र नीला था,
अब जबकि वो लाल है .....
रक्त जैसा लाल
जानते हैं हम
समुद्र भी बदलता है रंग
और यह भी की हमेशा शांत नही होता समुद्र
सिर्फ मोती ही नही होते उसमे
लहरें भी होती हैं
और आते हैं तूफान
मीलो तक छा जाता है मौत का सन्नाटा
पर फ़िर भी निकलती हैं नौकाएं
फिर आते मछुवारे...... हाथ में लिए पतवार
हेमिंग्वे तुम्हारा बूढा आदमी अभी जिन्दा है
क्यूंकि अब भी बचे हैं दुस्साहसी

रेत पर फ़िर खेलते हैं बच्चे

सूरज फ़िर चमकता है

मदद के लिए हैं कई हाथ


आंसुओ से खारा नही है समुद्र

हाँ हेमिंग्वे तुम्हारा बूढा आदमी अभी जिंदा है

क्युकी अभी भी बची हैं संवेदनाये
जिंदा है आशाऐ


2 comments:

  1. "मीलो तक छा जाता है मौत का सन्नाटा
    पर फ़िर भी निकलती हैं नौकाएं
    फिर आते मछुवारे...... हाथ में लिए पतवार"

    प्रकृति की सुन्दरता, क्रूरता और उनके साथ लड़ते, समन्वय बनाते चलने की मानव की जिजीविषा को बखूबी चित्रित करती है यह कविता |

    (अगर आप बिना किसी हर्रे फिटकरी के कोरियन लैंगुएज सीखना चाहते हैं तो मेरे ब्लॉग http://koreanacademy.blogspot.com/ पर आएं |)

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  2. बहुत सुन्दर !
    घुघूती बासूती

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