Friday, March 27, 2009

गुलज़ार की एक नज़्म

एक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
यहीं पड़ी थी बालकनी में
गोल तिपाही के ऊपर थी
व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी थी
नज़्म के हल्के हल्के सिप मैं
घोल रहा था होठों में
शायद कोई फोन आया था
अन्दर जाकर लौटा तो फिर नज़्म वहां से गायब थी
अब्र के ऊपर नीचे देखा
सूट शफ़क़ की ज़ेब टटोली
झांक के देखा पार उफ़क़ के
कहीं नज़र ना आयी वो नज़्म मुझे
आधी रात आवाज़ सुनी तो उठ के देखा
टांग पे टांग रख के आकाश में
चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
दुनिया भर को अपनी कह के
नज़्म सुनाने बैठा था

10 comments:

  1. गुलजार साब,,,,,,कुछ नहीं बस वह नज्म आपको कोई लौटा दे। सोचता हूं कितना शातिर होगा जो व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी चीज को उठा लिया।

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  2. टांग पे टांग रख के आकाश में
    चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
    दुनिया भर को अपनी कह के
    नज़्म सुनाने बैठा था pyaara ahsaas hai

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  3. टांग पे टांग रख के आकाश में
    चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
    दुनिया भर को अपनी कह के
    नज़्म सुनाने बैठा था
    waah bahut hi sunder

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  4. जिसे ढूंडा इधर -उधर ,उड़ा ले गया हिमकर उधर .
    बहुत सुन्दर

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  5. गुलज़ार की ये बेहतरीन नज़्म पढ़वाने के लिए शुक्रिया

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  6. बेहतरीन नज़्म शुक्रिया

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  7. दूर की कौडी लाये हो ......गजब !स्रोत कौन सा है....

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  8. आधी रात आवाज़ सुनी तो उठ के देखा
    टांग पे टांग रख के आकाश में
    चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
    दुनिया भर को अपनी कह के
    नज़्म सुनाने बैठा था
    भई वाह! क्या कल्पना है। बहुत खूब। बधाई स्वीकारें।

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  9. एक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
    यहीं पड़ी थी बालकनी में
    गोल तिपाही के ऊपर थी
    व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी थी
    नज़्म के हल्के हल्के सिप मैं
    घोल रहा था होठों में
    शायद कोई फोन आया था ...बेहतरीन नज़्म

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