पूर्वोत्तर का सौंदर्य वास्तव में अतुलनीय है। यहां की नदियां इतनी बलखाती और सुंदर हैं कि बस मन मोह लें। पहाड़ों के नीचे उतरते बादल... और हम ऊपर.. लगता था हम स्वर्ग की यात्रा पर हैं।
दो मेगापिक्सल के कैमरे से जितना सौंदर्य बन पड़ा मैंने कैद करने की कोशिश की है।
दूसरी तरफ पहाड़ों का पूरा परिवार था। देखिय़े तो सही...
Wednesday, April 28, 2010
Monday, April 26, 2010
तस्वीरः जहां मैं झोंपड़ी बनाऊंगा...
गुस्ताख़ बहुत दिनों से यह बताने के चक्कर में था कि उसका ड्रीमलैंड क्या है। पहले बचपन में सोचता था कि स्विट्ज़रलैंड बहुत खूबसूरत है। वहां जाना चाहिए और इंशाअल्लाह एक बार जाऊंगा ज़रुर। लेकिन पहले अपने देश की खूबसूरती को एक बार निहार लूं...यह तमन्ना भी है।
देश में गोवा से लेकर झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, उडीसा तमाम राज्यों मे घूमा हूं। हर राज्य की अपनी अलग खूबसूरती है..लेकिन अरुणाचल में जिस जगह का उल्लेख मैं कर रहा हूं, वह दिल के बहुत करीब है।
मेरी सलाह है कि साहित्यकार बंधु उस जगह जा सकते हैं और बहुत महान साहित्य की रचना कर सकते हैं।
नीचे की तस्वीर को ध्यान से देखिए, इस नदी के किनारे मैं अपनी झोंपड़ी बनाऊंगा। दिन भर मछली मारूंगा और दिन ढले घर आऊंगा, मछली-भात खाऊंगा।
हालांकि दो मेगापिक्सल के मेरे मोबाइल कैमरे में सौंदर्य बहुत निखर कर नहीं आया लेकिन अपनी फोटॉग्रफी की कला पर आत्ममुग्ध हूं।
नदी का पानी कांच की तरह साफ था। इतना कि इसकी तली के पत्थर भी साफ दिखते थे। गुस्ताख तो भई, दिल से गया इसे देखकर..इस नदी के दूसरी तरफ तत्व-सेवन की भी व्यवस्था है। सस्ते दामों में खुदा बोतलों में बंद होकर मिलते हैं। दारुबाज़ मित्रों के लिए आनंद का उत्तम प्रबंद होगा।
तेजू शहर की कुल 211 दुकानों में से 47 लिकर शॉप थीं..।
माछ-भात खाने को आप सभी आमंत्रित हैं...शाकाहारियों के लिए भी व्यवस्था की जाएगी।
देश में गोवा से लेकर झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, उडीसा तमाम राज्यों मे घूमा हूं। हर राज्य की अपनी अलग खूबसूरती है..लेकिन अरुणाचल में जिस जगह का उल्लेख मैं कर रहा हूं, वह दिल के बहुत करीब है।
मेरी सलाह है कि साहित्यकार बंधु उस जगह जा सकते हैं और बहुत महान साहित्य की रचना कर सकते हैं।
नीचे की तस्वीर को ध्यान से देखिए, इस नदी के किनारे मैं अपनी झोंपड़ी बनाऊंगा। दिन भर मछली मारूंगा और दिन ढले घर आऊंगा, मछली-भात खाऊंगा।
नदी का पानी कांच की तरह साफ था। इतना कि इसकी तली के पत्थर भी साफ दिखते थे। गुस्ताख तो भई, दिल से गया इसे देखकर..इस नदी के दूसरी तरफ तत्व-सेवन की भी व्यवस्था है। सस्ते दामों में खुदा बोतलों में बंद होकर मिलते हैं। दारुबाज़ मित्रों के लिए आनंद का उत्तम प्रबंद होगा।
तेजू शहर की कुल 211 दुकानों में से 47 लिकर शॉप थीं..।
माछ-भात खाने को आप सभी आमंत्रित हैं...शाकाहारियों के लिए भी व्यवस्था की जाएगी।
Sunday, April 25, 2010
कविता- कप की कतार
आज विज्ञान भवन में पंचायती राज दिवस का समारोह मनाया गया। प्रधानमंत्री से लेकर पंचायत के सरपंच तक मौजूद थे। सीपी जोशी से लेकर मोंटेक सिंह अहलवालिया तक बोले। खूब बोले। पंचायत प्रतिनिधि भी बोले। वो भी खूब बोले। पंचायत के प्रतिनिधियों ने और अधिक फंड की मांग की और अधिक अधिकारों की मांग की।
हम सोचते रहे कि जितना इन्हें मिल रहा है, फंड ..उसका ये क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। बजाय इसके कि आम गांव वालों पर धौंस गालिब किया जाए।
बजाय इसके कि नहर का पानी गरीब-गुरबे की बजाय इनकी फसलों को पहले सींच दे।
बहरहाल, इनने बातों के बाद खूब चाय पी। चाय़ के बाद कपों का अंबार लगा दिया। कप के आगे कप, कप के पीछे कप। चीटर के दो आगे चीटर, चीटर के दो पीछे चीटर..मन में कुछ पकने लगा। जब से कैमरे वाला मोबाईल हाथ में आया है। मन कुछ चंचल-सा हो रखा है। कुछ न कुछ खींचने का मन होता है। सो एक फोटू खींच लिया, और मन में भी कुछ कविता-सा उतर गया। पेश है---
चाय में डूबा संसार देखिए,
कप देखिए और कप की कतार देखिए,
देश की समस्या पर बैठक के बीच,
कुरकुरे बिस्कुट का पहाड़ देखिए।
कप देखिए और कप की कतार देखिए।
परिणाम होगा क्या, प्रभु भी जानते नहीं
चाय से भी गरम, ल़फ़्फ़ाज़ी का बाज़ार देखिए,
कप देखिए और कप की कतार देखिए।
दिल्ली की हवा में यूं ही उड़ते हैं सौ के नोट
नेतीजी के मुख से टपकती लार देखिए
कप देखिए और कप की कतार देखिए।
पंचायत के नाम पर, अपना विकास हो
पंचो का ये असली जुगाड़ देखिए,
कप देखिए और कप की कतार देखिए।
Friday, April 23, 2010
अरुणाचल में परशुराम कुंड का सफर
यह अटपटा लग सकता है कि अरुणाचल में कोई परशुराम कुंड होगा, लेकिन यह सच है। तेजू जाने के रास्ते में हाइलुंग के पास एक जगह है जिससे पहले चीन के सीमा से दिहांग नदी भारत में प्रवेश करती है। लेकिन स जगह पर आते ही उसका नाम हो जाता है ब्रह्मपुत्र..
यहां नदी की धारा हहराती-गरजती आती है। मुख्य सड़क जो कि हाइवे है, और महज 12 फुट चौड़ी है--आपको गाड़ी छोड़कर पैदल ही सीढियों से पहाडी पर चढना और फिर ढलान पर उतरना होगा फिर होंगे ब्रह्मपुत्र के दर्शन..
यहां नदी की धारा हहराती-गरजती आती है। मुख्य सड़क जो कि हाइवे है, और महज 12 फुट चौड़ी है--आपको गाड़ी छोड़कर पैदल ही सीढियों से पहाडी पर चढना और फिर ढलान पर उतरना होगा फिर होंगे ब्रह्मपुत्र के दर्शन..
दरअसल मान्यता है कि यहां पर परशुराम आए थे और मातृ हत्या के बाद प्रायश्चित किया था। इसी से इस जगह को परशुराम कुंड कहते हैं। जब हम वहां गए तो ब्रह्म कुंड या परशुराम कुंड में पानी कम था, लेकिन कुछ ही देर में लबालब भर गया।
जैसे ही आप परशुराम कुंड के लिए चढाई शुरु करेंगे वनस्पतियों की कचाईन गंध नाकों में घर कर जाएगी। ऊपर से देखिए तो परशुराम कुंड ऐसा दिखता है। फोटो में दिख रहा, छोटा चट्टान कुंड का वह बड़ा पत्थर है।
Monday, April 19, 2010
कलिकाल कलियुग की तस्वीर-एक्सक्लूसिव
किसी ने न जाना होगा कि कलिकाल में एक ऐसा महावीर गुस्ताख पैदा होगा जो सीधे कलियुग की ही तस्वीर खींच लाएगा। किंतु हे सुधी पाठकों, ऐसा ही है।
अरुणाचल की राह में जब यह तुच्छ प्राणी असम के बोकागांव में था, यह कस्बा काजीरंगा की सरहद में हैं- तो चाय की लत की वजह से एक गांव में गाड़ी रोक दी गई। हाईवे के एक ओर बड़ा सा गेट बना था और गेट के नीचे बनी थी एक मूर्ति। हमने सुना था कि बोकागांव की एक मिठाई लेमचा बहुत मशहूर है..लेकिन हम जो तस्वीर ले आएं हैं वह और भी बेजोड़ है।
सबसे नीचे कछुआ, उस पर हाथी..और उसके ऊपर गधा..ठीक कलियुग की तस्वीर है, जहां पराक्रम करने वाले नहीं, बल्कि परिक्रमा करने वाले जानवर हाथी जैसे पराक्रमी की भी .. ले सकते हैं।
गौर फरमाइए.....
अरुणाचल की राह में जब यह तुच्छ प्राणी असम के बोकागांव में था, यह कस्बा काजीरंगा की सरहद में हैं- तो चाय की लत की वजह से एक गांव में गाड़ी रोक दी गई। हाईवे के एक ओर बड़ा सा गेट बना था और गेट के नीचे बनी थी एक मूर्ति। हमने सुना था कि बोकागांव की एक मिठाई लेमचा बहुत मशहूर है..लेकिन हम जो तस्वीर ले आएं हैं वह और भी बेजोड़ है।
सबसे नीचे कछुआ, उस पर हाथी..और उसके ऊपर गधा..ठीक कलियुग की तस्वीर है, जहां पराक्रम करने वाले नहीं, बल्कि परिक्रमा करने वाले जानवर हाथी जैसे पराक्रमी की भी .. ले सकते हैं।
गौर फरमाइए.....
Sunday, April 18, 2010
मिथिला के जानकारों से मदद चाहिए
पाठकों से निवेदन है कि उनमें से जो भी मिथिला की लोककथाओं से परिचित हों, कृपया उन्हें जानने में मेरी मदद करें। लोरिक-लोरिकाईन, दीना-भद्री, राजा सलहेस, कुमार बिर्धबान या ऐसे ही लोककथा नायकों की कहानी से अगर आप परिचित हैं तो कृपया मुझे बताएं।
दरअसल, मैं मिथिला से हूं और अपने जड़ों को जानना चाहता हूं। मदद करें, सदैव आभारी रहूंगा। मुझे मेल कर पाएं वो कहानियां तो सदैव ऋणी रहूंगा।
सादर
मंजीत
दरअसल, मैं मिथिला से हूं और अपने जड़ों को जानना चाहता हूं। मदद करें, सदैव आभारी रहूंगा। मुझे मेल कर पाएं वो कहानियां तो सदैव ऋणी रहूंगा।
सादर
मंजीत
Friday, April 2, 2010
झारखण्ड में मेला: तस्वीरों में
पिछले दिनों मैं अपने कस्बे गया था, वहा एक मेला लगा था, मेले के रंग कैमरे की नज़र स कुछ इस तरह दिखे मुझे, पेश-ए-नज़र है....