Sunday, April 25, 2010

कविता- कप की कतार

आज विज्ञान भवन में पंचायती राज दिवस का समारोह मनाया गया। प्रधानमंत्री से लेकर पंचायत के सरपंच तक मौजूद थे। सीपी जोशी से लेकर मोंटेक सिंह अहलवालिया तक बोले। खूब बोले। पंचायत प्रतिनिधि भी बोले। वो भी खूब बोले। पंचायत के प्रतिनिधियों ने और अधिक फंड की मांग की और अधिक अधिकारों की मांग की।

हम सोचते रहे कि जितना इन्हें मिल रहा है, फंड ..उसका ये क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। बजाय इसके कि आम गांव वालों पर धौंस गालिब किया जाए।
 बजाय इसके कि नहर का पानी गरीब-गुरबे की बजाय इनकी फसलों को पहले सींच दे।

बहरहाल, इनने बातों के बाद खूब चाय पी। चाय़ के बाद कपों  का अंबार लगा दिया। कप के आगे कप, कप के पीछे कप। चीटर के दो आगे चीटर, चीटर के दो पीछे चीटर..मन में कुछ पकने लगा। जब से कैमरे वाला मोबाईल हाथ में आया है। मन कुछ चंचल-सा हो रखा है। कुछ न कुछ खींचने का मन होता है। सो एक फोटू खींच लिया, और मन में भी कुछ कविता-सा उतर गया। पेश है---

चाय में डूबा संसार देखिए,
कप देखिए और कप की कतार देखिए,


देश की समस्या पर बैठक के बीच,
कुरकुरे बिस्कुट का पहाड़ देखिए।
कप देखिए और कप की कतार देखिए।


परिणाम होगा क्या, प्रभु भी जानते नहीं
चाय से भी गरम, ल़फ़्फ़ाज़ी का बाज़ार देखिए,
कप देखिए और कप की कतार देखिए।


दिल्ली  की हवा में यूं ही उड़ते हैं सौ के नोट
नेतीजी के मुख से टपकती लार देखिए
कप देखिए और कप की कतार देखिए।


पंचायत के नाम पर, अपना विकास हो
पंचो का ये असली जुगाड़ देखिए,
कप देखिए और कप की कतार देखिए।

3 comments:

  1. bahut khoob chai ke cupon se bhrastachar pe chot...waah

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  2. फंड मिल भर जाये एक बार,

    फिर आप फंड का निस्तार देखिये...
    चेहरे पर इनके खुशियाँ अपार देखिये.


    बेहतरीन!

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