हवा का रुख़,
भांपते हैं रखे पेपरवेट,
और कलमें कर रही हैं,
काग़ज़ी आखेट।
सुरक्षित खुद को समझते,
पहनकर इस्पात,
राष्ट्र को संदेश, करते
सौ टके की बात।
सुनों उनकी,
अक्षरों से नहीं जिनकी भेंट
बोलती लू,
वनस्पतियों पर कठिन हमला,
किंतु उनका क्या कि जिनके
घर स्वयं शिमला
ये हरे हैं
भले सिर पर तप रहा हो जेठ
भांपते हैं रखे पेपरवेट,
और कलमें कर रही हैं,
काग़ज़ी आखेट।
सुरक्षित खुद को समझते,
पहनकर इस्पात,
राष्ट्र को संदेश, करते
सौ टके की बात।
सुनों उनकी,
अक्षरों से नहीं जिनकी भेंट
बोलती लू,
वनस्पतियों पर कठिन हमला,
किंतु उनका क्या कि जिनके
घर स्वयं शिमला
ये हरे हैं
भले सिर पर तप रहा हो जेठ
waah badhiya aur rochak lekhan..
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