Monday, September 20, 2010

खुले बालों वाली लड़की- पहली किस्त


( बहुत दिनों तक नॉन फिक्शन लिखने के बाद एक दिन मेरे दिल में ख्याल आया कि फिक्शन लिखा जाए। मुझे इस मामले में हमेशा अपनी क्षमता पर संदेह रहा है। ऐसे में अपनी पहली कथा एक प्रेम-कथा के रुप में लिख  रहा हूं। मुझे इसकी गुणवत्ता और साहित्यकता पर भी संदेह हैं..लेकिन बस अपनी कहानी रचने की क्षमता का जांचने के लिए लिख रहा हूं। हां, ये  भी बता दूं लगे हाथ की इस कहानी में वर्णित सभी पात्र काल्पनिक हैं। घटनाएं सत्य हैं लेकिन उनका किसी भी जीवित और मृत व्यक्ति से सीधा संबंध नही है-गुस्ताख मंजीत)
खुले बालों वाली लड़की
  
भादों की रात...बाहर बादलों का साम्राज्य था। काले दिन भी गुजरे थे रातें भी काली ही थीं...बीच-बीच में झींगुरों का कोरस सुनाई दे रहा था। इन आवाजो से बेखबर अभिजीत अभी-अभी सोया था। सोया क्या था..नीद की झोंके आए थे।
इन झोंके से ऐन पहले प्रशांत के साथ अभिजीत ने एंटीक्विटी की एक बोतल खाली की थी। यह भूलते हुए कि डॉक्टर ने उसे दारु न पीने की उम्दा सलाह दी है। इस चेतावनी के साथ कि अगर उसे चार-पांच साल और जीना है तो सिगरेट और शराब से परहेज करना ही होगा।.
लेकिन पांच पैग के बाद प्रशांत पलंग के नीचे ही घुलट गया। उसे सुबह की शिफ्ट में दफ्तर जाना था। अभिजीत को बचपन से ही जल्दी नींद नही आती। आखिरी पैग के बाद भी उसके ज्ञानचक्षु खुले ही थे। कि बस वाइव्रेशन मोड में किनारे पड़ा मोबाइल घुरघुराया...अनामिका का संक्षिप्त मेसेज था...अभि, फॉरगेट द पास्ट...।
गोल्ड फ्लेक के धुएं के बीच अभिजीत ने दिमाग पर बहुत जोर डाला कि यह शब्द उसने कही और भी पढ़ा था। उसे से याद नही आया था। फिर एंटीक्विटी के चार लार्ज पेगों ने अपना असर दिखाना शुरु कर दिया था। नींद को झोंके आने लगे थे..अना....
अनामिका...। अनामिका...।
अनामिका उसकी जिदगी का सबसे मुलायम लम्हा थी। 
 सबसे मुलायम इसलिए गोकि अभिजीत की जिंदगी में मुलायम लम्हे कम ही आए थे। बेहद गरीबी में काटे दिन, पैसे-पैसे को मोहताज। कॉलेज के दिनों में ट्यूशन पढाकर अपनी पढाई पूरी करने वाले अभिजीत के लिए दिन मुलायम हो भी नही सकते थे।
पिता किसानी करते थे, और उन्ही दिनों ईश्वर के  पास चले गए, जब ऐसे घरो में फाकाकशी की नौबत आ जाने की पूरी आशंका होती है।
...जस्ट फॉरगेट द पास्ट..
अतीत को भूलना इतना आसान भी नही होता। अनामिका की आंखे इतनी मदभरी होंगी, उसने कभी सोचा भी नही थी। अभिजीत की एक दोस्त, कोमल ने बातो-बातों में कभी जिक्र किया था कि अनामिका नाम की उसकी एक दोस्त ने हाल ही में जॉइन किया है। अभिजीत के ही अखबार में, डेस्क पर।
न्यूज़ रुम में एक कोने में क्वॉर्क एक्सप्रैस पर पेज बनाने में मशगूल डेस्क के पत्रकारों के हुजूम में उसने अपनी रिपोर्ट का जिक्र किया, और ऐसे ही पूछ बैठा, ये अनामिका कौन है...?
अतीत के परते ऐसे ही खुलती जाती हैं प्याज की तरह। हर तह में आपको रुलाती हुई।
मेसेज भेजने से क्या होता है, जस्ट फॉरगेट द पास्ट?
झींगुरों की आवाज तेज हो गई थी और बाहर बारिश भी।

इस बार साली दिल्ली को बहा देंगे ये भैनचो..बादल। साली कॉमनवेल्थ खेलो का कचरा कर के ही मानेंगे। सितंबर के आखिरी दिन आ गए हैं..प्रशांत बुड़बुड़ा रहा था। उसकी देशभक्ति से भी ज्यादा ऑफिस पहुंचने में देरी से वह हलकान हो रहा था।

पिक-अप की कैब अभी तक आई नही थी।
 ...जैसे ही अभिजीत ने पूछा था ये अनामिका कौन है...एक बड़ी-बड़ी कजरारी आंखों ने उसका पीछा किया था। इस उत्तर के साथ,...देख लो मै ही हूं अनामिका।
जारी


4 comments:

  1. Nice.
    Of course u write fine either it article or any story.

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  2. सच में आप गुस्ताख़ भी हैं और मनजीत भी।
    शुरु में ग़ुस्ताख़ी की कि अपनी कहानी रचने की क्षमता का जांचने के लिए लिख रहा हूं। और न जाने क्या क्या और जो कहानी की शुरुआत की और इस पोस्ट के अंत तक रचा उससे मन तो जीत ही लिया है। अब छोड़्ने वाला नहीं हूं, पूर पढ़्के ही रहूंगा।
    पनी कहानी रचने की क्षमता का जांचने के लिए लिख रहा हूं। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    और समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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  3. जारी रखो....पढ़ रहा हूँ ओर लग रहा है बिना एडिट करे तुम ज्यादा अच्छा लिखते हो

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  4. Wow --aapki fiction likhne ka style adbhut --bahot achha laga

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