बहुत पहले, दूरदर्शन पर फिलर चला करता था...मिले सुर मेरा तुम्हारा..। दो धारावाहिकों के बीच-खासकर रविवार को-हमें मिले सुर मेरा तुम्हारा सुनने को मिलता था। एकदम शुरुआत में ही गुरुगंभीर आवाज, दिलकश लगती थी।
उसके बाद इस गाने में दूसरी भाषाएं आती थीं...।
हमने उसी गानेसे जाना कि इस गुरुगंभीर आवाज के मालिक पंडित भीमसेन जोशी हैं। आज सुबह दफ्तर जाते ही टीवी स्क्रीन्स चीख-चीख कर भारत माता के एक और रत्न कम हो जाने का ऐलान कर रहे थे। फिर बाईट लेने के लिए मुझे बिजवासन जाना पड़ा, पंडित जसराज के घर। रास्ते भर यही सोचता रहा कि मिले सुर मेरा से शुरु हुआ जोशी जी से मेरा परिचय आज कैसे अनंतिम रुप ले रहा है।
हम बड़े हुए तो फिर पंडित जी के कई गाने सुने..उनकी महानता के बारे में ज्यादा जाना। तमाम छवियों के बाद भी मिले सुर मेरा तुम्हारा, मेरे दिल के बहुत करीब रहा, और करीब रहे, श्वेत-धवल वस्त्रो में अवतरित होते पंडित जी।
इस बीच पंडित जसराज के घर पहुंच गया। पंडित जसराज भावुक हो गए, कहा, सन 42 में पहली बार जोशी जी को सुना...उसी दिन से उनका भक्त हो गया। जोशी जी सभी संगीतकारों की इज्जत करते थे। खासकर, अपने गुरु को बेहद अहम स्थान देते थे। सवाई गंधर्व के नाम पर जोशी जी ने जो संगीत महोत्सव शुरु किया, उसमें कोई भी गायक आमंत्रित होकर ही धन्य मानता है खुद को। खुद पंडित जसराज ने 89 को छोड़कर हर बार शिरकत की है उस संगीत समारोह में।
बहरहाल, अफ्तर वापसी में रास्ते में मैं फिर अपने अतीत में चला गया। जब पढ़ता था तो म्युजिक सिस्टम खरीदने के पैसे नहीं थे पास में। नौकरी लगी तो पहली तनख्वाह में मैंने डीवीडी प्लेयर खरीदी थी। और उसके साथ जो पहली सीडी खरीदी थी वो थी राम धुन। इस अलबम में लता मंगेशकर और पंडित भीमसेन जोशी ने राम के भजन गाए हैं।
हालांकि, धर्म से मेरा कोई बड़ा नाता रहा नही कभी। लेकिन संगीत के लिए कव्वाली और भजनों की गहराईया् हमेशा आकर्षित करती रही हैं।
लता ताई भी उस अलबम में जोशी जी के सामने संघर्ष करती दिख रही थी, और पंडित जी की पुरकशिश आवाज, बेदाग, निर्दोष, निष्पाप...एक दम अंतरतम में उतरती चली गई।
जोशी जी के सुर और स्वर थे...राम प्रभु की भद्रता का, सभ्यता का मान धरिए, राम का गुणगान करिए। लगा स्वर ही ईश्वर है।
स्वरों का उतार-चढाव, अद्भुत गहराई...मेरे पास शब्द नही हैं। उस आनंद अखंड घने क्षण को व्यक्त करने के लिए...। जोशी जी को सिर्फ एक बार आमने-सामने मंच पर सुन पाया, एक बार फिर डीडी का धन्यवाद कि उसने मुझे बहुत पहले इस कवरेज पर भेजा था।
दुबारा मौका आया नहीं, जोशी जी बीमार पड़ गए।
इस बीच कहीं फिल्म देख रहा था, फिल्म शुरू होने से पहले जन-गण-मन गायन हुआ, एक बार फिर देश को सदेश देते पंडित भीमसेन जोशी सामने थे।
अब उनसे मिलना होगा भी नहीं।
हर इंसान को एक न एक दिन जाना होता है, पंडित जी भी चले गए। लेकिन अपनी आवाज के जरिए भारत भर को एक कर हर जाति संप्रदाय के सुर करने वाले पंडित जी हमेशा जीवित रहेंगे, हमारे दिलों में।
उसके बाद इस गाने में दूसरी भाषाएं आती थीं...।
हमने उसी गानेसे जाना कि इस गुरुगंभीर आवाज के मालिक पंडित भीमसेन जोशी हैं। आज सुबह दफ्तर जाते ही टीवी स्क्रीन्स चीख-चीख कर भारत माता के एक और रत्न कम हो जाने का ऐलान कर रहे थे। फिर बाईट लेने के लिए मुझे बिजवासन जाना पड़ा, पंडित जसराज के घर। रास्ते भर यही सोचता रहा कि मिले सुर मेरा से शुरु हुआ जोशी जी से मेरा परिचय आज कैसे अनंतिम रुप ले रहा है।
हम बड़े हुए तो फिर पंडित जी के कई गाने सुने..उनकी महानता के बारे में ज्यादा जाना। तमाम छवियों के बाद भी मिले सुर मेरा तुम्हारा, मेरे दिल के बहुत करीब रहा, और करीब रहे, श्वेत-धवल वस्त्रो में अवतरित होते पंडित जी।
इस बीच पंडित जसराज के घर पहुंच गया। पंडित जसराज भावुक हो गए, कहा, सन 42 में पहली बार जोशी जी को सुना...उसी दिन से उनका भक्त हो गया। जोशी जी सभी संगीतकारों की इज्जत करते थे। खासकर, अपने गुरु को बेहद अहम स्थान देते थे। सवाई गंधर्व के नाम पर जोशी जी ने जो संगीत महोत्सव शुरु किया, उसमें कोई भी गायक आमंत्रित होकर ही धन्य मानता है खुद को। खुद पंडित जसराज ने 89 को छोड़कर हर बार शिरकत की है उस संगीत समारोह में।
बहरहाल, अफ्तर वापसी में रास्ते में मैं फिर अपने अतीत में चला गया। जब पढ़ता था तो म्युजिक सिस्टम खरीदने के पैसे नहीं थे पास में। नौकरी लगी तो पहली तनख्वाह में मैंने डीवीडी प्लेयर खरीदी थी। और उसके साथ जो पहली सीडी खरीदी थी वो थी राम धुन। इस अलबम में लता मंगेशकर और पंडित भीमसेन जोशी ने राम के भजन गाए हैं।
हालांकि, धर्म से मेरा कोई बड़ा नाता रहा नही कभी। लेकिन संगीत के लिए कव्वाली और भजनों की गहराईया् हमेशा आकर्षित करती रही हैं।
लता ताई भी उस अलबम में जोशी जी के सामने संघर्ष करती दिख रही थी, और पंडित जी की पुरकशिश आवाज, बेदाग, निर्दोष, निष्पाप...एक दम अंतरतम में उतरती चली गई।
स्वरों का उतार-चढाव, अद्भुत गहराई...मेरे पास शब्द नही हैं। उस आनंद अखंड घने क्षण को व्यक्त करने के लिए...। जोशी जी को सिर्फ एक बार आमने-सामने मंच पर सुन पाया, एक बार फिर डीडी का धन्यवाद कि उसने मुझे बहुत पहले इस कवरेज पर भेजा था।
दुबारा मौका आया नहीं, जोशी जी बीमार पड़ गए।
इस बीच कहीं फिल्म देख रहा था, फिल्म शुरू होने से पहले जन-गण-मन गायन हुआ, एक बार फिर देश को सदेश देते पंडित भीमसेन जोशी सामने थे।
अब उनसे मिलना होगा भी नहीं।
हर इंसान को एक न एक दिन जाना होता है, पंडित जी भी चले गए। लेकिन अपनी आवाज के जरिए भारत भर को एक कर हर जाति संप्रदाय के सुर करने वाले पंडित जी हमेशा जीवित रहेंगे, हमारे दिलों में।
swar ke badshah pandit bhimsen joshi ka gana " mile sur mera tumhara" vo to mene bhi apne bachpan ke din me suna tha. kafi popular hua tha aur hai. Desh ke prati rembhavna jagane wala ye gane me pandit bhimsen joshiji ne apni awaz di thi.
ReplyDeleteReally he is still with us by this most famous song.
कभी कभी कुच्ह यादे इतनी गहरी होती है कि उनके निशान आसनी से नही मिटते, पंडित जी का जाना भी ऐसी ही याद है और सच तो यह है कि उनको भूलना ही कौन चाहेगा?
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