बीमार हूं..। कमर और घुटने में दर्द है। लगता है किसी ग़ज़ल को सुन लिया है खुदा ने।
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह,
फिर चाहे दीवाना कर दे, या अल्लाह..।
अल्लाह मियां ने इतना दर्द दे दिया कि न सोते बन रहा न जागते, न उठते बन रहा न बैठते..। दर्द ने दीवाना कर दिया है..। सुना है मुहब्बत में भी दर्द होता है होता होगा..लेकिन तय है वह दर्द कमर और घुटने का तो नहीं ही होगा। कल ही जन्मदिन था..। ढेरों बधाईयां मिलीं..। लेकिन इतना बुढापा भी नहीं आ गया। टर्निंग 30 क्या बुढापे की निशानियां लेकर आ जाता है..?
लगता है बधाईयों का बोझ उठाते-उठाते कमर में मोट आ गई..। आज सुबह डॉक्टर के पास गया। कमर में दर्द की बात सुन कर डॉक्टर हंसा..उसकी आँखों में एक किस्म की शरारत थी। मजाक टाइप..बाली उमरिया में कमर दर्द..। फिर जैसी की उम्मीद थी, उसने दो -तीन टेस्ट ठोंक दिए।
ब्लड प्रेशर चेक किया। वह दुरुस्त। मुझे चैन आय़ा। फिर एक सिरिंज खून निकाल लिया। मैंने सोचा, एक बूंद से टेस्ट करेगा, बाकी या तो खुद पिएगा या फिर बेच देगा। कई डॉक्टरों में नेताओं वाले गुण आ जाते हैं।
फिर जब कंपाउंडर ने वजन किया, तो सहसा मुझे भरोसा ही नहीं हुआ। 74 किलो..मेरे कद के हिसाब से मेरा वजन 73 किलो तक हो सकता है। लेकिन एक किलो सरप्लस जीवन में पहली बार। विकास सारथी ने जब मेरे छात्र जीवन का फोटो अपलोड कर दिया था, तो कई यों को भरोसा ही नहीं हुआ। कई लोग मानने लगे कि मैंने पढाई-लिखाई भारतीय जनसंचार संस्थान से नहीं इथयोपिया या सोमालिया से पूरी की है।
मैंने मुंहतोड़ किस्म के उत्तर देने तो चाहे लेकिन फेसबुकिया मित्र ज्यादा वाचाल निकले। उन्होने साबित कर दिया कि उस दौरान 54 किलो का वज़न मैं अपनी मर्जी से और हरामीपने की वजह से ढो रहा था। बाकी चिंरंतर सत्य तो यही है कि सन 94 से 2005 तक मैं 54 किलो का बना रहा।
वजन बढने की हिंदू विकास दर आगे भी कायम रही 2010 के जून तक के सांख्यिकीय आंकड़े यह साबित करने के लिए काफी है कि मैं 63 किलो पर स्थिर था। लेकिन सिर्फ छह महीने मे शरीर उदारीकृत बाजार-व्यवस्था का हिस्सा होकर, विश्व बैंक के लोन से चलने लगा। वजन इतना बढ़ जाएगा इसकी खुशफहमी कभी थी ही नहीं।
जीवन में पहली बार वजन कम करने की चिंता की। यह बेटी के ब्याह के बाद बाप के आंसू की तरह खुशी देने वाली चिंता जैसी लगी आज दिन भर।
लेकिन कमर का दर्द चिंता दे रहा है असल वाली..।
बाली उमरिया में दरद फूटे हो रामा....हमरे जौबन में लग गइल आग हो रामा...
दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह,
फिर चाहे दीवाना कर दे, या अल्लाह..।
अल्लाह मियां ने इतना दर्द दे दिया कि न सोते बन रहा न जागते, न उठते बन रहा न बैठते..। दर्द ने दीवाना कर दिया है..। सुना है मुहब्बत में भी दर्द होता है होता होगा..लेकिन तय है वह दर्द कमर और घुटने का तो नहीं ही होगा। कल ही जन्मदिन था..। ढेरों बधाईयां मिलीं..। लेकिन इतना बुढापा भी नहीं आ गया। टर्निंग 30 क्या बुढापे की निशानियां लेकर आ जाता है..?
लगता है बधाईयों का बोझ उठाते-उठाते कमर में मोट आ गई..। आज सुबह डॉक्टर के पास गया। कमर में दर्द की बात सुन कर डॉक्टर हंसा..उसकी आँखों में एक किस्म की शरारत थी। मजाक टाइप..बाली उमरिया में कमर दर्द..। फिर जैसी की उम्मीद थी, उसने दो -तीन टेस्ट ठोंक दिए।
ब्लड प्रेशर चेक किया। वह दुरुस्त। मुझे चैन आय़ा। फिर एक सिरिंज खून निकाल लिया। मैंने सोचा, एक बूंद से टेस्ट करेगा, बाकी या तो खुद पिएगा या फिर बेच देगा। कई डॉक्टरों में नेताओं वाले गुण आ जाते हैं।
फिर जब कंपाउंडर ने वजन किया, तो सहसा मुझे भरोसा ही नहीं हुआ। 74 किलो..मेरे कद के हिसाब से मेरा वजन 73 किलो तक हो सकता है। लेकिन एक किलो सरप्लस जीवन में पहली बार। विकास सारथी ने जब मेरे छात्र जीवन का फोटो अपलोड कर दिया था, तो कई यों को भरोसा ही नहीं हुआ। कई लोग मानने लगे कि मैंने पढाई-लिखाई भारतीय जनसंचार संस्थान से नहीं इथयोपिया या सोमालिया से पूरी की है।
मैंने मुंहतोड़ किस्म के उत्तर देने तो चाहे लेकिन फेसबुकिया मित्र ज्यादा वाचाल निकले। उन्होने साबित कर दिया कि उस दौरान 54 किलो का वज़न मैं अपनी मर्जी से और हरामीपने की वजह से ढो रहा था। बाकी चिंरंतर सत्य तो यही है कि सन 94 से 2005 तक मैं 54 किलो का बना रहा।
वजन बढने की हिंदू विकास दर आगे भी कायम रही 2010 के जून तक के सांख्यिकीय आंकड़े यह साबित करने के लिए काफी है कि मैं 63 किलो पर स्थिर था। लेकिन सिर्फ छह महीने मे शरीर उदारीकृत बाजार-व्यवस्था का हिस्सा होकर, विश्व बैंक के लोन से चलने लगा। वजन इतना बढ़ जाएगा इसकी खुशफहमी कभी थी ही नहीं।
जीवन में पहली बार वजन कम करने की चिंता की। यह बेटी के ब्याह के बाद बाप के आंसू की तरह खुशी देने वाली चिंता जैसी लगी आज दिन भर।
लेकिन कमर का दर्द चिंता दे रहा है असल वाली..।
बाली उमरिया में दरद फूटे हो रामा....हमरे जौबन में लग गइल आग हो रामा...
हो चुकी मुलाकात अभी सलाम बाकी है
ReplyDeleteतुम्हारे नाम की दो घूट शराब बाकी है
तुमको मुबारक हो यह खुशियों का सामियाना
हमारा दर्द का अभी इलाज़ बाकी है..........
अल्लाह करे आपका कमर दर्द निगोड़ी जवानी के साथ जाता रहे।
कमर को कमर ही रहने दें कमरा न बनायें...बना दिया तो भाई कमर दर्द आलथी पालथी मार के बैठ जाएगा...चिंता न करें कहीं सोते हुए ठंडी हवा लग गयी होगी...दो चार दिन कोई आयोडेक्स टाइप की चीज़ मलें और मस्त रहें...
ReplyDeleteनीरज
कमर का दर्द तो पा ही लिया आपने, खुदा के फज़ल से, अब फलते-फूलते रहें आप.
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