भारत की टीम के तीसरे टेस्ट मैच भी हारने के बाद, मैं कोई विशेषण नहीं जोड़ूंगा, कुमार आलोक ने अपने फेसबुक स्टेटस को कुछ यूं अपडेट किया है, "भारतीय क्रिकेट टीम की इस हार ने स्पस्ट कर दिया कि खूब खेलो आपीएल..देश को झोंक दो ...कोइ शब्द नही है मेरे पास ..फैज का ये कलाम काफी होगा।
जब अर्जे खुदा के काबे से ।
सब बुत उठाये जायेंगे ।
हम अहले-सफा- महदूदे करम।
...मनसद पे बिठाये जायेंगे।
सब ताज उछाले जायेंगे ।
सब तख्त गिराये जायेंगे। "हम भारतीय इतने भावुक हैं कि अपनी टीम के हारते ही उसे जमकर कोसते हैं। उन्हीं खिलाडियों को जिन्हे विश्वकप का ताज पहनते ही, और टेस्ट में भी दुनिया की अव्वल टीम बनते ही हमने उन्हें सर-आंखों पर बिठाया था।इंग्लैंड के हाथों तीसरे टेस्ट में एक पारी और 242 रनों की करारी हार के बाद भारत ने टेस्ट टीम में नंबर वन की हैसियत खो दी है। इसके साथ ही आईसीसी टेस्ट रैंकिंग शुरु होने के बाद 32 वर्षों में इंग्लैंड पहली बार टेस्ट रैंकिंग में पहले नंबर पर पहुँचा है।
भारत की सबसे बुरी हारों में से एक है नॉटिंघम की हार
बहरहाल, ये ऐसी खबरें हैं जो आप तक पहुंच गई होंगी और टीवी चैनलों ने इसे विभिन्न कोणों से खींचा और ताना भी होगा।
लेकिन, इस श्रृंखला में कुछ ऐसा हुआ है वह अनोखा है। हार-जीत भले ही खेल का हिस्सा होता है लेकिन भारत की टीम जिस तरह से छितरा गई, वह भौंचक्का कर देने वाली है। हार जीत को खेल का हिस्सा मानने वाले भी यह जरुर मानते हैं कि जीत या हार का तरीका ही जीत या हार को शालीन बना देता है।
इंगलैंड में भारत की करारी हार संभवतः शालीन तो नहीं कही जाएगी।
मुकाबला होने से पहले हार मान लेना, या इच्छाशक्ति की कमी, इसी ने हारों को अशालीनता में तब्दील कर दिया। टेस्ट मैचों में दुनिया की नंबर एक टीम से यह उम्मीद की जा रही थी, कि वह अगर उम्दा टीम है तो वह मुश्किल हालातों से जूझने का दम दिखाए। प्रतिकूल हालातों में ढल जाने की बात तो दूर, ज्यादातर विज्ञापनों में दिखते रहने वाले भारत के बल्लेबाज, विकेट पर टिकते कम ही दिखे। पांच दिन...तीनों मैच तयशुदा वक्त से पहले खत्म हो गए।
हवा में कलाबाजियां खाती गेंदों पर चम्मच भिडाकर हमारे बल्लेबाज़ पवेलियन लौटते रहे। पहले दो मैचों में प्रतिष्ठा के अनुरुप प्रदर्शन करने वाले द्रविड़ और लक्ष्मण ने भी तीसरे मैच में हथियार डाल दिए।
सहवाग के नाम का बहुत हल्ला था। लेकिन तीसरे मैच में दोनों पारियां मिला कर कुल दो गेंदें वो खेल पाए। शेर है, बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, काटा तो कतरा-ए-खूं न निकला। दोनों पारियों में शून्य। तीसरे मैच में सिर्फ और सिर्फ धोनी ही बल्लेबाजी कर पाए वह भी ठेठ अपने अंदाज में ही। इससे साबित यही होता है कि अपने अंदाज को बदले बिना भी बैटिंग की जा सकती है।
सचिन पर लोग जरुर उंगली उठाएंगे। लेकिन यही सही वक्त है जब ऐसी जिम्मेदारियां सचिन के अलावा बाकी के लोगों पर भी डाली जाएं। सचिन के अवकाश के वक्त में बहुत देर नहीं है।
पूरे दौरे में, हवा में घूमती गेंदों ने टीम को परेशान रखा है। साथ ही, बदतर फुटवर्क, और छोटी गेंदों को खेलने में हो रही परेशानियां...रैना की असलियत खुलकर सामने आ गई। रैना ने हर बार पसलियों पर आती गेंद को डक करने की बजाय हुक करने की कोशिश की। रैना की तकनीक में बड़ी गंभीर खामी है। युवराज भी उछलती गेंदों की उछलकर पिच पर गिराने की हास्यापद कोशिश करते हैं।
जीत के लिहाज से इयान बेल को वापस बुलाने का फैसला भी गलत रहा। ऐसे नैतिकता भरे फैसले 30 साल पहले किए जाते थे। यह काम अब अंपायरों के लिए ही रहना चाहिए।
टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक टीम के लगातार इस तरह हारने से लाज और ताज दोनों गए हैं। जूझने और इंस्टिक्ट की जो कमी हमें दिखी है, और अपने विकेट फेंकने की जो कला भारतीय कला भारतीय खिलाड़ियों ने दिखाई है। वह सिर्फ हार या हाराकिरी से नहीं जुड़ी है। डर है कि कहीं हमारे खिलाड़ीयों में क्रिकेट को लेकर संजीदगी तो कम नहीं हो गई?
जब अर्जे खुदा के काबे से ।
सब बुत उठाये जायेंगे ।
हम अहले-सफा- महदूदे करम।
...मनसद पे बिठाये जायेंगे।
सब ताज उछाले जायेंगे ।
सब तख्त गिराये जायेंगे। "
भारत की सबसे बुरी हारों में से एक है नॉटिंघम की हार |
बहरहाल, ये ऐसी खबरें हैं जो आप तक पहुंच गई होंगी और टीवी चैनलों ने इसे विभिन्न कोणों से खींचा और ताना भी होगा।
लेकिन, इस श्रृंखला में कुछ ऐसा हुआ है वह अनोखा है। हार-जीत भले ही खेल का हिस्सा होता है लेकिन भारत की टीम जिस तरह से छितरा गई, वह भौंचक्का कर देने वाली है। हार जीत को खेल का हिस्सा मानने वाले भी यह जरुर मानते हैं कि जीत या हार का तरीका ही जीत या हार को शालीन बना देता है।
इंगलैंड में भारत की करारी हार संभवतः शालीन तो नहीं कही जाएगी।
मुकाबला होने से पहले हार मान लेना, या इच्छाशक्ति की कमी, इसी ने हारों को अशालीनता में तब्दील कर दिया। टेस्ट मैचों में दुनिया की नंबर एक टीम से यह उम्मीद की जा रही थी, कि वह अगर उम्दा टीम है तो वह मुश्किल हालातों से जूझने का दम दिखाए। प्रतिकूल हालातों में ढल जाने की बात तो दूर, ज्यादातर विज्ञापनों में दिखते रहने वाले भारत के बल्लेबाज, विकेट पर टिकते कम ही दिखे। पांच दिन...तीनों मैच तयशुदा वक्त से पहले खत्म हो गए।
हवा में कलाबाजियां खाती गेंदों पर चम्मच भिडाकर हमारे बल्लेबाज़ पवेलियन लौटते रहे। पहले दो मैचों में प्रतिष्ठा के अनुरुप प्रदर्शन करने वाले द्रविड़ और लक्ष्मण ने भी तीसरे मैच में हथियार डाल दिए।
सहवाग के नाम का बहुत हल्ला था। लेकिन तीसरे मैच में दोनों पारियां मिला कर कुल दो गेंदें वो खेल पाए। शेर है, बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, काटा तो कतरा-ए-खूं न निकला। दोनों पारियों में शून्य। तीसरे मैच में सिर्फ और सिर्फ धोनी ही बल्लेबाजी कर पाए वह भी ठेठ अपने अंदाज में ही। इससे साबित यही होता है कि अपने अंदाज को बदले बिना भी बैटिंग की जा सकती है।
सचिन पर लोग जरुर उंगली उठाएंगे। लेकिन यही सही वक्त है जब ऐसी जिम्मेदारियां सचिन के अलावा बाकी के लोगों पर भी डाली जाएं। सचिन के अवकाश के वक्त में बहुत देर नहीं है।
पूरे दौरे में, हवा में घूमती गेंदों ने टीम को परेशान रखा है। साथ ही, बदतर फुटवर्क, और छोटी गेंदों को खेलने में हो रही परेशानियां...रैना की असलियत खुलकर सामने आ गई। रैना ने हर बार पसलियों पर आती गेंद को डक करने की बजाय हुक करने की कोशिश की। रैना की तकनीक में बड़ी गंभीर खामी है। युवराज भी उछलती गेंदों की उछलकर पिच पर गिराने की हास्यापद कोशिश करते हैं।
जीत के लिहाज से इयान बेल को वापस बुलाने का फैसला भी गलत रहा। ऐसे नैतिकता भरे फैसले 30 साल पहले किए जाते थे। यह काम अब अंपायरों के लिए ही रहना चाहिए।
टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक टीम के लगातार इस तरह हारने से लाज और ताज दोनों गए हैं। जूझने और इंस्टिक्ट की जो कमी हमें दिखी है, और अपने विकेट फेंकने की जो कला भारतीय कला भारतीय खिलाड़ियों ने दिखाई है। वह सिर्फ हार या हाराकिरी से नहीं जुड़ी है। डर है कि कहीं हमारे खिलाड़ीयों में क्रिकेट को लेकर संजीदगी तो कम नहीं हो गई?
यह हार है बड़ी गुरुदेव...
ReplyDeleteआज 14 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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