मेरे अदब से सारे फरिश्ते सहम गए,
ये कैसी वारदात मेरी, शायरी में है...
Friday, September 23, 2011
चलो हमहूं यात्रा कै आई
एक रहें निरहू, एक रहें
घूरहू। दुनू जने के सपन आवा कि यात्रा कै लेबा तौ तोहार भाग चमक जाई। भई योजना बनी, दूनो जने समय और
जगह तै कै लेहैं लेकिन निरहू के रथयात्रा में पेंच आई गा।
अपने बड़े भाई के आज्ञा
के बिना कैसे करैं यात्रा, काहे कि साजो सामान तौ बड़े भैया ही तैयार कराइहैं।
बिचारै मिलैं गएं पर कौनौ बड़ा आश्वासन नहीं मिला, आपन एस मुंह लेके रह गयें।
बेचारे मुल्लही बनके रह गएं।
काव करैं अब...तो मुनादी पिटवाइन देहे रहैं यह बेर
यात्रा तो होबै करे ऐसा सोच के लौट आए, जोन ख्वाब मन रहन सब तो नहीं लेकिन कुछ तौ
मटियामेट होइन गवा। बड़े बुजुर्ग कहे अहैं कि जब ज्यादा उनर होई जाय तो कंठी माला
लै लेक चाही, बुढौती मा ससुर सठिआय गवा है। अब केहू का करै जब निरहू आपन भद्द
पिटावई मा लगा अहै। जा तोहार रामव मालिक नहीं रहे गए। खाली डोल पीटा और मंजीरा
बजावा। कुछ उखाड़ न पाउबा।
अब
बात घुरहू कै सेवा यात्रा करत अहैं, अरे भएवा, पहले ठीके से सेवा तौ कै लिआ, फिर
सेवा यात्रा निकाल्यो। जनता जैसे चढ़ावथै वैसे उतारुय देत है, विकास वाला मनई बना
रहा, घूरे मा फैंके मा देर न लागे।
तोहरे शौंक चढ़ा अहै पूरा कै लिया, गांव-गांव घूमे कै बरै बूता चाही, दस परग चलबा, कांच निकर आए।
इनके विरोध मा ेक जनै लोटा प्रसाद पोल-खोल यात्रा निकालत अहैं। अरे पहले अपने खोल मा झांक लिया जहां केवल पोलै-पोल अहै। सरऊ कुछ कै नही पाए तो डुगडुगी बजावत अहैं। जनता के खून चूस के समानता लावत अहैं, बहुड़बक कहीं का।
ेक जनै कैं परिवार कऊ साल से राज करत अहैं। पीढी दर पीढी उनके परिवार के वंदना होत अहैं। उनके परिवार से ेक जने पदयात्रा करत रहथैं और घूमत थै गाड़ी से।
हालचाल पूछै कै दावा करत थै, अरे अपने घरौ मा झांक लेवा करा, रोज-डेली जाथ्या लेकिन कुछ होइन नहीं पावत तो का फायदा।
भाट चारण लाग अहैं, उनका राजकुमार बनाबै का बरे, उनकै हाल तौ बहुतै बुरा अहै, अपने मन सोचिन नहीं पावत। देखकै पढईस तबो गड़बड़ाई दिहिस। अरे मुंहचोट्टा के कहे रहा इ सब करै का, जब बोल नहीं पउता तो चुप रहता।
ऐसा जोश मा आया कि रहा सहा लगा सगा सब गंवाय बैठा। और सुने भूकंप वारे गांव मा गा रह्या। सब बताबत रहै, हवा आंसू पौंछे के बजाय मुस्कियात रह्या, और युवा रैली करत अहा। कुछ तो सहूर सीख लिया। न हुऔ तो, अपनी महतारी से पूछ ल्या। कुछ आवत जात नहीं, बागडौर पकड़िहैं।
जा एहि देस कै नैया ऐसे डूबत अहै तूहू थोड़के गड्ढा मा ढकेर देबा तौ फरक का पड़ जाए।
तौ भैय्या ऐसे का सीख मिली, यात्रा करा, लेकिन जोन यै सबे करते अहैं ऊ बाली नहीं। उठास खड़ा हुआ, जागा विचार करा, अपने जीवन के विकास के बरै यात्रा करा। आत्मिक उन्नति करा। कहावत अहै, आप भला तो सब भला। चला राम राम।
इतना कह कर चचा ने घड़ी देखी। रात के दस बज रहे थे। फटाफट पान कल्ले में दबाकर गुस्ताख को राम जोहार कर रामलला के रामल्ला की ओर निकल पड़े।
का कहत हैं भइया..! गज़बै कहत हैं..एही यात्रा का बल मा केतना तरक्की किहे रहे का आप भूलि गये..? शुरू तs करे दो हमका..इब ऊँची पदवी पउबे करब अs नाहीं त जौन कमावा है सगरो लुटाई देबे। का कहत हैं..? राजनीति मा जुआ न होई तs का घर मा होई?
आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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आपकी यात्रा वाकई मजेदार है. सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई.
ReplyDeleteका कहत हैं भइया..! गज़बै कहत हैं..एही यात्रा का बल मा केतना तरक्की किहे रहे का आप भूलि गये..? शुरू तs करे दो हमका..इब ऊँची पदवी पउबे करब अs नाहीं त जौन कमावा है सगरो लुटाई देबे।
ReplyDeleteका कहत हैं..? राजनीति मा जुआ न होई तs का घर मा होई?