यह बेहद महत्वपूर्ण फैसला साबित होने जा रहा है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा-डीएमआईसी- परियोजना के लिए 90 अरब डॉलर मंजूर किए हैं। इस परियोजना की परिकल्पना पांच साल पहले की गई थी और इसे जापान की मदद से अमल में लाया जाएगा।
इससे दिल्ली और मुंबई के रास्ते में औद्योगिक गलियारा बनेगा। इस प्रोजेक्ट को मैंकेंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने अनुमोदन किया है और स्कॉट विल्सन ने इसकी रुपरेखा बनाई है। परियोजना के तहत कई नए शहर बसाएं जाएंगे और ये शहर जाहिर है मुंबई दिल्ली के बीच बसेंगे।
इस गलियारे में 24 औद्योगिक शहर, तीन बंदरगाह, 6 हवाई अड्डे, और डेढ हजार किलोमीटर लंबी हाइ स्पीड रेल लाईन और सडके बनाई जाएँगी। यह गलियारा 6 राज्यों से होकर गुजरेगी।
2009 में इस इलाके की आबादी 23.10 करोड़ थी, जो 2019 में 31 करोड और 2039 में करीब 52 करोड हो जाएगी। मैंकेजी की भविष्यवाणी है कि भारत को जल्द ही ऐसी कई परियोजनाओं की जरुरत होगी, क्यों कि पलायन के बढ़ते चलन और शहरीकरण की दर में आ रही तेजी से ऐसा करना जरुरी भी होगी।
वैसे मुझ जैसे शंकालुओं को इस योजना के इतनी तेजी से बढाए जाने पर शक हो रहा है। इस बारे में ज्यादा लोगों को पता भी नहीं है। शहरी भूगोल के पारंगत भी इस बारे में शायद ही कुछ ज्यादा जान पाएं, आप खुद भी देख लें कि इस बारे में जो दस्तावेज www.scottwilsonindia.com नाम की वेबसाइट पर डाली है।
मुझे इस परियोजना के कामयाब होने में इसलिए भी संदेह है क्योंकि ऐसी परियोजनाओं के लिए जरुरी पानी इस इलाके में शायद बहुत ज्यादा या पर्याप्त मात्रा में नहीं है। डीएमआईसी की इस परियोजना के लिए-यानी नए बसे शहरों और आबादी के लिए पानी नदी से -कुल जरुरत का दो-तिहाई-और पहले से ही रिस रहे भू-जल(कुल जरुरत का एक तिहाई) से लिया जाएगा।
नदियां पहले से ही प्रदूषित है और भू-जल दूषित भी है और जरुरत से ज्यादा निकाला भी जा रहा है। शक इसलिए भी है क्योंकि नासा और श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान-आईड्ब्ल्यूएमआई- के आंकडों के मुताबिक, उत्तर-पश्चिम भारत का यह दिल्ली-मुंबई गलियारा दुनिया के भूमिगत पानी के कमी वाले इलाकों में से एक है।
मालूम हो कि इस इलाके में 6 नदियां बहती हैं, यमुना, चंबल, माही, साबरमती, लूनी, तापी और नर्मदा। इन सभी नदियों का कुल प्रवाह 134 अरब क्युबिक मीटर है।
-----जारी
इससे दिल्ली और मुंबई के रास्ते में औद्योगिक गलियारा बनेगा। इस प्रोजेक्ट को मैंकेंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने अनुमोदन किया है और स्कॉट विल्सन ने इसकी रुपरेखा बनाई है। परियोजना के तहत कई नए शहर बसाएं जाएंगे और ये शहर जाहिर है मुंबई दिल्ली के बीच बसेंगे।
इस गलियारे में 24 औद्योगिक शहर, तीन बंदरगाह, 6 हवाई अड्डे, और डेढ हजार किलोमीटर लंबी हाइ स्पीड रेल लाईन और सडके बनाई जाएँगी। यह गलियारा 6 राज्यों से होकर गुजरेगी।
प्रस्तावित दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर |
2009 में इस इलाके की आबादी 23.10 करोड़ थी, जो 2019 में 31 करोड और 2039 में करीब 52 करोड हो जाएगी। मैंकेजी की भविष्यवाणी है कि भारत को जल्द ही ऐसी कई परियोजनाओं की जरुरत होगी, क्यों कि पलायन के बढ़ते चलन और शहरीकरण की दर में आ रही तेजी से ऐसा करना जरुरी भी होगी।
वैसे मुझ जैसे शंकालुओं को इस योजना के इतनी तेजी से बढाए जाने पर शक हो रहा है। इस बारे में ज्यादा लोगों को पता भी नहीं है। शहरी भूगोल के पारंगत भी इस बारे में शायद ही कुछ ज्यादा जान पाएं, आप खुद भी देख लें कि इस बारे में जो दस्तावेज www.scottwilsonindia.com नाम की वेबसाइट पर डाली है।
मुझे इस परियोजना के कामयाब होने में इसलिए भी संदेह है क्योंकि ऐसी परियोजनाओं के लिए जरुरी पानी इस इलाके में शायद बहुत ज्यादा या पर्याप्त मात्रा में नहीं है। डीएमआईसी की इस परियोजना के लिए-यानी नए बसे शहरों और आबादी के लिए पानी नदी से -कुल जरुरत का दो-तिहाई-और पहले से ही रिस रहे भू-जल(कुल जरुरत का एक तिहाई) से लिया जाएगा।
उत्तर-पश्चिम भारत में नदियां प्रदूषित हैं और भू-जल रिस चुका है |
नदियां पहले से ही प्रदूषित है और भू-जल दूषित भी है और जरुरत से ज्यादा निकाला भी जा रहा है। शक इसलिए भी है क्योंकि नासा और श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान-आईड्ब्ल्यूएमआई- के आंकडों के मुताबिक, उत्तर-पश्चिम भारत का यह दिल्ली-मुंबई गलियारा दुनिया के भूमिगत पानी के कमी वाले इलाकों में से एक है।
मालूम हो कि इस इलाके में 6 नदियां बहती हैं, यमुना, चंबल, माही, साबरमती, लूनी, तापी और नर्मदा। इन सभी नदियों का कुल प्रवाह 134 अरब क्युबिक मीटर है।
-----जारी
write more detail....its necessary..
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