Sunday, January 29, 2012

कहानीः बोंसाई भाग दो

मास्टर साहब के दावे उसे आज भी याद हैं...क्योंकि वो सच ही निकले थे। बनवारी लाल दसवीं की परीक्षा तीसरे दर्जे-जिसे अँग्रेजी में थर्ड डिवीजन और उसके बड़े भाई फर्स्ट डिवीजन विद टू बॉडीगार्ड कहते थे-में ही पास हुए। यह इंटर यानी 12वीं में और फिर आगे भी जारी रहा।

बनवारी ग्रेजुएशन में डिजॉनर होने से बाल बाल बचा। कई साल तक वह घर में पड़ा रहा, ये करुं या नो करुं के पेशो-पेश में। कभी मन व्यापार का होता, लेकिन पूंजी नहीं थी...फिर मन होता बच्चों को ट्यूशन पढाने का। लेकिन उसका अकादमिक करिअर इतना शानदार था कि कोई भी इंसान अपने बच्चों को उससे पढ़वाकर उनका भविष्य अंधकारमय बनाने का जोखिम नहीं ले सकता था।


उसके तमाम दोस्त वक्त गुजारने के लिए क्रिकेट खेलते थे। लेकिन बनवारी को क्रिकेट खेलनी ही नहीं आती..उसे बल्ले पकड़ने तक का शऊर न था। फील्डिंग में भी कुछ ऐसे थे कि थर्ड मैन-जिसे मुहल्ले के क्रिकेट खिलाड़ी बेहद घटिया जगह मानते,क्योंकि मैदान के उस हिस्से में एक गंदा नाला बहता था जहां मुहल्लेभर के बच्चे हगते थे-पर ही लगाए जाते।


वहां भी गेंद किस्मत की ही तरह बनवारी को दगा दे जाती। उसके पैर के नीचे से निकल जाती। बनवारी गेंद के पीछे दौड़ता तो बाकी के खिलाडी खेल छोड़ उसका दौड़ना देखने लगते। बनवारी दौड़ता तो उसके पैरों की दोनों एडियां अपेक्षाकृत पास-पास गिरतीं। यह हंसने के लिए बेहतर मसाला था।

आखिरकार, बनवारी को क्रिकेट से घृणा हो गई। धीरे-धीरे उसे बहुत सी चीजों से घृणा हो गई, जो दिन ब दिन गहराती ही गई। सबके सामने खुलकर बोलने से,क्योंकि बनवारी ऐसे मौकों पर बोलने से अटकने लगता था। क्रिकेट से, रसायन विज्ञान से, अलजेबरा और ज्योमेट्री से, लडकियों से (क्योंकि लड़कियो ने उसे कभी गौर से देखना तक गवारा न किया)  और अंग्रेजी से..।

और आज उस बॉस ने उसी घृणास्पद अंग्रेजी में बनवारी को डांटा था।

बनवारी को याद आया, बॉस की टेबल पर एक पेड़ रखा था। आम का, गमले में...बोंसाई। आम के पेड़ को बोंसाई बनाकर रख देना बनवारी को कुछ अच्छा नहीं लगा। उसे लगा कि आम का वह बौना पेड़ वही है...न फल देने वाला न असली आकार का। बस नाम का ही पेड़।

...जारी

Wednesday, January 25, 2012

पंजाबः गड्डमड्ड समीकरण

पंजाब मैं पहले भी आय़ा था, लेकिन इसे इतने करीब से देखने का मौका नहीं मिला था। चुनावी हलचल हवा में है, लेकिन बड़े पैमाने पर कहीं भी पोस्टर नहीं दिखे, जो दृश्य पिछले अप्रैल में मैने पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के दौरान देखे थे वो यहां नदारद हैं। 


पंजाब की चुनावी फिजां का रंग जरा हटके है। शिरोमणि अकाली दल (बादल)-शिअद और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को उम्मीद है कि वह अपनी पिछली कामयाबी को दोहरा पाएंगे। चुनावी रैलियों में भी वो जनता के सामने बिहार और गुजरात का हवाला देते हैं, जहां विकास के मुद्दे पर जनता ने उन्हें दोबारा सत्ता की कुरसी नवाजी।
मोगा में भाजपा-शिअद की रैली


जालंधर की बीजेपी-शिअद रैली में बधिया रोड विच चलावांगा गड्ड़ी हम्मर नूं, यूके वाल बनात्तां शहर जलंधर नूं..का गीत बज रहा था। यानी, निवर्तमान सरकार के नुमाइँदे विकास को मुद्दा बना रहे हैं, वही कांग्रेस ने धीमी विकास दर को चुनावी मुद्दा बनाया है। दोनों ही पार्टियां एक ही मुद्दे् पर वोट मांग रही है। पहली बार धर्म और जाति पीछे और विकास आगे की कतार में है।


इधर, कांग्रेस जीत को लेकर आश्वस्त है। इतनी आश्वस्त कि 25 जनवरी को जालंधर में युवराज राहुल गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को भावी मुख्यमंत्री कह कर पुकारा। हालांकि यह तय था कि होना ऐसा ही है और कैप्टन की पत्नी परणीत कौर का नाम महज ऐंवईं हवा में उछला है-लेकिन अब यह औपचारिक हो गया है।
कपूरथला में सोनिया गांधी ने कहा, केन्द्र की योजनाएँ पंजाब नहीं करता लागू 


सोनिया हों या मनमोहन सिंह या फिर राहुल गांधी सबने केन्द्र की सरकार के कामकाज के आधार पर ही वोट मांगे हैं। मुझे एंटी-इंकम्बेन्सी का उतना असर तो दिखा नहीं कहीं, क्योंकि ग्रामीण पंजाब में अकाली के मजबूत आधार से निबटना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। हालांकि, मनप्रीत बादल ने अकालिय़ों को हलकान जरुर किया है और इतना तय है कि अकालियों के वोट इससे कटेंगे। 

एक सर्वेक्षण के मुताबिक, पंजाब में अकाली-शिअद गठबंधन को 7 फीसद वोटों को नुकसान और कांग्रेस को 2 फीसद वोट का फायदा हो सकता है। इसका मतलब है कि गठबंधन को करीब 27 सीटों का नुकसान झेलना पड़ सकता है और कांग्रेस की 25 सीटें बढ़ जाएंगी। लेकिन यह सर्वे जनवरी के पहले हफ्ते में किया गया था। और अभी के हालात थोड़े बदले-से हैं।


कांग्रेस को सबसे नुकसान होने वाला है दलित वोटों के खिसकने से। जितना नुकसान अकालियों को मनप्रीत की पीपीपी ( पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब) से होने वाला है । तकरीबन उतना बहुजन समाज पार्टी भी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने वाली है। दूसरी तरफ, कांग्रेस के 23 बागी प्रत्याशी भी मैदान में डटे हैं, जिनमें से एक दर्जन को कैप्टन ने पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है।


वैसे, यह तय है कि भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा नहीं पाएगी। उसका जनाधार पहले के मुकाबले थोड़ा खिसका है। मेरा अनुमान है कि इस बार उसे 23 सीटों में से 10 से संतोष करना होगा। अकाली अपना आधार भले बचा लें जाएं, लेकिन सरकार बनाने में उन्हें मुश्किल होगी। 


वाम दलों और पीपीपी का साझा मोर्चा अभी खेल में किसी की नजर में नहीं, लेकिन मुझे लगताहै कि वो किंगमेकर बन सकते हैं। भले ही इनके पास 5-6 विधायक ही हों। 


मौजूदा हालातों में, जिनमें मैं मालवा इलाके की बात बिलकुल नहीं कर रहा क्यों कि मैं उधर गया ही नहीं हूं, माझा-दोआबा के हालातों के मद्देनजर फिलहाल तो मुकाबला बराबरी का लग रहा है। वोटर मुंह खोलने को तैयार नहीं, ऐसे में आखिरी क्षणों में स्विंग होने वाले वोटर ही तय करेंगे कि कमान आखिरी पारी खेल रहे बादल के हाथों जाएगी, या कैप्टन बादलों के बीच से सूरज की तरह उभरकर सामने आएंगे। 

पंजाब में कुल सीटें-117, बहुमत के लिए चाहिए-64
मेरा अनुमान- कांग्रेस-55
शिअद-भाजपा- 52
साझा मोर्चा-6
अन्य- 4





Tuesday, January 17, 2012

मेरी पहली कहानीः बोंसाई

वह बेहद खिसियाआ हुआ सा बैठा था। जिंदगी ने उसे कुछ नहीं दिया था। स्साली ये भी कोई जिंदगी है। आज बॉस ने हड़का दिया था उसे...। कुछ इस तरह कि भरी मीटिंग में बेहद अपमान-सा महसूस हुआ। 


यो उसे कभी अपमान महसूस होता नहीं, किसी भी तरह से ...कभी भी। स्कूल में भी कभी मास्साब ने कान उमेठा ( जो कि प्रायः उमेठा जाता था) तो भी उसे ऐसा महसूस नहीं हुआ था। 


वह चाहता है कि दुनिया में से कुछ चीजें हमेशा के लिए डिलीट हो जाएं। कुछ चीजों का अनडू भी करना चाहता है, लेकिन जनाब यह कोई कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर तो है नहीं...जिंदगी है जिंदगी। 


जिंदगी भी स्साली अजीब शै है।


जियो तो गलीज, मरने की सोचो तो और भी गलीज। गोली से मरो तो तस्वीरों में पैंट उतरी हुई दिखती है, रेल से कट मरो तो ...ओह..उसे कुछ बेहद दर्दनाक सी तस्वीरों की याद हो आई। 


वह इतना भी बहादुर या कायर नहीं कि मर सके। घरवालों ने भी कभी उसे लायक नहीं समझा। जिंदगी को जीना या झेलना जो भी मुनासिब शब्द हो...आज ही कहीं पढा़ उसने, जिंदगी अजीब शै है। सच लिखा है।


अगर जिंदगी से कुछ डिलीट करना मुमकिन हो, तो वह पहले अपना नाम ही डिलीट करेगा। यह भी कोई नाम है..भला..? बनवारी लाल...मां-बाप
ने जरा भी नहीं सोचा कि तमाम आधुनिक नामों के बीच ये बनवारी लाल कैसे जिएगा...हुंह। नाम बदलने की कोशिशें..लेकिन नाकाम। 


तो सबसे पहले अपना नाम बदलूंगा। दफ्तर के सामने पार्क की बेंच पर बैठे हुए उसने सोचा। ...और इस कद का क्या करुं...5 फुट 2 इंच। दसवीं के बाद उसके दोस्त तकरीबन 6 फुटे हो गए...एक दो जो कम थे वो भी भारतीय मानकों पर खरे उतरे..और वो, जिसने हमेशा अमिताभ जितना लंबा होने की हसरत पाली थी. वह पांच फुट दो इंट पर अटक कर रह गया।


पार्क की करीने से कुतरी गई घास को अंगूठे से उखाड़ते हुए बनवारी लाल ने सोचा, इस बॉस को तो मैं गोली मार दूंगा। बिलकुल करीब से। मन में समस्या थी कि इसे पकडूं कहां। दफ्तर के सामने नीली वर्दी में 4 स्टार वाले गार्ड होते हैं। पकड़ा गया तो वहीं कूटकर कीमा कर देंगे। ...और समस्या तो रिवॉल्वर पाने की भी है।...वो कहां से मिलेंगे।

मारने से याद आया, बॉडीगार्ड में किस तरह सलमान खान आदित्य पंचोली को उछाल-उछाल कर मारता है, ठीक वैसे ही टांग दूंगा खूंटी पर बॉस को। बनवारी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। लेकिन जैसे ही उसे अपना शरीर याद आया, मुस्कुराहट काफूर हो गई। 


पसलियां तक दिखती हैं उसकी। नितम्बों पर मांस नहीं, इसलिए जींस नहीं पहनता। पुराने कपड़े। जिनकी रंगत तक उतर गई है। कूरिअर पहुंचाते-पहुंचाते चप्पलें घिस गईं है। दिल्ली जैसे शहर में क्या करना 8 हजार का। संगम विहार में रहता हूं, किसी तरह खा-पका कर बाकी के पैसे घर भेजने पड़ते हैं। 


बनवारी ने अपना चेहरा याद किया, उसे अपने बाप का चेहरा भी दिखा उसमें। आईने के सामने खड़ा हो तो खुद को गुस्सा आता है। आईना देखो तो हमेशा फिजिक्स के मास्टर साहब पुनू पंडित की याद आती है। अमरीश पुरी जैसी भारी आवाज वाले पुनू पंडित गणित भी पढ़ाते थे।


अंकगणित तो बनवारी ठीक-ठाक कर लेता था, लेकिन पिछली बेंट पर बैठने वाले के लिए बीजगणित और ज्यामिति दोनों ही दुश्मन सरीखे थे। संस्कृत में शब्दरुप धातु रुप उसे कष्ट देते और इतिहास में राजाओं के खानदानों के नाम याद रखना भारी था। पुनू पंडित ने भरी क्लास में कह दिया था, अगर बनवारी मैट्रिक में सैकिंड डिवीजन भी पास कर गया तो वह टीचरी छोड़ देगे।


...जारी

Sunday, January 1, 2012

वर्ष नव, हर्ष नवः शुभकामनाएँ

वर्ष नव,
हर्ष नव,


वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव


नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग


नवल चाह
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह


गीत नवल,
प्रीति नवल,
जीवन की रीत नवल
जीवन की नीति नवल
जीवन की जीत नवल