पंजाब मैं पहले भी आय़ा था, लेकिन इसे इतने करीब से देखने का मौका नहीं मिला था। चुनावी हलचल हवा में है, लेकिन बड़े पैमाने पर कहीं भी पोस्टर नहीं दिखे, जो दृश्य पिछले अप्रैल में मैने पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के दौरान देखे थे वो यहां नदारद हैं।
पंजाब की चुनावी फिजां का रंग जरा हटके है। शिरोमणि अकाली दल (बादल)-शिअद और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को उम्मीद है कि वह अपनी पिछली कामयाबी को दोहरा पाएंगे। चुनावी रैलियों में भी वो जनता के सामने बिहार और गुजरात का हवाला देते हैं, जहां विकास के मुद्दे पर जनता ने उन्हें दोबारा सत्ता की कुरसी नवाजी।
जालंधर की बीजेपी-शिअद रैली में बधिया रोड विच चलावांगा गड्ड़ी हम्मर नूं, यूके वाल बनात्तां शहर जलंधर नूं..का गीत बज रहा था। यानी, निवर्तमान सरकार के नुमाइँदे विकास को मुद्दा बना रहे हैं, वही कांग्रेस ने धीमी विकास दर को चुनावी मुद्दा बनाया है। दोनों ही पार्टियां एक ही मुद्दे् पर वोट मांग रही है। पहली बार धर्म और जाति पीछे और विकास आगे की कतार में है।
इधर, कांग्रेस जीत को लेकर आश्वस्त है। इतनी आश्वस्त कि 25 जनवरी को जालंधर में युवराज राहुल गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को भावी मुख्यमंत्री कह कर पुकारा। हालांकि यह तय था कि होना ऐसा ही है और कैप्टन की पत्नी परणीत कौर का नाम महज ऐंवईं हवा में उछला है-लेकिन अब यह औपचारिक हो गया है।
सोनिया हों या मनमोहन सिंह या फिर राहुल गांधी सबने केन्द्र की सरकार के कामकाज के आधार पर ही वोट मांगे हैं। मुझे एंटी-इंकम्बेन्सी का उतना असर तो दिखा नहीं कहीं, क्योंकि ग्रामीण पंजाब में अकाली के मजबूत आधार से निबटना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। हालांकि, मनप्रीत बादल ने अकालिय़ों को हलकान जरुर किया है और इतना तय है कि अकालियों के वोट इससे कटेंगे।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, पंजाब में अकाली-शिअद गठबंधन को 7 फीसद वोटों को नुकसान और कांग्रेस को 2 फीसद वोट का फायदा हो सकता है। इसका मतलब है कि गठबंधन को करीब 27 सीटों का नुकसान झेलना पड़ सकता है और कांग्रेस की 25 सीटें बढ़ जाएंगी। लेकिन यह सर्वे जनवरी के पहले हफ्ते में किया गया था। और अभी के हालात थोड़े बदले-से हैं।
कांग्रेस को सबसे नुकसान होने वाला है दलित वोटों के खिसकने से। जितना नुकसान अकालियों को मनप्रीत की पीपीपी ( पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब) से होने वाला है । तकरीबन उतना बहुजन समाज पार्टी भी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने वाली है। दूसरी तरफ, कांग्रेस के 23 बागी प्रत्याशी भी मैदान में डटे हैं, जिनमें से एक दर्जन को कैप्टन ने पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है।
वैसे, यह तय है कि भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा नहीं पाएगी। उसका जनाधार पहले के मुकाबले थोड़ा खिसका है। मेरा अनुमान है कि इस बार उसे 23 सीटों में से 10 से संतोष करना होगा। अकाली अपना आधार भले बचा लें जाएं, लेकिन सरकार बनाने में उन्हें मुश्किल होगी।
वाम दलों और पीपीपी का साझा मोर्चा अभी खेल में किसी की नजर में नहीं, लेकिन मुझे लगताहै कि वो किंगमेकर बन सकते हैं। भले ही इनके पास 5-6 विधायक ही हों।
मौजूदा हालातों में, जिनमें मैं मालवा इलाके की बात बिलकुल नहीं कर रहा क्यों कि मैं उधर गया ही नहीं हूं, माझा-दोआबा के हालातों के मद्देनजर फिलहाल तो मुकाबला बराबरी का लग रहा है। वोटर मुंह खोलने को तैयार नहीं, ऐसे में आखिरी क्षणों में स्विंग होने वाले वोटर ही तय करेंगे कि कमान आखिरी पारी खेल रहे बादल के हाथों जाएगी, या कैप्टन बादलों के बीच से सूरज की तरह उभरकर सामने आएंगे।
पंजाब में कुल सीटें-117, बहुमत के लिए चाहिए-64
मेरा अनुमान- कांग्रेस-55
शिअद-भाजपा- 52
साझा मोर्चा-6
अन्य- 4
पंजाब की चुनावी फिजां का रंग जरा हटके है। शिरोमणि अकाली दल (बादल)-शिअद और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को उम्मीद है कि वह अपनी पिछली कामयाबी को दोहरा पाएंगे। चुनावी रैलियों में भी वो जनता के सामने बिहार और गुजरात का हवाला देते हैं, जहां विकास के मुद्दे पर जनता ने उन्हें दोबारा सत्ता की कुरसी नवाजी।
मोगा में भाजपा-शिअद की रैली |
जालंधर की बीजेपी-शिअद रैली में बधिया रोड विच चलावांगा गड्ड़ी हम्मर नूं, यूके वाल बनात्तां शहर जलंधर नूं..का गीत बज रहा था। यानी, निवर्तमान सरकार के नुमाइँदे विकास को मुद्दा बना रहे हैं, वही कांग्रेस ने धीमी विकास दर को चुनावी मुद्दा बनाया है। दोनों ही पार्टियां एक ही मुद्दे् पर वोट मांग रही है। पहली बार धर्म और जाति पीछे और विकास आगे की कतार में है।
इधर, कांग्रेस जीत को लेकर आश्वस्त है। इतनी आश्वस्त कि 25 जनवरी को जालंधर में युवराज राहुल गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को भावी मुख्यमंत्री कह कर पुकारा। हालांकि यह तय था कि होना ऐसा ही है और कैप्टन की पत्नी परणीत कौर का नाम महज ऐंवईं हवा में उछला है-लेकिन अब यह औपचारिक हो गया है।
कपूरथला में सोनिया गांधी ने कहा, केन्द्र की योजनाएँ पंजाब नहीं करता लागू |
सोनिया हों या मनमोहन सिंह या फिर राहुल गांधी सबने केन्द्र की सरकार के कामकाज के आधार पर ही वोट मांगे हैं। मुझे एंटी-इंकम्बेन्सी का उतना असर तो दिखा नहीं कहीं, क्योंकि ग्रामीण पंजाब में अकाली के मजबूत आधार से निबटना कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। हालांकि, मनप्रीत बादल ने अकालिय़ों को हलकान जरुर किया है और इतना तय है कि अकालियों के वोट इससे कटेंगे।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक, पंजाब में अकाली-शिअद गठबंधन को 7 फीसद वोटों को नुकसान और कांग्रेस को 2 फीसद वोट का फायदा हो सकता है। इसका मतलब है कि गठबंधन को करीब 27 सीटों का नुकसान झेलना पड़ सकता है और कांग्रेस की 25 सीटें बढ़ जाएंगी। लेकिन यह सर्वे जनवरी के पहले हफ्ते में किया गया था। और अभी के हालात थोड़े बदले-से हैं।
कांग्रेस को सबसे नुकसान होने वाला है दलित वोटों के खिसकने से। जितना नुकसान अकालियों को मनप्रीत की पीपीपी ( पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब) से होने वाला है । तकरीबन उतना बहुजन समाज पार्टी भी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने वाली है। दूसरी तरफ, कांग्रेस के 23 बागी प्रत्याशी भी मैदान में डटे हैं, जिनमें से एक दर्जन को कैप्टन ने पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है।
वैसे, यह तय है कि भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा नहीं पाएगी। उसका जनाधार पहले के मुकाबले थोड़ा खिसका है। मेरा अनुमान है कि इस बार उसे 23 सीटों में से 10 से संतोष करना होगा। अकाली अपना आधार भले बचा लें जाएं, लेकिन सरकार बनाने में उन्हें मुश्किल होगी।
वाम दलों और पीपीपी का साझा मोर्चा अभी खेल में किसी की नजर में नहीं, लेकिन मुझे लगताहै कि वो किंगमेकर बन सकते हैं। भले ही इनके पास 5-6 विधायक ही हों।
मौजूदा हालातों में, जिनमें मैं मालवा इलाके की बात बिलकुल नहीं कर रहा क्यों कि मैं उधर गया ही नहीं हूं, माझा-दोआबा के हालातों के मद्देनजर फिलहाल तो मुकाबला बराबरी का लग रहा है। वोटर मुंह खोलने को तैयार नहीं, ऐसे में आखिरी क्षणों में स्विंग होने वाले वोटर ही तय करेंगे कि कमान आखिरी पारी खेल रहे बादल के हाथों जाएगी, या कैप्टन बादलों के बीच से सूरज की तरह उभरकर सामने आएंगे।
पंजाब में कुल सीटें-117, बहुमत के लिए चाहिए-64
मेरा अनुमान- कांग्रेस-55
शिअद-भाजपा- 52
साझा मोर्चा-6
अन्य- 4
इन्तेज़ार करेंगे जी नतीजों को ... और फिर दुबारा कोमेंट्स देंगे.
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