Monday, February 13, 2012

हतोत्साहित हूं...

सोच रहा हूं एक किताब लिख डालूं।  पत्रकारिता के पेशे में आने के बाद सोचना शुरु कर दिया है। हालांकि स्थिति ये है कि मेरे कई साथी सोचते नहीं पूछते हैं अर्थात् बाईट लेते हैं और अपना उपसंहार पेलते हैं। पहले अपने भविष्य के बारे में सोचता रहता था। वह सेक्योर नहीं हो पाया तो देश के भविष्य के बारे में सोचने लगा।

एक मित्र हैं सुशांत भाई..उन्होंने लगे हाथ सुझाव दिया। किताब लिख डालो। देश की व्यवस्था पर लिख डालो.. लोग लिख रहे हैं तो तुम क्यों नहीं लिखते।

एक अन्य  मित्र हैं.. उन्होंने टिप्पणी दी, लिख कर के समाज को क्या दे दोगे? कौन पढेगा, पढ भी लेगा तो क्या अमल मे लाएगा? अमल में लाना होता तो रामचरित मानस ही अमल मे ले आते। तुम्हारा लिखा कौन पढेगा।? क्यों पढेगा। मैं हतोत्साहित हो गया।

हतोत्साहित होना मेरा बचपन का स्वभाव है। कई बार हतोत्साहित हुआ हूं।

परीक्षाएं अच्छी जाती रहीं, लेकिन परीक्षा परिणांम हतोत्साहित करने वाले रहे। अपने कद में मैं अमिताभ बच्चन की कद का होना चाहता था। ६ फुट २ इंच लंबाई का गैर-सरकारी मानक था उस वक्त॥लेकिन अफसोस हमारे अपने क़द ने हमें हतोत्साहित किया। चेहरे-मौहरे से हम कम से कम शशि कपूर होना चाहते थे, लेकिन हमारे थोबड़े ने हमें हतोत्साहित कर दिया।

रिश्तदारों ने रिश्तों में हतोत्साहित किया, कॉलेज में लड़कियों ने हतोत्साहित किया। भाभी की बहन ने हमें देखकर कभी नहीं गाया कि दीदी तेरा देवर दीवाना... हम कायदे से बहुत हतोत्साहित महसूस कर रहे हैं। देश की दशा ने, महंगाई ने, राजनीति के गिरते स्तर, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में धोनी के लड़ाकों का घटिया प्रदर्शन, सचिन के सौवें शतक के लंबे होते इंतजार से हतोत्साहित हो रहा हूं।

एक आम आदमी की हैसियत से हतोत्साहित हूं। क्या कोई मेरे हतोत्साहित होने पर ध्यान देगा?

हतोत्साहित करने वाले वाकये बढ़ते जा रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले योजना आयोग के नीली पगड़ी वाले असरदार सरदार मोंटेक ने कहा था कि शहरों में आम आदमी के जीने के लिए 32 रुपये काफी हैं। भिंडी 15 रुपये पाव बिक रहा है, प्याज 20 रुपये किलो....आटे और दाल की कीमतों पर कोई टिप्पणी किए बिना इतना ही हतोत्साहित होने के लिए काफी लग रहा है। मकान खरीदने के लिए बैंक से ली गई कर्ज की  मेरी ईएमआई लगातार बढ़ती जा रही है...कर्जे ब्याज दर लगातार बढ़ रही है। हर महीने मैं वेतन पाने के बाद ज्यादा हतोत्साहित हो जाता हूं।


मोंटेक का बंगला दिल्ली के लुटियन ज़ोन में आता है। कीमत होगी करीब 400 करोड़ रुपये। उनकी लॉन में करीने से कुतरी गई  हर घास की कीमत 32 रुपये से ज्यादा ठहरती है। हतोत्साहित होने के लिए यह भी पर्याप्त है।

कल वैलेंटाईन डे हैं...यह एक ऐसा दिन है जो सालाना मुझे हतोत्साहित करता है।

12 comments:

  1. हाहाहा। अद्भुद है। हतोत्साहित होने का स्टाईल।

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  2. Hahaha...! Mazaa aa gaya Manjitji...! Hatotsaahit naa hoiye..! Waise aap Shashi Kapoorji se kuchh kam HANDSOME nahi ho..! Likhte Rahhhhhhhhhho..........

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  3. लेकिन मै उत्साहित हू, मंजीत जी आपकी इस अंतर्मन की यार्कर पढकर ..वाकई मजेदार है और तारीफ के काबिल भी .....

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  4. अच्छा कटाक्ष है ... देश की आधे से ज्यादा जनता हतोत्साहित है ...

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  5. गज़ब! देश की सबसे कीमती ज़मीन अपर खड़े होकर ३२ रुपये की बात करने से खराब मज़ाक गरीबों के साथ हो ही नहीं सकता

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  6. सचमुच जादू, एकदम उत्‍साह का संचार हो गया, बहुत-बहुत खूब.

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  7. कभी-कभी मिलती है ऐसी पोस्‍ट, जहां एक कमेंट से मन न भरे, दूसरे कमेंट के लिए भी उत्‍साहित करे.

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  8. माफ़ कीजियेगा मंजीतजी, आपका हतोत्साहित होना हममें उत्साह का संचार कर गया. क्या खूब लिखा है आपने. माशाअल्लाह!

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  9. n i m reading it 2dy....n thinkig ki Dinkar ji ne kitna sahi kaha hai....."Aadmi bhi kya anokha jeev hota hai
    Uljhane apni banakar aap hi fansta
    Aur fir bechain ho jagta, na sota hai"...
    but its ol 4 good!
    n applied to u simultaneously!

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