Thursday, April 19, 2012

पॉर्न ह्रीं श्रीं स्वाहा:!

पॉर्न देखना राजमार्गी तंत्र साधना का अंग लगता है। पॉर्न ह्रीं श्रीं स्वाहा:! कुछ दिनों पहले जब फेसबुक पर यह स्टेटस डाला था तो लोगों को कुछ मजेदार-सा लगा था। नहीं, इसमें मज़ेदार कुछ नहीं। इसमें गहरा धक्का लगता है लोगों को।

भारत जैसे देश में जहां हिपोक्रेसी की अद्भुत परंपरा है, जहां सेक्स एक वर्जना है। जहां परदा करना जरुरी है, जहां सगोत्रीय विवाह करना मौत को दावत देना है...वहां की आबादी 122 करोड़ पार कर जाती है तो ऐसा लगता है कि हमने सारी की सारी आबादी इंटरनेट से डाउनलोड की है।

वैसे भी खजुराहो के देश में सेक्स स्कैंडलों की एक महान परंपरा और थाती रही है। हमें गर्व है कि हमारे नेताओं की-उनकी जिनके बारे में खुलासा हो चुका है--यौन पिपासा भी कुछ वैसी है, जैसी सार्वजिनक शौचालयों में नर-मादा जननांगो की तस्वीर बनाने वालो की होती है।

कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि नेताओं का ऐसा कृत्य लोकतंत्र को शर्मसार करता है। ऐ बुरा सोचने वालों, जरा ये सोचो कि आखिर हमारे इन नेताओं ने फिल्मों के लिए कितना कहानियां मुहैया कराई हैं। याद है मधुमिता की सेक्स सीडी...बेचारी को जान से हाथ धोना पड़ा। कवयित्री अच्छी थी लेकिन अमर रहें मणि।

एक उत्तरी सूबे के मुख्यमंत्री और दक्षिणी राज्य के राज्यपाल ने भी स्कैंडलों के लिए काफी योगदान किया है। वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता को तो डीएनए परीक्षण के लिए भी ललकारा गया है, उनके पुत्र भी अपने जैविक पिता से आंख से आंख मिलाकर देखना चाहते हैं। बुरा हो उस तेलुगू चैनल का, जिसने न जाने क्यों, खबर मानते हुए, या सनसनी मानते हुए या महज पंडिज्जी के खिलाफ फसक में उस सीडी का प्रसारण कर दिया जिसके बाद महामहिम को पद छोड़ देना पड़ा। हत्। कोई निजता को भी ऐसे प्रसारित करता है क्या -)

सेक्स सीडियों की अमर कथा में अगर भंवरी देवी के बवंडर को शामिल न करें तो यह पुराण अधूरा रहेगा।

लेकिन यह न मानिए गा कि ऐसी सीडियों को लेकर सिर्फ कांग्रेस ही विश्वप्रसिद्ध है। हिंदुत्व की रक्षक भारतीय जनता पार्टी के नेता थे एक । नाम उनका वही था जो धृतराष्ट्र के मंत्री का था जो उन्हें युद्ध का आँखों-देखा हाल बताते थे। याद आया..अरे संजय जोशी। मामला कहां है पता नहीं। शायद बेदाग छूट गए हों...आखिर आरोप बेदाग छूटने के लिए ही लगाए जाते हैं।

सुना तो यही है कि आरटीआई कार्यकर्ता शेहला मसूद की हत्या के पीछे भी कुछ लोकतंत्र के रक्षक ही हैं। दोस्त लोग बता रहे हैं कि हाल ही में एक बड़े नेता भी राजमार्गी तंत्रसाधना में पोर्न की पुष्पांजलि देते रेकॉर्ड कर लिए गए हैं।

वैसे असली कमाल तो बीजेपी के नेताओं ने कर्नाटक और गुजरात में किया । हिंदुत्व की रक्षा में तैनात इन नेताओं ने मंत्रजाप करते हुए भैरवी साधना ठान ली। अब मौबाईल पर पॉर्न क्लिप देखना इतना बड़ा गुनाह तो नहीं। आखिर वो वयस्क भी थे और क्या कहा...विधानसभा की मर्यादा? ये क्या होता है...कम से कम कुरसियां और माइक तो नहीं तोड़ रहे थे. एक दूसरे को पीट तो नहीं रहे थे...शांति से बैठकर पॉर्न ही तो देख रहे थे।


असली समस्या तो तब होती है जब कोई फेसबुक वगैरह पर किसी सरकार के सदस्य के बारे में कार्टून वगैरह बना दे। कभी नौकरी पर बन आती है तो कभी इंटरनेट को ही बैन कर देने की बात शुरु हो जाती है। अच्छा है, पॉर्न देखने और उसमें बतौर कलाकार हिस्सा लेने का अधिकार तो महज नेताओं और अधिकारियों को ही है। आम जनता तो रोटी की चिन्ता करे, मंहगाई, पेट्रोल की कीमतों के गम में डूबी रहे। उसे पॉर्न की चिंता न ही करनी चाहिए।

पॉर्न आधुनिक राजमार्गी तंत्र साधना का अंग है। पॉर्न ह्रीं श्रीं स्वाहा:!

2 comments:

  1. क्या जलवेदार बात है। :)

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  2. मन में दबे स्वरों को ऐसे ही लुके छिपे संगत मिलती है।

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