आज हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार नहीं रहे। इस बात पर टीवी चैनलों पर जितना शोर मचना चाहिए था, मचा। लेकिन राजेश खन्ना के निधन पर लोगों ने इतने फलसफेनुमा गाने सुने, सुनाए, बजाए, दिखाए..कि सोचना पड़ गया....क्या राजेश खन्ना को सही श्रद्धांजलि यही होगी कि तमाम दुख वाले किस्से उनकी मौत के दिन दिखाए जाएं।
मैं राजेश खन्ना के करिअर पर, उनकी राजनीतिक विचारधारा पर कुछ नहीं कहना चाहता। यह काम किसी इतिहासकार के जिम्मे होना चाहिए।
मैं तो बस उनको तब से जानता हूं, जब हमारे क़स्बानुमा शहर में उनकी फिल्म लगी थी--आन मिलो सजना। राजेश खन्ना, तब अपने पूरे स्टाइल में थे। अजब-गजब कपड़े, अजीब अंदाज में पलके झपकाना, सिर को थोड़ा तिरछे करके चलना, या नाचना..कुरते और पैंट का कॉकटेल लिबास।
मुझे उनका एक संवाद बहुत याद आता है, जब वो कहते हैं--पुष्पा आई हेट टीयर्स। आंसू से नफरत करना हमें सीखना होगा।
परदे पर राजेश खन्ना मुझे बावर्ची में सबसे अच्छे लगे। मुझे रोमांस की उनकी सपनीली दुनिया से ओम पुरी का रुखड़ा और खुरदरा यथार्थ हमेशा ज्यादा अच्छा लगा है। राजेश खन्ना के सुनहरे सपने, जहां वो सपनों की रानी की खोज करते हैं, अपनी मस्तानी मोहक अदा की मुस्कुराहट से मादक मादाओं के दिल जीत ले जाते हैं, भारत की जनता को यथार्थ से दूर ले उड़ा गई थी।
राजेश खन्ना एक बेहतरीन अदाकार के रुप में मुझे हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में ही दिखे। लेकिन, नमकहराम में उन्होंने शूटिंग के दौरान रज़ा मुराद के हिस्से का एक गाना हथिया लिया था...मैं शायर बदनाम।
फिर भी, निजी रूप से चाहे जैसे भी रहे हो. राजेश खन्ना ने भारतीय व्यावसायिक सिनेमा को बहुत कायदे से मुस्कुराने के मौके दिए, कितने लड़कियों के दिल टूटे, और उनका करिश्मा क्या था...इस पर ढेर सारा लिखा जा चुका है।
राजेश खन्ना को लेकर सभी ग़मज़दा हैं। मैं नहीं हूं। मैं जानता हूं, जिन फिल्मों के जरिए वो लोकप्रिय हुए, और उनकी जिन फिल्मों को मैं भी पसंद करता हूं...मेरे दिलोदिमाग़ में वो वैसे ही जिंदा रहेंगे। मेरे लिए 18 जुलाई को कोई अर्थ नहीं है।
विज्ञापन याद आ रहा है, जिसमें राजेश खन्ना किसी पंखे की बिक्री बढ़ाने के लिए कह रहे है, बाबू मोशाय मुझसे मेरे फैन्स कोई नहीं छीन सकता।
सोलहों आने सच है।
मैं राजेश खन्ना के करिअर पर, उनकी राजनीतिक विचारधारा पर कुछ नहीं कहना चाहता। यह काम किसी इतिहासकार के जिम्मे होना चाहिए।
मैं तो बस उनको तब से जानता हूं, जब हमारे क़स्बानुमा शहर में उनकी फिल्म लगी थी--आन मिलो सजना। राजेश खन्ना, तब अपने पूरे स्टाइल में थे। अजब-गजब कपड़े, अजीब अंदाज में पलके झपकाना, सिर को थोड़ा तिरछे करके चलना, या नाचना..कुरते और पैंट का कॉकटेल लिबास।
मुझे उनका एक संवाद बहुत याद आता है, जब वो कहते हैं--पुष्पा आई हेट टीयर्स। आंसू से नफरत करना हमें सीखना होगा।
परदे पर राजेश खन्ना मुझे बावर्ची में सबसे अच्छे लगे। मुझे रोमांस की उनकी सपनीली दुनिया से ओम पुरी का रुखड़ा और खुरदरा यथार्थ हमेशा ज्यादा अच्छा लगा है। राजेश खन्ना के सुनहरे सपने, जहां वो सपनों की रानी की खोज करते हैं, अपनी मस्तानी मोहक अदा की मुस्कुराहट से मादक मादाओं के दिल जीत ले जाते हैं, भारत की जनता को यथार्थ से दूर ले उड़ा गई थी।
राजेश खन्ना एक बेहतरीन अदाकार के रुप में मुझे हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में ही दिखे। लेकिन, नमकहराम में उन्होंने शूटिंग के दौरान रज़ा मुराद के हिस्से का एक गाना हथिया लिया था...मैं शायर बदनाम।
फिर भी, निजी रूप से चाहे जैसे भी रहे हो. राजेश खन्ना ने भारतीय व्यावसायिक सिनेमा को बहुत कायदे से मुस्कुराने के मौके दिए, कितने लड़कियों के दिल टूटे, और उनका करिश्मा क्या था...इस पर ढेर सारा लिखा जा चुका है।
राजेश खन्ना को लेकर सभी ग़मज़दा हैं। मैं नहीं हूं। मैं जानता हूं, जिन फिल्मों के जरिए वो लोकप्रिय हुए, और उनकी जिन फिल्मों को मैं भी पसंद करता हूं...मेरे दिलोदिमाग़ में वो वैसे ही जिंदा रहेंगे। मेरे लिए 18 जुलाई को कोई अर्थ नहीं है।
विज्ञापन याद आ रहा है, जिसमें राजेश खन्ना किसी पंखे की बिक्री बढ़ाने के लिए कह रहे है, बाबू मोशाय मुझसे मेरे फैन्स कोई नहीं छीन सकता।
सोलहों आने सच है।
अच्छा लगा राजेश खन्ना के बारे में यहां भी पढ़ना। उनकी याद को नमन!
ReplyDeleteवे अपने फैन्स के मन में बने रहेंगे।
ReplyDelete