Sunday, November 4, 2012

टाइम मशीन


टाइम मशीन

चाहता हूं,
वक़्त की मशीन में थोड़ा पीछे चलूं.
कुछ लकीरें खींचू, कुछ मिटाऊं
कुछ तस्वीरें बनाऊं

कुछ साल पीछे चलूं.
बचपन नहीं,
झेल लिया है बहुत कसैलापन पहले ही
नौजवानी भी नहीं,
जब चिंता में घुला करता था रात-दिन

उन दिनों में
ले चले वापस मुझे
टाइम मशीन

पैरों के नीचे चरपराहट हो,
कुछ सूखे पत्तों की
और नंगी टहनियों पर टूसे आ रहे हों,
कुछ कोमल पंखुडियों-से

आहिस्ते से
वह आकर पकड़ ले मेरा हाथ
और चूम ले शाइस्तगी से
मेरी गरदन पर का तिल।
जिसे छूकर कहा था उसने कभी,
पता है तुम्हारी गरदन पर
एक तिल बड़ा खूबसूरत है।

टाइम मशीन,
ले चले मुझे
कुछ वक्त पीछे
शायद मिटा सकूं कुछ
उन धब्बों को
और उन सतरों को,
जहां मैंने जितना लिखा है
उससे कहीं अधिक काटा है।
मेरे जीवन में,
जितना ज्वार है, जितना भाटा है

चाहता हूं
कुछ लाईनों की ही सही, 
कर दूं फेरबदल। 
ऐ वक़्त,
थोड़ी तो मोहलत दे मुझे।
 

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