Tuesday, June 11, 2013

आडवाणीः काल के कपाल पर

लाल कृष्ण आडवाणी को भारतीय राजनीति में कुछ जगह तो जरूर मिलेगी, आडवाणी  बीजेपी में शनैः शऩैः अप्रासंगिक होते जाएंगे। हर उम्रदराज़ होते नेता की नियति होती है। लेकिन इतिहास में उनकी वक़त बरकरार रहेगी।

उनके राजनैतिक जीवन का टाइम लाइन कुछ इसतरह हैः

1947: कराची में आरएसएस के सचिव चुने गए।

1951--भारतीय जनसंघ के सदस्य बने, 1975 में अध्यक्ष बने।

1975-77--जनसंघ का आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी  में विलय,  चुनाव के बाद मोरारजी देसाई की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बने

1979-80--जनसंघ की पृष्ठभूमि वाले नेताओं ने जनता पार्टी छोड़ी, जनता पार्टी टूटी, भारतीय जनता पार्टी की स्थापना

1986--आडवाणी  बीजेपी के अध्यक्ष बने

1989--बीजेपी की मदद से केन्द्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी, आडवाणी ने रामजन्मभूमि आंदोलन शुरू किया।

1992--आडवाणी की रथ यात्रा शुरू, बिहार के समस्तीपुर में लालू ने गिरफ़्तार किया, 6 दिसंबर को विवादित ढांचे का ध्वंस

1998, 1999-04---एनडीए को सत्ता मिली, आडवाणी गृह मंत्री बनाए गए। बाद में उप-प्रधानमंत्री बने। इस दौर में, कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ हुई। हवाला कांड सामने आया, बाद में हवाला कांड में आडवाणी को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया

2004--आडवाणी को पीएम बनाने की मंशा से समयपूर्व चुनाव, एनडीए की चुनावों में हार, आडवाणी लोकसभा में विपक्ष के नेता बने। इस दौर में उमा भारती और मदन लाल खुराना ने विद्रोह किया, मुरली मनोहर जोशी ने आडवाणी की आलोचना की,

2005--आडवाणी का पाकिस्तान दौरा, जिन्ना की तारीफ में कशीदे काढ़े, आडवाणी और आरएसएस में खाई उजागर, आडवाणी ने बीजेपी अध्यक्ष पद छोड़ा, राजनाथ बीजेपी अध्यक्ष बने

2007--आडवाणी को पीएम पद का प्रत्याशी घोषित किया गया।

2009--एनडीए दोबारा चुनाव हारी, आडवाणी को किनारे किया गया, सुषमा स्वराज लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं



2 comments:

  1. इस बार का दांव चल कर आडवानी ने अपने राजनितिक जीवन की सारी उपलब्धि समाप्त कर दी.समय के प्रवाह को शायद उन्होंने ज्यादा ही नकार दिया.अगर आज वे समय की धरा को समझ अपने दल में संरक्षक की व मार्गदर्शक की भूमिका लेते तो उनकी व पार्टी दोनों की ही किरकिरी न होती.और न ही वापस कदम लेकर थूक चाटना पड़ता.

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