Saturday, August 24, 2013

अथ तिलचट्टा लव स्टोरी

एक था तिलचट्टा। एक थी तितली। तिलचट्टा, कत्थई रंग का। उसे कत्थई रंग बहुत पसंद था। तितली पीले रंग की थी। जहां बैठती, पंख ऊपर करके। नब्बे डिग्री पर। पंख थे कि फूलों की पंखुड़ी...पीला रंग था या फूलों का पराग, आसमान ही जाने।

तिलचट्टा उड़ भी सकता था। लेकिन उड़ान छोटी हुआ करती। तितली को जिस दिन से देखा ता तिलचट्टे ने, बस दीवाना हो गया था। डरता भी था, कहां तितली, कहां तिलचट्टा। कहां गुलाब, कहां कुकुरमुत्ता। कहां ट्यूलिप, कहां धतूरा।

तितली उड़ती तो यूं बलखाती कि देखने वाले देखते रह जाते।

तिलचट्टा, कूड़े में पैदा हुआ था। उसकी सोच का विस्तार भी कूड़े तक ही था। कूड़े में रहने वालों तक, कूड़ा बीनने वालो तक, कूड़ा पैदा करनेवालों से उसे कत्तई सहानुभूति न थी...लेकिन कूड़े में रहने वालों के लिए वह संघर्ष करता रहता। तिलचट्टा था भी अजीब...इंटेलेक्चुअल किस्म का।

लेकिन कैसा भी इंटेलेक्चुअल क्यों न हो, ससुरा दिल तो दिल है। तितली को देखा तो बस वो भी वैसे ही देखता रहा गया। लेकिन उसके देखने और बाकियों के देखने में फर्क था। तिलचट्टे ने ज्यों ही तितली को देखा, लगा इसको तो देखा है कहीं...कभी। जबकि सच बात ये थी कि दोनों कभी मिले नहीं थे।

तिलचट्टे की तमाम उम्र फाकाकशी में कटी थी। तितली देखकर हिम्मत जवाब दे गई। तितली का चेहरा धूसर  रंग का था, नुकीले टेंटाकल्स थे...आंखें कत्थई थीं। यही कत्थई रंग तिलचट्टे को अपना-सा लगा था। तितली की आंखों में सच्चाई थी। तिलचट्टे का दिल साफ-सुथरा था।

प्रेम तो साफ-सुथरा ही होता है।

लेकिन एक दिन यूं ही, जब मौसम सावन का था और अंधे को भी हरियाली सूझ रही थी, तिलचट्टे ने टुकड़ों-टुकड़ो में अपने दिल का हाल बयां कर दिया। चाय में चीनी घुलाते हुए तितली ने रीझकर रूमानियत का सबब पूछा था, तो जवाब में तिलचट्टा भी बस मुस्कुरा ही पाया था।

पेड़ बारिशों में धुल चुके थे। लताओं ने पेड़ों को भी छांव दे रखी थी। कांच के बाहर बारिश की बूंदो ने मोतियों की माला जड़ दी थी, और तिलचट्टे को लगा कि ये माहौल कितना दौलतमंद हो गया है।

तिलचट्टे ने देखा था, बरस रहे बादल थोड़ी देर के लिए सुस्ताने लगे थे, बारिश खत्म नहीं हुई थी, रूकी भर थी। उसे लगा कि ये जो तितली है वह तो रवानी वाली ऐसी दरिया है जिसके पानी की प्यास नहीं उसे।

तिलचट्टे और तितली घड़ी भर साथ रहे, दो घड़ी भर।  लेकिन, तिलचट्टा अब जब भी पंख फैलाता, फड़फड़ाहट की जगह संगीत सा उठता। तिलचट्टा उड़ तो सकता था, लेकिन लंबी उड़ान नहीं। तितली ने कहा, तुम्हे लंबा उड़ना होगा। गोकि तुम तिलचट्टे हो, लेकिन उड़ना तो तुम्हें होगा ही, तेरी किस्मत में कूड़े का ढेर नहीं है।

तिलचट्टा उड़ने की कोशिश में लगा रहा। पीली तितली साथ रहती। वह उड़ने लगा। भाग मिल्खा भाग के मिल्खा सरीखा, टायर पीछे बांधकर। ताकि कभी, जब वो तितली के साथ उड़े तो कदम पीछे न रह जाएं।

एक शाम जब तितली के पीछे से सूरज को रौशनी आ रही थी, तितली का पीला रंग आफताबी हो गया। तितली पिघलने लगी। तितली का रंग भी तिलचट्टे सरीखा होने लगा।

तितली पिघलकर गिलास में ढल गई। तिलचट्टे को ऐसा नशा कभी न हुआ था। नशा ऐसा मानो, दुनिया भर की तमाम शराब की बोतलें गटक गया हो...। प्रेम का नशा कुछ ऐसा ही होता है बरखुरदार, एक बुढाए तिलचट्टे ने कहा।

तिलचट्टा अब कुछ किरदार गढ़ रहा है। कुकुरमुत्तों, धतूरे के फूलों, भटकटैया को जमा कर रहा है, चींटियों की सेना खड़ा कर रहा है। तितली ने कहा है, प्यारे तिलचट्टे, तुम दुनिया बदल सकते हो। तिलचट्टा इन्हीं से दुनिया बदलेगा...तिलचट्टा उड़ने लगा है, उसके पंखों में तितली की सी चपलता आ गई है, भौंरो की ताकत आ गई है, उसके पास तितली का रंग है।

तितली की दोस्त फूलों ने अपनी गंध दी है। उसे कूड़े का ढेर भी पसंद है, और तितली की नजाकत भी।

बादल गहरे रंग के हो गए हैं। बारिश का पानी फिर है। रेल की पटरियां समांतर दूरी पर तो हैं, लेकिन साथ हैं...सूरज डूब रहा है, आसमान सिंदूरी हो रहा है। दुनिया बदल रही है...


--जारी

Thursday, August 15, 2013

जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं...



शिकायत करना हम देशवासियों का शगल है। मैं कोई शिकायत करने नहीं जा रहा। हिलती-डुलती गाड़ी के एसी के दूसरे दर्ज़े में बैठा हूं। उड़ीसा जा रहा हूं। सामने की सीट पर एक बुजुर्गवार बैठे हैं। साथ में उनका घरेलू कामगार है, किसी उड़िया जनजाति का लड़का है। बच्चा ही है। बुजुर्गवार की पत्नी साथ में है

बुजुर्ग दंपत्ति के कपड़ों से लगता है काफी साधारण घरों के हैं। खादी का मोटा कुर्ता, धोती कभी सफेद रही होगी। गले में खादी का मोटा गमछा। रंग ताम्रवर्णी। बाल श्वेत हो चले। भौंहे तक सफ़ेद। बीवी के हाथों में कांच की चूड़ियां। बैंगनी रंग की साधारण सूती साड़ी। दोनों के पांव में हवाई चप्पलें हैं। नौकर के पैरों में जो हवाई चप्पल है उस पर फेसबुक लिखा है।

मैं भी गपोड़ हूं और शायद सामने बैठे बुजुर्गवार भी। हम दोनों के बीच आईटीओ पार करते ही बातचीत शुरू हो गई थी। अभी हम भद्रक पहुंचने वाले हैं पत्नी सारे रास्ते चुप बैठी है। एक गंवई पत्नी की तरह।

कोच अटेंडेंट आता है। मुझसे बात करते वक्त उसके एक वित्तीय आदर है। उस आदर में शाम को मेरे उतरने के वक्त मिलने वाली टिप की उम्मीद का बोझ है। वही अटेंडेंट आकर उनसे ऐसे बात करता है मानो बहुत दिनों से जानता हो। पूछता है, बहुत दिनों बाद आए।

मैं पूछता हूं, आप दिल्ली बार-बार आते हैं क्या। हां। इसके बाद बातचीत महंगाई, नक्सल, जनजातियों की समस्या, वेदांता, कोरापुट, नक्सल, राहुल गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह तक पहुंच जाती है। बुजुर्गवार को महीन जानकारियां हैं।

मेरे बारे में बहुत पूछताछ करते हैं। कहां के हो, कौन है घर में...लेकिन इस पूछताछ में एक बुजुर्गाना लाड़ और आह्लाद है। अब मैं पूछता हूं आप..? तब बताते हैं कि उनका नाम अनादिचरण दास है। पांच बार सांसद रह चुके हैं। आखिरी बार सन् 91 लोकसभा जीते थे। पहली बार 71 में जीते थे। अपने बारे में बस इतना ही बताते हैं।

मैं सादगी देखकर दंग हूं। अब तो हाल यह है कि पहली बार विधायक बनकर लोग खदानें खरीद रहे हैँ। पांच बार सांसद चुना जा चुका शख्स हवाई चप्पल पहन रहा है। एसी के दूसरे दर्जे में सफर कर रहा है। चेहरे पर दबंगई का कोई भाव नहीं है।

मैं सोचता हूं आजादी का जश्न पूरे भारत में मनाया जा रहा होगा। लेकिन, पटवारी से लेकर विभिन्न मंत्री भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। वह बुझे मन से कहते हैं, किसी ने कहा है राज्यसभा की सीट सौ करोड़ में बिकती है। हामी भरने के सिवा कोई चारा नहीं है मेरे पास।

रात में गूगल किया था मैंने, अनादि चरण दास को खोजा गूगल पर। मिल गए। उड़ीसा के जाजपुर सीट से सन् 1971, 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ी, विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल गए, वहीं से दो बार 1989 और 1991 में चुनाव जीता। 1996 में फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जनता दल की आंचल दास से चार हजार वोटों से हार गए। फिर उम्र के तकाजे के साथ राजनीति छोड़ दी। जाजपुर-कोरापुट इलाके में अनादिचरण दास एक मजबूत उम्मीदवार माने जाते थे। लेकिन, उनके पास आज दौलत के नाम पर कुछ नहीं।

कहते हैं कि हर महीने वंचितों, गरीबों, जनजातियों के आर्थिक उत्थान के लिए हर महीने योजना आयोग और सोनियां गांधी को चिट्ठी लिखते हैं। पता नहीं पढ़ी भी जाती है या नहीं। पेट्रोल के दाम बढ़ाने के पक्ष में हैं, कहते है इसका पैसा एससी-एसटी बच्चों की शिक्षा के लिए करना चाहिए।

गुरूदत्त की फिल्म प्यासा का एक गीत याद आ रहा है, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं....ईमानदारी को गूगल पर खोजता हूं। इसे खोजने में तो गूगल भी नाकाम है।

Saturday, August 10, 2013

किसान आत्महत्याः कर्नाटक भी है किसानों की क़ब्रगाह

कर्नाटक में गुलबर्गा जिले के जाबार्गी बाजार में हूं...दरअसल बाजार से थोड़ी दूर है वह जगह। आप चौराहा जैसी जगह कह सकते हैं। सड़के के किनारे बीजेपी के निवर्तमान मुख्यमंत्री (चुनाव के वक्त के मुख्यमंत्री) और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार की रैली है।

सूरज ढल रहा है, गरमी बरकरार है। जगदीश शेट्टर मंच पर हैं, सड़कों पर धूल उड़ रही है, रैली खचाखच भरी है। आसपास अपनी गहरी नज़र से देखता हूं, क्या यह भीड़ खरीदी हुई है...लोगों के चेहरे से पता नहीं लगता। हर चेहरा पसीने से लिथड़ा है...किसी चेहरे पर कुछ नहीं लिखा है। सौम्य जगदीश शेट्टर मंच से कन्नड़ में कुछ कहते हैं, (बाद में पता चला, वो कह रहे थे एक लिंगायत को वोट देंगे ना आप?) जनता की तरफ से आवाज़ आती है आवाज नहीं, हुंकार।

स्थान परिवर्तन। जगहः बेल्लारी जिला. हासनपेट, राहुल गांधी की रैली। बांहे चढ़ाते हुए राहुल हिंदी में भाषण दे रहे हैं। पूछते हैं, घूसखोर और बेईमान येदुयरप्पा और उनकी पार्टी (चुनाव से पहले की) बीजेपी को हराएँगे ना आप..जनता फिर हुंकार भरती है। 

यहां भी लोगों के चेहरे पर उदासीनता थी। लेकिन हेलिकॉप्टर की आवाज ने  एक उत्तेजना तो फैलाई ही थी।

इस दौरे में उत्तरी कर्नाटक के जिस भी जिले में गया, चुनावी भागदौड़ के बीच हर जगह एक फुसफुसाहट चाय दुकानों पर सुनने को मिली। कन्नड़ समझ में नहीं आता था, लेकिन स्वर-अनुतानों से पता चल जाता था कि खुशी की बातें तो हैं नहीं।

कारवाड़, बीजापुर, गुलबर्गा, बीदर...सूखा था। किसानों की आत्महत्या के किस्से भी। 

बीजापुर के एक गांव नंदीयाला गया। इस गांव में पिछले साल एक किसान लिंगप्पा ओनप्पा ने आत्महत्या की थी। उसके घर जाता हूं, दिखता है भविष्य की चिंता से लदा चेहरा। रेणुका लिंगप्पा का। अब उनपर अपने तीन बच्चों समेत सात लोगों का परिवार पालने की जिम्मेदारी आन पड़ी है। पिछले बरस इनके पति लिंगप्पा ने कर्ज के भंवर में फंसकर और बार-बार के बैंक के तकाज़ों से आजिज आकर आत्महत्या का रास्ता चुन लिया। 

लिंगप्पा ने खेती के काम के लिए स्थानीय साहूकारों और महाजनों और बैंक से कर्ज लिया था, लेकिन ये कर्ज लाइलाज मर्ज की तरह बढ़ता गया। बीजापुर के बासोअन्ना बागेबाड़ी में आत्महत्या कर चुके चार किसानों के नाम हमारे सामने आए। इस तालुके के मुल्लाला गांव शांतप्पा गुरप्पा ओगार पर महज 31 हजार रूपये का कर्ज था। नंदीयाला वाले लिंगप्पा पर साहूकारों और बैंको का कुल कर्ज 8 लाख था। इंगलेश्वरा गांव के बसप्पा शिवप्पा इकन्नगुत्ती  और नागूर गांव के परमानंद श्रीशैल हरिजना को भी मौत की राह चुननी पड़ी।


पूरे बीजापुर जि़ले में पिछले साल अप्रैल के बाद से अब तक 13 किसानों ने आत्महत्या की राह पकड़ ली है। पूरे कर्नाटक में यह आंकड़ा इस साल 187 तो 2011 में 242 आत्महत्याओं का रहा था। इस साल, बीदर में 14, हासन मे दस, चित्रदुर्ग में बारह किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। गुलबर्गा, कोडागू, रामनगरम, बेलगाम कोलार, चामराजनगर, हवेरी जैसे जिलों से भी किसान आत्महत्याओं की खबरें के लिए कुख्यात हो चुके हैं।

खेती की बढ़ती लागत और उत्तरी कर्नाटक का सूखा किसानों की जान का दुश्मन बन गया है। पिछले वित्त वर्ष में कुल बोई गई फसलों का 16 फीसद अनियमित बारिश की भेंट चढ गया। और कर्नाटक सरकार ने सूबे के 28 जिलों के 157 तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया था। लेकिन राहत कार्यो में देरी ने समस्या को बढ़ाया ही। किसानों की आत्महत्या कर्नाटक में नया मसला नहीं है। पिछले दस साल में 2886 किसानों ने अपनी जान दी है। 

पिछले दशक में बारह ऐसे जिले हैं जिनमें सौ से ज्यादा किसान आत्महत्याएं हुई हैं, ये हैं. बीदर, 234. हासन 316, हवेरी 131, मांड्या 114, चिकमंगलूर 221, तुमकुर 146, बेलगाम 205, शिमोगा 170 दावनगेरे, 136, चित्रदुर्ग 205 गुलबर्गा 118, और बीजापुर 149
लेकिन, किसानों की आत्महत्याएं अब आम घटना की तरह ली जाने लगी हैं और विकास की अंधी दौड़ में हाशिए पर पड़े गरीब किसानों की जान की कीमत अखबार में सिंगल कॉलम की खबर से ज्यादा नही रही हैं। 

कर्नाटक दौरे में यह इलाका, अब मुझे परेशान करने लगा है। गरमी तो झेल लेगा कोई, लेकिन समस्याओं की यह तपिश नहीं झेली जाती।


Thursday, August 8, 2013

कुछ तस्वीरें गुजरात कीः रोहन सिंह

End Of The World! दुनिया का छोर फोटोः रोहन सिंह

Absolute Barren! बंजर है सब बंजर है फोटोः रोहन सिंह