एक था तिलचट्टा। एक थी तितली। तिलचट्टा, कत्थई रंग का। उसे कत्थई रंग बहुत पसंद था। तितली पीले रंग की थी। जहां बैठती, पंख ऊपर करके। नब्बे डिग्री पर। पंख थे कि फूलों की पंखुड़ी...पीला रंग था या फूलों का पराग, आसमान ही जाने।
तिलचट्टा उड़ भी सकता था। लेकिन उड़ान छोटी हुआ करती। तितली को जिस दिन से देखा ता तिलचट्टे ने, बस दीवाना हो गया था। डरता भी था, कहां तितली, कहां तिलचट्टा। कहां गुलाब, कहां कुकुरमुत्ता। कहां ट्यूलिप, कहां धतूरा।
तितली उड़ती तो यूं बलखाती कि देखने वाले देखते रह जाते।
तिलचट्टा, कूड़े में पैदा हुआ था। उसकी सोच का विस्तार भी कूड़े तक ही था। कूड़े में रहने वालों तक, कूड़ा बीनने वालो तक, कूड़ा पैदा करनेवालों से उसे कत्तई सहानुभूति न थी...लेकिन कूड़े में रहने वालों के लिए वह संघर्ष करता रहता। तिलचट्टा था भी अजीब...इंटेलेक्चुअल किस्म का।
लेकिन कैसा भी इंटेलेक्चुअल क्यों न हो, ससुरा दिल तो दिल है। तितली को देखा तो बस वो भी वैसे ही देखता रहा गया। लेकिन उसके देखने और बाकियों के देखने में फर्क था। तिलचट्टे ने ज्यों ही तितली को देखा, लगा इसको तो देखा है कहीं...कभी। जबकि सच बात ये थी कि दोनों कभी मिले नहीं थे।
तिलचट्टे की तमाम उम्र फाकाकशी में कटी थी। तितली देखकर हिम्मत जवाब दे गई। तितली का चेहरा धूसर रंग का था, नुकीले टेंटाकल्स थे...आंखें कत्थई थीं। यही कत्थई रंग तिलचट्टे को अपना-सा लगा था। तितली की आंखों में सच्चाई थी। तिलचट्टे का दिल साफ-सुथरा था।
प्रेम तो साफ-सुथरा ही होता है।
लेकिन एक दिन यूं ही, जब मौसम सावन का था और अंधे को भी हरियाली सूझ रही थी, तिलचट्टे ने टुकड़ों-टुकड़ो में अपने दिल का हाल बयां कर दिया। चाय में चीनी घुलाते हुए तितली ने रीझकर रूमानियत का सबब पूछा था, तो जवाब में तिलचट्टा भी बस मुस्कुरा ही पाया था।
पेड़ बारिशों में धुल चुके थे। लताओं ने पेड़ों को भी छांव दे रखी थी। कांच के बाहर बारिश की बूंदो ने मोतियों की माला जड़ दी थी, और तिलचट्टे को लगा कि ये माहौल कितना दौलतमंद हो गया है।
तिलचट्टे ने देखा था, बरस रहे बादल थोड़ी देर के लिए सुस्ताने लगे थे, बारिश खत्म नहीं हुई थी, रूकी भर थी। उसे लगा कि ये जो तितली है वह तो रवानी वाली ऐसी दरिया है जिसके पानी की प्यास नहीं उसे।
तिलचट्टे और तितली घड़ी भर साथ रहे, दो घड़ी भर। लेकिन, तिलचट्टा अब जब भी पंख फैलाता, फड़फड़ाहट की जगह संगीत सा उठता। तिलचट्टा उड़ तो सकता था, लेकिन लंबी उड़ान नहीं। तितली ने कहा, तुम्हे लंबा उड़ना होगा। गोकि तुम तिलचट्टे हो, लेकिन उड़ना तो तुम्हें होगा ही, तेरी किस्मत में कूड़े का ढेर नहीं है।
तिलचट्टा उड़ने की कोशिश में लगा रहा। पीली तितली साथ रहती। वह उड़ने लगा। भाग मिल्खा भाग के मिल्खा सरीखा, टायर पीछे बांधकर। ताकि कभी, जब वो तितली के साथ उड़े तो कदम पीछे न रह जाएं।
एक शाम जब तितली के पीछे से सूरज को रौशनी आ रही थी, तितली का पीला रंग आफताबी हो गया। तितली पिघलने लगी। तितली का रंग भी तिलचट्टे सरीखा होने लगा।
तितली पिघलकर गिलास में ढल गई। तिलचट्टे को ऐसा नशा कभी न हुआ था। नशा ऐसा मानो, दुनिया भर की तमाम शराब की बोतलें गटक गया हो...। प्रेम का नशा कुछ ऐसा ही होता है बरखुरदार, एक बुढाए तिलचट्टे ने कहा।
तिलचट्टा अब कुछ किरदार गढ़ रहा है। कुकुरमुत्तों, धतूरे के फूलों, भटकटैया को जमा कर रहा है, चींटियों की सेना खड़ा कर रहा है। तितली ने कहा है, प्यारे तिलचट्टे, तुम दुनिया बदल सकते हो। तिलचट्टा इन्हीं से दुनिया बदलेगा...तिलचट्टा उड़ने लगा है, उसके पंखों में तितली की सी चपलता आ गई है, भौंरो की ताकत आ गई है, उसके पास तितली का रंग है।
तितली की दोस्त फूलों ने अपनी गंध दी है। उसे कूड़े का ढेर भी पसंद है, और तितली की नजाकत भी।
बादल गहरे रंग के हो गए हैं। बारिश का पानी फिर है। रेल की पटरियां समांतर दूरी पर तो हैं, लेकिन साथ हैं...सूरज डूब रहा है, आसमान सिंदूरी हो रहा है। दुनिया बदल रही है...
--जारी
तिलचट्टा उड़ भी सकता था। लेकिन उड़ान छोटी हुआ करती। तितली को जिस दिन से देखा ता तिलचट्टे ने, बस दीवाना हो गया था। डरता भी था, कहां तितली, कहां तिलचट्टा। कहां गुलाब, कहां कुकुरमुत्ता। कहां ट्यूलिप, कहां धतूरा।
तितली उड़ती तो यूं बलखाती कि देखने वाले देखते रह जाते।
तिलचट्टा, कूड़े में पैदा हुआ था। उसकी सोच का विस्तार भी कूड़े तक ही था। कूड़े में रहने वालों तक, कूड़ा बीनने वालो तक, कूड़ा पैदा करनेवालों से उसे कत्तई सहानुभूति न थी...लेकिन कूड़े में रहने वालों के लिए वह संघर्ष करता रहता। तिलचट्टा था भी अजीब...इंटेलेक्चुअल किस्म का।
लेकिन कैसा भी इंटेलेक्चुअल क्यों न हो, ससुरा दिल तो दिल है। तितली को देखा तो बस वो भी वैसे ही देखता रहा गया। लेकिन उसके देखने और बाकियों के देखने में फर्क था। तिलचट्टे ने ज्यों ही तितली को देखा, लगा इसको तो देखा है कहीं...कभी। जबकि सच बात ये थी कि दोनों कभी मिले नहीं थे।
तिलचट्टे की तमाम उम्र फाकाकशी में कटी थी। तितली देखकर हिम्मत जवाब दे गई। तितली का चेहरा धूसर रंग का था, नुकीले टेंटाकल्स थे...आंखें कत्थई थीं। यही कत्थई रंग तिलचट्टे को अपना-सा लगा था। तितली की आंखों में सच्चाई थी। तिलचट्टे का दिल साफ-सुथरा था।
प्रेम तो साफ-सुथरा ही होता है।
लेकिन एक दिन यूं ही, जब मौसम सावन का था और अंधे को भी हरियाली सूझ रही थी, तिलचट्टे ने टुकड़ों-टुकड़ो में अपने दिल का हाल बयां कर दिया। चाय में चीनी घुलाते हुए तितली ने रीझकर रूमानियत का सबब पूछा था, तो जवाब में तिलचट्टा भी बस मुस्कुरा ही पाया था।
पेड़ बारिशों में धुल चुके थे। लताओं ने पेड़ों को भी छांव दे रखी थी। कांच के बाहर बारिश की बूंदो ने मोतियों की माला जड़ दी थी, और तिलचट्टे को लगा कि ये माहौल कितना दौलतमंद हो गया है।
तिलचट्टे ने देखा था, बरस रहे बादल थोड़ी देर के लिए सुस्ताने लगे थे, बारिश खत्म नहीं हुई थी, रूकी भर थी। उसे लगा कि ये जो तितली है वह तो रवानी वाली ऐसी दरिया है जिसके पानी की प्यास नहीं उसे।
तिलचट्टे और तितली घड़ी भर साथ रहे, दो घड़ी भर। लेकिन, तिलचट्टा अब जब भी पंख फैलाता, फड़फड़ाहट की जगह संगीत सा उठता। तिलचट्टा उड़ तो सकता था, लेकिन लंबी उड़ान नहीं। तितली ने कहा, तुम्हे लंबा उड़ना होगा। गोकि तुम तिलचट्टे हो, लेकिन उड़ना तो तुम्हें होगा ही, तेरी किस्मत में कूड़े का ढेर नहीं है।
तिलचट्टा उड़ने की कोशिश में लगा रहा। पीली तितली साथ रहती। वह उड़ने लगा। भाग मिल्खा भाग के मिल्खा सरीखा, टायर पीछे बांधकर। ताकि कभी, जब वो तितली के साथ उड़े तो कदम पीछे न रह जाएं।
एक शाम जब तितली के पीछे से सूरज को रौशनी आ रही थी, तितली का पीला रंग आफताबी हो गया। तितली पिघलने लगी। तितली का रंग भी तिलचट्टे सरीखा होने लगा।
तितली पिघलकर गिलास में ढल गई। तिलचट्टे को ऐसा नशा कभी न हुआ था। नशा ऐसा मानो, दुनिया भर की तमाम शराब की बोतलें गटक गया हो...। प्रेम का नशा कुछ ऐसा ही होता है बरखुरदार, एक बुढाए तिलचट्टे ने कहा।
तिलचट्टा अब कुछ किरदार गढ़ रहा है। कुकुरमुत्तों, धतूरे के फूलों, भटकटैया को जमा कर रहा है, चींटियों की सेना खड़ा कर रहा है। तितली ने कहा है, प्यारे तिलचट्टे, तुम दुनिया बदल सकते हो। तिलचट्टा इन्हीं से दुनिया बदलेगा...तिलचट्टा उड़ने लगा है, उसके पंखों में तितली की सी चपलता आ गई है, भौंरो की ताकत आ गई है, उसके पास तितली का रंग है।
तितली की दोस्त फूलों ने अपनी गंध दी है। उसे कूड़े का ढेर भी पसंद है, और तितली की नजाकत भी।
बादल गहरे रंग के हो गए हैं। बारिश का पानी फिर है। रेल की पटरियां समांतर दूरी पर तो हैं, लेकिन साथ हैं...सूरज डूब रहा है, आसमान सिंदूरी हो रहा है। दुनिया बदल रही है...
--जारी
यह परिवर्तन तो बड़ा ही रोचक लग रहा है, प्रतीक्षा भी कर रहे है।
ReplyDeleteचंद पोस्टों तक जाती एक गली , जिसमें हमने आपका एक ठिकाना भी सहेज़ लिया है , और उसके साथ एक मुस्कुराहट के लिए चंद शब्द जोड दिए हैं , आइए मिलिए उनसे और दोस्तों के अन्य पोस्टों से , आज की ब्लॉग बुलेटिन पर
ReplyDeleteये इश्क़ भी गजब होता है ...
ReplyDeleteउफ़्फ़ ये इश्क
ReplyDeleteWOW !
ReplyDeleteinteresting story b/w "TILCHATTA" & "TITALI".
waiting for nxt episode
WOW !
ReplyDeleteinteresting story b/w "TILCHATTA" & "TITALI" wid scenic beauty.
SupB
waiting for nxt episode