बैंगनी रंग का कुरता पहन रखा था शायद कंचनजंघा ने....सूरज पश्चिम में छिपने की कोशिश में था। पहाड़ का तो क्या है, सूरज पहाड़ों के पीछे गया नहीं, कि अंधेरा हुआ...। गंगटोक में भी ऐसा ही हुआ था। सूरज छिपा, अंधेरा हुआ, और इसके साथ ही ठंड ने नश्तर चुभोने शुरू कर दिए।
गंगटोक में मॉल रोड ही है...गुलज़ार रहने वाला। अपने हाफ बाजू के स्वेटर में सिकुड़ता हुआ, काली पृष्ठभूमि में सफेद धुएं के बीच, उस गुलज़ार सड़क पर कपड़ो की एक दुकान पर अटकता हूं....। पीली कुरते वाली लड़की...आंखों में गहरा काजल...।
मेरे चश्में पर भाप जम गई है। मुंह से निकली भाप। चीजें धुंधली नजर आऩे लगी है। धत्त, ये कोई लड़की नहीं है, मेरी कहानी से निकलकर सामने नहीं आ खड़ी हुई है मेरी नायिका। ये तो पुतला है, प्लास्टिक का।
बगल में कहीं, चेन्नई एक्सप्रेस का गाना चल रहा है। यो यो हनी सिंह, कोकोनट में लस्सी मिलाकर पीने की गुजारिश कर रहे हैं। लुंगी डांस।
लुंगी डांस राष्ट्रीय गीत की तरह मेरे कानों में बज रहा है...सफदर हाशमी मार्ग पर खड़ा होकर मैं गाड़ियों की भीड़ के खत्म होने का इंतजार कर रहा हूं। दिल्ली की ट्रैफिक मन के अंधेरे और नाउम्मीदी की तरह कभी ना खत्म होने वाली शै है। कार के बेवजह और तेज़ हॉर्न ने टाइम और स्पेस ही बदल दिया। यादों में गंगटोक जीते-जीते, दिल्ली में आ खड़ा हुआ।
सामने है हमारा दफ्तर...गोभी की फूल की तरह नीचे संकरा...ऊपर फूलता चला जाता हुआ। उल्टे पिरामिड जैसी आकृति।
आज सूरज कुछ खास नहीं निकल पाया। बादलों से झड़प हुई थी, या कोहरे को मिल रहे इम्पॉर्टेंस से रूठा हुआ था, वही जाने या आसमान। कोहरा भी कोई पूरी तरह सफेद नहीं है। न कोहरा है, न सूरज है, न उजाला है न अंधेरा है। गजब की नाउम्मीदी है। दिल्ली में सरकार बनाने जैसा अनिश्चय है।
जीवन में अजब गजब रंग देखने को मिलते हैं। आजकल राजनीति रंगीन है। सिर पर सफेद टोपी पहने वाले केजरीवाल ने कहा है, उनकी पार्टी ईमानदार पार्टी है। केजरीवाल ने कहा था उनसे पहले सत्ताधारी पार्टी यानी कांग्रेस भ्रष्ट थी। अब कथित भ्रष्ट पार्टी कथित ईमानदार पार्टी को सपोर्ट दे रही है।
सवाल यह है कि सफेद टोपी वाली पार्टी, भगवा और खाकी रंग वालो, के साथ काली कमाई का आरोप झेल रही कांग्रेस पर क्या कार्रवाई करेगी। दिल्ली की राजनीति का क्या रंग आए गा सामने. यह दिलचस्प होगा। पता है, लाल को कोई रोल नहीं, लेकिन सफेद कितने दिन सफेद बना रहेगा, या धूसर हो जाएगा...लोकसभा चुनाव तक, इसी पर तो सबकी निगाहे हैं।
सोचने का वक्त नहीं है...बैठक शुरू होने ही वाली है...एडिटोरियल मीटिंग। रस्म है। रोजाना। मीटिंग में फिर वही सोच सामने आ जाती है...गाढ़ा बैंगनी कुरते पहनी गंगटोक की बर्फीली कंचनजंघा मेरी फैली हुई बांहों में सिमट गई, तो उस पर छाई हुई बदली सूरज की किरनों से लाल हो गईं थीं....या शरम से।
गंगटोक में मॉल रोड ही है...गुलज़ार रहने वाला। अपने हाफ बाजू के स्वेटर में सिकुड़ता हुआ, काली पृष्ठभूमि में सफेद धुएं के बीच, उस गुलज़ार सड़क पर कपड़ो की एक दुकान पर अटकता हूं....। पीली कुरते वाली लड़की...आंखों में गहरा काजल...।
मेरे चश्में पर भाप जम गई है। मुंह से निकली भाप। चीजें धुंधली नजर आऩे लगी है। धत्त, ये कोई लड़की नहीं है, मेरी कहानी से निकलकर सामने नहीं आ खड़ी हुई है मेरी नायिका। ये तो पुतला है, प्लास्टिक का।
बगल में कहीं, चेन्नई एक्सप्रेस का गाना चल रहा है। यो यो हनी सिंह, कोकोनट में लस्सी मिलाकर पीने की गुजारिश कर रहे हैं। लुंगी डांस।
लुंगी डांस राष्ट्रीय गीत की तरह मेरे कानों में बज रहा है...सफदर हाशमी मार्ग पर खड़ा होकर मैं गाड़ियों की भीड़ के खत्म होने का इंतजार कर रहा हूं। दिल्ली की ट्रैफिक मन के अंधेरे और नाउम्मीदी की तरह कभी ना खत्म होने वाली शै है। कार के बेवजह और तेज़ हॉर्न ने टाइम और स्पेस ही बदल दिया। यादों में गंगटोक जीते-जीते, दिल्ली में आ खड़ा हुआ।
सामने है हमारा दफ्तर...गोभी की फूल की तरह नीचे संकरा...ऊपर फूलता चला जाता हुआ। उल्टे पिरामिड जैसी आकृति।
आज सूरज कुछ खास नहीं निकल पाया। बादलों से झड़प हुई थी, या कोहरे को मिल रहे इम्पॉर्टेंस से रूठा हुआ था, वही जाने या आसमान। कोहरा भी कोई पूरी तरह सफेद नहीं है। न कोहरा है, न सूरज है, न उजाला है न अंधेरा है। गजब की नाउम्मीदी है। दिल्ली में सरकार बनाने जैसा अनिश्चय है।
जीवन में अजब गजब रंग देखने को मिलते हैं। आजकल राजनीति रंगीन है। सिर पर सफेद टोपी पहने वाले केजरीवाल ने कहा है, उनकी पार्टी ईमानदार पार्टी है। केजरीवाल ने कहा था उनसे पहले सत्ताधारी पार्टी यानी कांग्रेस भ्रष्ट थी। अब कथित भ्रष्ट पार्टी कथित ईमानदार पार्टी को सपोर्ट दे रही है।
सवाल यह है कि सफेद टोपी वाली पार्टी, भगवा और खाकी रंग वालो, के साथ काली कमाई का आरोप झेल रही कांग्रेस पर क्या कार्रवाई करेगी। दिल्ली की राजनीति का क्या रंग आए गा सामने. यह दिलचस्प होगा। पता है, लाल को कोई रोल नहीं, लेकिन सफेद कितने दिन सफेद बना रहेगा, या धूसर हो जाएगा...लोकसभा चुनाव तक, इसी पर तो सबकी निगाहे हैं।
सोचने का वक्त नहीं है...बैठक शुरू होने ही वाली है...एडिटोरियल मीटिंग। रस्म है। रोजाना। मीटिंग में फिर वही सोच सामने आ जाती है...गाढ़ा बैंगनी कुरते पहनी गंगटोक की बर्फीली कंचनजंघा मेरी फैली हुई बांहों में सिमट गई, तो उस पर छाई हुई बदली सूरज की किरनों से लाल हो गईं थीं....या शरम से।