Thursday, December 26, 2013

बैनीआहपीनाला

बैंगनी रंग का कुरता पहन रखा था शायद कंचनजंघा ने....सूरज पश्चिम में छिपने की कोशिश में था। पहाड़ का तो क्या है, सूरज पहाड़ों के पीछे गया नहीं, कि अंधेरा हुआ...। गंगटोक में भी ऐसा ही हुआ था। सूरज छिपा, अंधेरा हुआ, और इसके साथ ही ठंड ने नश्तर चुभोने शुरू कर दिए।

गंगटोक में मॉल रोड ही है...गुलज़ार रहने वाला। अपने हाफ बाजू के स्वेटर में सिकुड़ता हुआ, काली पृष्ठभूमि में सफेद धुएं के बीच, उस गुलज़ार सड़क पर कपड़ो की एक दुकान पर अटकता हूं....। पीली कुरते वाली लड़की...आंखों में गहरा काजल...।

मेरे चश्में पर भाप जम गई है। मुंह से निकली भाप।  चीजें धुंधली नजर आऩे लगी है। धत्त, ये कोई लड़की नहीं है, मेरी कहानी से निकलकर सामने नहीं आ खड़ी हुई है मेरी नायिका।  ये तो पुतला है, प्लास्टिक का।

बगल में कहीं, चेन्नई एक्सप्रेस का गाना चल रहा है। यो यो हनी सिंह, कोकोनट में लस्सी मिलाकर पीने की गुजारिश कर रहे हैं। लुंगी डांस।

लुंगी डांस राष्ट्रीय गीत की तरह मेरे कानों में बज रहा है...सफदर हाशमी मार्ग पर खड़ा होकर मैं गाड़ियों की भीड़ के खत्म होने का इंतजार कर रहा हूं। दिल्ली की ट्रैफिक मन के अंधेरे और नाउम्मीदी की तरह कभी ना खत्म होने वाली शै है। कार के बेवजह और तेज़ हॉर्न ने टाइम और स्पेस ही बदल दिया। यादों में गंगटोक जीते-जीते, दिल्ली में आ खड़ा हुआ।

सामने है हमारा दफ्तर...गोभी की फूल की तरह नीचे संकरा...ऊपर फूलता चला जाता हुआ। उल्टे पिरामिड जैसी आकृति।

आज सूरज कुछ खास नहीं निकल पाया। बादलों से झड़प हुई थी, या कोहरे को मिल रहे इम्पॉर्टेंस से रूठा हुआ था, वही जाने या आसमान। कोहरा भी कोई पूरी तरह सफेद नहीं है। न कोहरा है, न सूरज है, न उजाला है न अंधेरा है। गजब की नाउम्मीदी है। दिल्ली में सरकार बनाने जैसा अनिश्चय है।

जीवन में अजब गजब रंग देखने को मिलते हैं। आजकल राजनीति रंगीन है। सिर पर सफेद टोपी पहने वाले केजरीवाल ने कहा है, उनकी पार्टी ईमानदार पार्टी है। केजरीवाल ने कहा था उनसे पहले सत्ताधारी पार्टी यानी कांग्रेस भ्रष्ट थी। अब कथित भ्रष्ट पार्टी कथित ईमानदार पार्टी को सपोर्ट दे रही है।

सवाल यह है कि सफेद टोपी वाली पार्टी, भगवा और खाकी रंग वालो, के साथ काली कमाई का आरोप झेल रही कांग्रेस पर क्या कार्रवाई करेगी। दिल्ली की राजनीति का क्या रंग आए गा सामने. यह दिलचस्प होगा। पता है, लाल को कोई रोल नहीं, लेकिन सफेद कितने दिन सफेद बना रहेगा, या धूसर हो जाएगा...लोकसभा चुनाव तक, इसी पर तो सबकी निगाहे हैं।

सोचने का वक्त नहीं है...बैठक शुरू होने ही वाली है...एडिटोरियल मीटिंग। रस्म है। रोजाना। मीटिंग में फिर वही सोच सामने आ जाती है...गाढ़ा बैंगनी कुरते पहनी गंगटोक की बर्फीली कंचनजंघा मेरी फैली हुई बांहों में सिमट गई, तो उस पर छाई हुई बदली सूरज की किरनों से लाल हो गईं थीं....या शरम से।








Tuesday, December 17, 2013

हंपी का माल्यवंत रघुनाथ मंदिरः कुछ तस्वीरें

माल्यवन्त रघुनाथ मंदिर का शिखर

मंदिर का प्रवेश-द्वार

अहाते के अंदर से प्रवेश-द्वार की छवि

कुछ यूं दिखता है अहाते से मंदिर का चबूतरा

नीम की छांव में मंदिर परिसर

रघुनाथ मंदिर के चबूतरे से पूर्वी द्वार का दृश्य

गर्भगृह में प्रस्थापित रघुनाथ, कमलेश्वरी, लक्ष्मण और हनुमान, सभी फोटोः मंजीत ठाकुर


Tuesday, December 10, 2013

नमो लहर से किसको इनकार है?

नरेन्द्र मोदी निश्चित रूप से ऐसे नेता है, जिनको लेकर कांग्रेस से लेकर तमाम दलों में अजीब सा अनिश्चय है। विधानसभा चुनाव के नतीजे आ ही रहे थे और रूझानों की दौर भी चल रहा था कि बुद्धिजीवियों के एक तबके ने मोदी की लहर को सिरे से इनकार करना शुरू कर दिया। अगर मोदी का विरोध करना है, और लोकतंत्र ऐसे ही चलता है, तो उऩकी कमजोरियों के साथ उनकी ताकत को भी समझना होगा। कांग्रेस और बाकी के दल जितनी जल्दी मोदी से मुंह छिपाने की बजाय उनकी लहर की वजहों को समझने की कोशिश करेंगी, 2014 में उनके लिए उतनी ही आसानी होगी।

8 दिसंबर को तमाम बुद्धिजीवियों ने मोदी की लहर से इनकार करते हुए दिल्ली और छत्तीसगढ़ के परिणामों की मिसालें दी। राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ लहर बताई और मध्य प्रदेश में यह सेहरा शिवराज के सिर बांधा। सच है कि दिल्ली और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के वोट शेयर में कोई बढोत्तरी दर्ज नहीं की गई है।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के समर्थक और बीजेपी के विरोधी कहते रहे कि केजरीवाल और उनके दल ने बड़ो-बड़ों को धूल चटा दी। तर्क यह भी दिया गया कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत के पीछे वहां आप जैसे किसी तीसरे विकल्प का न होना है।

चार राज्यों में चुनाव के नतीजे बाकी कुछ कहें, एक बात तो साफ है कि यहां कांग्रेस विरोधी लहर तो थी। राजस्थान और मध्य प्रदेश के आंकड़े मोदी लहर या नमो लहर की तस्दीक भी करते हैं। दिल्ली में भी जिन लोगों ने आप को विधानसभा के लिए वोट दिया है, लोकसभा में वो मोदी के पक्ष में मतदान करेंगे (ओपिनियन पोल इस आंकड़े को कुल वोटर का आधा, यानी पचास फीसद और आप का खुद का सर्वे एक तिहाई  कह गया है)

दिल्ली के त्रिकोणीय संघर्ष में कांग्रेस के विधायको की संख्या एक इनोवा कार में बैठकर विधानसभा तक जाने तक सीमित रह गई है (थोड़ी कोशिश से इनोवा में आठ लोग बैठ सकते हैं) वैसे बताते चलें कि आपातकाल के ऐऩ बाद हुए चुनाव में भी कांग्रेस को दिल्ली में 10 सीटें मिल गई थीं। तो हालात कांग्रेस के लिए सन सतहत्तर से भी बुरे हैं।

राजस्थान में पिछले तेरह चुनावो में कांग्रेस की औसत सीट संख्या 92 रही है। कांग्रेस अब तक के सबसे कम, यानी आपातकाल के बाद हासिल सीट संख्या से भी आधी रहकर 21 पर सिमट गई। बीजेपी का सबसे बुरा प्रदर्शन राज्य में 1980 में रहा था, जब वह 32 सीटें ही जीत पाई थी।

क्या राजस्थान में बीजेपी को इतनी बड़ी संख्या में इसलिए वोट पड़े क्योंकि वहां विकल्प के रूप में आप नहीं था?
उधर, मध्य प्रदेश में 2008 के अपने प्रदर्शन को और बेहतर करते हुए, बीजेपी ने 22 ज्यादा सीटें हासिल की हैं। हालांकि दिग्विजय सिंह साल 2003 में वहां सिर्फ 38 सीटें हासिल करके कांग्रेस को निम्नतम स्तर तक ले जा चुके हैं, लेकिन 58 सीटें भी बहुत नहीं होती।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 39 सीटें मिली है। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में (संयुक्त मध्य प्रदेश के आंकड़ो के साथ) कांग्रेस को 36 सीटें मिली थीं।

दिल्ली में बीजेपी के सौ में छह वोटरों ने आप के लिए वोट किया है, लेकिन कांग्रेस के 36 फीसद वोटर आप की तरफ चले गए।

कल के पोस्ट में कुछ रैलियों और उसके असर का जायज़ा लेंगे कि आखिर, कांग्रेस रागा (राहुल गांधी) और भाजपाई नमो-नमो में किसका असर वोटरों पर ज्यादा पड़ता है, बांहे चढ़ाना ज्यादा असरदार है, ये केसरिया रंग।