देश में आजकल एक तस्वीर को लेकर बहुत हाहाकार मचा। तस्वीरें थीं बिहार के वैशाली में चारतल्ला इमारत तक चढ़ गए लोगों की, जो अपने नौनिहालों को दसवीं की परीक्षा पास कराने को लेकर उतारू थे।
इस तस्वीर ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत ख्याति बटोरी। असली मज़ा तो यह, कि दयालु पुलिसवाले उनके पीठ पीछे हो रही घटना को नज़रअंदाज कर रहे थे। बिहार की पुलिस चोरी-चकारी के मामलों में बहुत दयालु है।
टीवी और सोशल मीडिया पर जितनी मुमकिन हो सकती थी, उतनी चिंता जताई गई कि बिहार में शिक्षा का स्तर बिलकुल गिर गया है। बाद में, शायद डेढ़-दो हजार बच्चे और अभिभावक गिरफ्तार करके जेल भेजे गए। साबित हो गया अपराध तो दो हजार रूपये का जुर्माना या छह महीने की जेल या दोनों हो सकता है।
कुछ लोग बिहार को डिफेंड भी कर रहे हैं। यह कहते हुए कि यह बिहार के बच्चों की नहीं वहां की व्यवस्था की कमी है। नकलचियों में आम मान्यता है कि समाजवादी टाइप दलों के शासन में नक़ल को छूट मिलती है। राजनाथ सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे तो नक़लविरोधी कानून के वजह से उनको मशहूरियत मिली थी, बाद में मुलायम ने छात्रों में फैले असंतोष का फायदा उठाया था।
बिहार की इस तस्वीर के ऐन बाद एक तस्वीर झांसी से आई, जहां कुछ छात्र नेता एक प्रोफेसर को महज इसलिए थपड़ा रहे थे क्योंकि उस नाकाबिलेबर्दाश्त प्राध्यापक ने उनको नक़ल के मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया था।
एकतरफ नीतीश बिहार की मेधा को बतौर ब्रांड पेश करना चाहते हैं, दूसरी तरफ ऐसी तस्वीरें! हा दैव! सोशल मीडिया में वैशाली की इस वाइरल हुई तस्वीर ने तकरीबन यह स्थापित कर दिया कि समूचे बिहार के बच्चे नक़ल करके ही पास होते हैं। इसने उन तमाम लोगों को भी एहसासेकमतरी से भर दिया है जिन्होंने हाल-हाल से ही बिहार के नाम पर सीना चौड़ा करके दिल्ली-मुंबई में घूमना शुरू किया था।
याद कीजिए बिहार-यूपी के बच्चे जब रेलवे और बैंकिंग की प्रतियोगिता परीक्षाओं में तमाम जगहों पर जाते थे, तो मुंबई जैसी जगहों पर उनकी मुखालफत की जाती थी। तब ऐसा लगता था कि क्षेत्रीय क्षत्रपों को बिहारियों की मेधा से घबराहट होती है। लेकिन, गौरव के उन क्षणों का क्षरण हो गया। मात्र एक तस्वीर से।
बिहार में नक़ल की इस स्वर्णिम विरासत कैसे तैयार हुई? शायद इसमें से एक वजह है, आम बिहारियों का अंग्रेजी में थोड़ा कमजोर होना। इसकी जड़े पुरानी हैं, लेकिन जब लालू अपने चरम पर थे, उनने दसवीं की परीक्षा में से अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर अपने हिसाब से गरीब-गुरबों का दिल ही जीत लिया था। उसके बाद से तो आम बच्चों खासकर सरकारी स्कूल में पढ़ रहे बच्चों का अंग्रेजी पढना ही छूट गया।
इधर, तमाम विवादों के बाद लालू प्रसाद ने बयान दिया कि उनके जमाने में उन्होंने किताब खोलकर नक़ल करने की छूट दे दी थी। बकौल लालू, किताब खोलकर भी चोरी वही कर पाएगा जिसने किताबें पढ़ी होंगी। तर्क बहुत अच्छे हैं, लेकिन इससे बिहार की मेधा का जो कचरा भारत और विदेशो में हो गया है उसकी भरपाई कौन करेगा?
एक बात और, बिहार में प्राथमिक शिक्षकों से मुर्गी, सूअर, मवेशी के साथ जनगणना करवाई जाती है, उनसे मिड डे मील बनवाया जाता है, राज्य सरकार का कोई भी काम हो, उस काम में शिक्षक ही जोते जाते हैं। फिर उन शिक्षकों का अपना घरेलू जेनुइन काम भी है, मसलन धान की खेती, कटाई, दौनी, और लायक हुए तो प्राइवेट में ट्यूशन देना। नीतीश ने ऐरो-गैरों को शिक्षामित्र बनाकर शिक्षा का जो हाल किया है, उसके बाद परीक्षा में पास होने के लिए बच्चे चोरी नहीं करेंगे तो क्या करेंगे?
आधुनिक कबीर ने एक सूक्ति कही है,
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, साक्षर भया न कोय
तीन आखर के नकल से, हर कोई ग्रेजुएट होय।