बंद किवाड़
लगा है सांकल
मार प्यार की थापें
आसमान को बंद कहां
कर पाओगे तुम पट के भीतर
गगन मुक्त है
पवन मुक्त है
मुक्त हमेशा मोर व तीतर
आओ अंतरमन में झांके
मार प्यार की थापें
बरगद अब भी बुला रहा है
घाट प्रतीक्षा में है
गंगा जल को बांध बनाकर
बांध न पाया कोई
चाहे कितने बंद किवाड़
मन नारंगी की फांकें
मार प्यार की थापें
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