याद रखिए आज 26 मई है। यह दिन नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की ताजपोश का दिन है। उम्मीदों से भरी एक सरकार बनी थी और इस सरकार को हर उस आदमी ने वोट दिया था, जो कांग्रेस गठजोड़ की सरकार से ऊब चुका था।
क्या यह वक्त पीछे झांककर देखने का है? बिलकुल। क्योंकि पहले दो सार किसी भी सरकार के लिए वह वक्त होता है जब वह कड़े फैसले लेकर आती है, आ सकती है। नरेन्द्र मोदी ने इस वक्त को भारत की छवि बेहतर करने में बिताया है। यह भी एक तरह का निवेश है।
पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिए नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहली यात्रा सबसे नजदीकी भूटान के साथ की थी, जिसको पहले की सरकारों ने शायद ही इतनी अहमियत कभी दी हो। मैं भी उस वक्त भूटान गया था और वहां की जनता ने जो गर्मजोशी दिखाई थी, उसका नज़ारा मैंने खुद देखा है।
भूटान हमारी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए एक प्रॉडक्शन हाउस की तरह हो गया है। आज की तारीख में अगर चीन के भ्रामक आंकड़ों को छोड़ दें तो भारत की ग्रोथ रेट पिछले साल के 7.2 फीसद की तुलना में इस साल 7.65 फीसद है। यानी अर्थव्यवस्था के तौर पर पूरी दुनिया भारत को यूं ही चमकीली जगह (ब्राइट स्पॉट) नहीं कह रही है। भारत में निवेश आज उच्चतम स्तर पर है जो सिर्फ इस वित्त वर्ष में करीब-करीब 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
सरकार बनने के साथ ही मोदी ने कई ऐसे अभियान चलाए जिनका असर शायद कभी मनरेगा या किसानों के कर्ज माफी की तरह लोकलुभावन नहीं होगा और शायद कभी उन्हें कभी वोटबटोरू अभियानों में भी नहीं गिना जाएगा। मिसाल के तौर पर, बेटी बचाओ अभियान से आपको क्या लगता है कि जनता मोदी के पक्ष में वोट देगी? या फिर स्वच्छता अभियान से?
यह बात और है कि स्वच्छ भारत अभियान को स्वयंसेवा के मोड से निकाल कर सांस्थानिक रूप देने की जरूरत है, लेकिन ऐसे कुछ अभियानों के ज़रिए मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अपनी छवि एक सुधारक और एक अग्रसोची नेता के रूप में की है।
नरेन्द्र मोदी की बेटी बचाओ अभियान को मैं जरूर श्रेय देना चाहूंगा कि जिस हरियाणा में बेटियों को पैदा होने से पहले ही मारने में महारत थी, जहां बाल लिंगानुपात 834 था वहां दिसंबर 2015 में यह संख्या 903 हो गई है। हरियाणा में 12 जिले ऐसे हैं जहां लिंगानुपात 900 से अधिक है और उनमें से सिरसा में तो यह 999 है। आंकड़े शायद अविश्वसनीय लग रहे हैं लेकिन यह मनोहर लाल खट्टर सरकार का दावा है। फिर भी इस बात से इनकार नही है कि बेटी बचाओ अभियान के बाद बेटियों के प्रति समाज में एक बराबरी का भाव आना शुरू हो गया है।
मोदी विज्ञान भवन से अगर आईएएस प्रशिक्षुओं से बात करते हैं तो उनसे भविष्य के बारे में पूछते हैं—क्या ऐसा नहीं हो सकता कि .... या अगर वह किसानों के बारे में कहीं बात करते है कि वहां कहते हैं कि क्या किसानों के लिए किसी अच्छी बीमा योजना नहीं बनाई जा सकती...? और फिर आनन-फानन में योजना बनती है।
यकीनन, प्रधानमंत्री किसान बीमा योजना और प्रधानमंत्री सिंचाई योजना गांवों की तस्वीर बदलने में कामयाब हो सकते हैं। मैं तो मुद्रा योजना की भी तारीफ करना चाहूंगा जिसमें देश के कस्बों और गांवों से उद्यमी खड़े करने की सोच छिपी है। यह गुजरात से आया हुआ कोई नेता सोच सकता था, जहां कारोबार लोगों को घुट्टी में पिलाई जाती है।
छोटे और मंझोले उद्योग अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। सड़को के मामले में बहुत अच्छा काम किया जा रहा है। गांवो तक बिजली पहुंचाने के मामले में 18000 गांवो के लिए 1000 दिनों का लक्ष्य तय करके मोदी ने अपने नौकरशाहों को टारगेट देना शुरू किया है।
हालांकि सरकारी विज्ञापनों में जहां देश की तस्वीर सुनहरी दिखाई जाती है, वह तो मैं नहीं कहूंगा, लेकिन यूपीए-2 से तुलना की जाए तो मोदी सरकार का दो साल का कामकाज उम्दा लगता है। खासकर, दो साल के दौरान वित्तीय भ्रष्टाचार का कोई आरोप मोदी सरकार की टीम के किसी भी सदस्य पर नहीं लगा। असल में, खुद मोदी जब आगे बढ़कर लगाम को हाथ में लिए हुए हैं तो उनकी टीम को काम करना ही होता है।
मोदी ने दो साल पूरे किए हैं और उनका निर्णय वाला निवेश अधिकतर ऐसे मामलों में हुए हैं जिनके नतीजे आने में देर लगेगी। लेकिन कारोबार को आसान बनाकर नरेन्द्र मोदी ने एक बेहतर कल की थोड़ी धीमी लेकिन सधी हुई शुरूआत दी है। नतीजे आने में देर लगेगी, और उसके लिए हम सब उंगलियां क्रॉस करके बैठे हैं।
क्या यह वक्त पीछे झांककर देखने का है? बिलकुल। क्योंकि पहले दो सार किसी भी सरकार के लिए वह वक्त होता है जब वह कड़े फैसले लेकर आती है, आ सकती है। नरेन्द्र मोदी ने इस वक्त को भारत की छवि बेहतर करने में बिताया है। यह भी एक तरह का निवेश है।
पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिए नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहली यात्रा सबसे नजदीकी भूटान के साथ की थी, जिसको पहले की सरकारों ने शायद ही इतनी अहमियत कभी दी हो। मैं भी उस वक्त भूटान गया था और वहां की जनता ने जो गर्मजोशी दिखाई थी, उसका नज़ारा मैंने खुद देखा है।
भूटान हमारी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए एक प्रॉडक्शन हाउस की तरह हो गया है। आज की तारीख में अगर चीन के भ्रामक आंकड़ों को छोड़ दें तो भारत की ग्रोथ रेट पिछले साल के 7.2 फीसद की तुलना में इस साल 7.65 फीसद है। यानी अर्थव्यवस्था के तौर पर पूरी दुनिया भारत को यूं ही चमकीली जगह (ब्राइट स्पॉट) नहीं कह रही है। भारत में निवेश आज उच्चतम स्तर पर है जो सिर्फ इस वित्त वर्ष में करीब-करीब 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
सरकार बनने के साथ ही मोदी ने कई ऐसे अभियान चलाए जिनका असर शायद कभी मनरेगा या किसानों के कर्ज माफी की तरह लोकलुभावन नहीं होगा और शायद कभी उन्हें कभी वोटबटोरू अभियानों में भी नहीं गिना जाएगा। मिसाल के तौर पर, बेटी बचाओ अभियान से आपको क्या लगता है कि जनता मोदी के पक्ष में वोट देगी? या फिर स्वच्छता अभियान से?
यह बात और है कि स्वच्छ भारत अभियान को स्वयंसेवा के मोड से निकाल कर सांस्थानिक रूप देने की जरूरत है, लेकिन ऐसे कुछ अभियानों के ज़रिए मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अपनी छवि एक सुधारक और एक अग्रसोची नेता के रूप में की है।
नरेन्द्र मोदी की बेटी बचाओ अभियान को मैं जरूर श्रेय देना चाहूंगा कि जिस हरियाणा में बेटियों को पैदा होने से पहले ही मारने में महारत थी, जहां बाल लिंगानुपात 834 था वहां दिसंबर 2015 में यह संख्या 903 हो गई है। हरियाणा में 12 जिले ऐसे हैं जहां लिंगानुपात 900 से अधिक है और उनमें से सिरसा में तो यह 999 है। आंकड़े शायद अविश्वसनीय लग रहे हैं लेकिन यह मनोहर लाल खट्टर सरकार का दावा है। फिर भी इस बात से इनकार नही है कि बेटी बचाओ अभियान के बाद बेटियों के प्रति समाज में एक बराबरी का भाव आना शुरू हो गया है।
मोदी विज्ञान भवन से अगर आईएएस प्रशिक्षुओं से बात करते हैं तो उनसे भविष्य के बारे में पूछते हैं—क्या ऐसा नहीं हो सकता कि .... या अगर वह किसानों के बारे में कहीं बात करते है कि वहां कहते हैं कि क्या किसानों के लिए किसी अच्छी बीमा योजना नहीं बनाई जा सकती...? और फिर आनन-फानन में योजना बनती है।
यकीनन, प्रधानमंत्री किसान बीमा योजना और प्रधानमंत्री सिंचाई योजना गांवों की तस्वीर बदलने में कामयाब हो सकते हैं। मैं तो मुद्रा योजना की भी तारीफ करना चाहूंगा जिसमें देश के कस्बों और गांवों से उद्यमी खड़े करने की सोच छिपी है। यह गुजरात से आया हुआ कोई नेता सोच सकता था, जहां कारोबार लोगों को घुट्टी में पिलाई जाती है।
छोटे और मंझोले उद्योग अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। सड़को के मामले में बहुत अच्छा काम किया जा रहा है। गांवो तक बिजली पहुंचाने के मामले में 18000 गांवो के लिए 1000 दिनों का लक्ष्य तय करके मोदी ने अपने नौकरशाहों को टारगेट देना शुरू किया है।
हालांकि सरकारी विज्ञापनों में जहां देश की तस्वीर सुनहरी दिखाई जाती है, वह तो मैं नहीं कहूंगा, लेकिन यूपीए-2 से तुलना की जाए तो मोदी सरकार का दो साल का कामकाज उम्दा लगता है। खासकर, दो साल के दौरान वित्तीय भ्रष्टाचार का कोई आरोप मोदी सरकार की टीम के किसी भी सदस्य पर नहीं लगा। असल में, खुद मोदी जब आगे बढ़कर लगाम को हाथ में लिए हुए हैं तो उनकी टीम को काम करना ही होता है।
मोदी ने दो साल पूरे किए हैं और उनका निर्णय वाला निवेश अधिकतर ऐसे मामलों में हुए हैं जिनके नतीजे आने में देर लगेगी। लेकिन कारोबार को आसान बनाकर नरेन्द्र मोदी ने एक बेहतर कल की थोड़ी धीमी लेकिन सधी हुई शुरूआत दी है। नतीजे आने में देर लगेगी, और उसके लिए हम सब उंगलियां क्रॉस करके बैठे हैं।
मंजीत ठाकुर
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ReplyDeleteBehtareen ... aamin
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