केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी है जिससे केंद्र सरकार के एक करोड़ कर्मचारियों और पेंशनरों को फ़ायदा होगा। आयोग ने वेतन, भत्तों और पेंशन में कुल 23.55 फीसद बढ़ोतरी की सिफारिश की थी। इन सिफारिशों के लागू होने से सरकार पर 1.02 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
इन सिफारिशों के साथ ही अब ये सुनिश्चित हुआ है कि सरकारी सेक्टर में सबसे कम तनख्वाह 18 हज़ार रूपए होगी जबकि क्लास वन श्रेणी में न्यूनतम तनख्वाह 58 हज़ार के करीब होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट किया है, "केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनर को बधाई, वेतन और भत्तों में ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई है।'' उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में और जानकारी देते हुए कहा कि बहुत समय से कारपोरेट जगत के साथ सरकारी वेतनों की बराबरी की बात चल रही थी। हमने कोशिश की है कि ये बराबरी हो जाए।
सातवें वेतन आयोग ने पिछले साल नवंबर में अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी थीं. आयोग ने जूनियर लेवल के कर्मचारियों के मूल वेतन में 14.27 फ़ीसद बढ़ोतरी की सिफारिश की थी।
छठे वेतन आयोग ने इस स्तर के कर्मचारियों के लिए 20 फ़ीसद बढ़ोतरी की सिफारिश की थी। इसे लागू करते समय सरकार ने 2008 में बढ़ाकर दो गुना कर दिया था।
यह तो खबर थी, लेकिन अब इसके असर का अध्ययन करना भी जरूरी है। तो क्या सच में देश के सरकारी कर्मचारियों को इतने अधिक वेतन की जरूरत है? और अगर है, तो क्या सरकारी कर्मचारी क्या सचमुच कॉरपोरेट स्तर की उत्पादकता के लायक हैं?
वैसे, वेतन आयोग की रिपोर्ट का असर राज्यों में सरकारों के अधीन काम करने वालों सभी कर्मचारियों पर पड़ेगा। हर राज्य पर इस आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का दबाव होगा। जानकारों का कहना है कि करीब तीन करोड़ लोग इस आयोग की रिपोर्ट से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।
माना जा रहा है कि बढ़े वेतन से लोगों को हाथों में पैसे की ताकत बढ़ेगी और इससे ऑटोमोबाइल क्षेत्र में तेजी आएगी। साथ ही, उपभोक्ता सामानों की खरीदारी भी बढ़ेगी और इससे बाजार कुछ उछलेगा। यही वजह है कि इस खबर के साथ ही शेयर बाज़ार भी उछले, और ऑटो और होम एप्लाइएंस बनाने वाली कंपनियों के शेयर ऊपर चढ़ गए।
लेकिन यकीन मानिए इससे महंगाई दर बढ़ने की पूरी संभावना है। जिस तरह से आयोग की सिफारिश के बाद कर्मचारियों का आवासीय भत्ता को बढ़ाने की बात कही गई है उससे बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में किराए में बढोत्तरी होना तय है।
कुछ अर्थशास्त्रियों की राय में इस वेतन आयोग लागू होने का असर सेवा क्षेत्र में भी आएगा। लोग बाहर खाने और घूमने पर कुछ खर्च करेंगे। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि स्कूलों की फीस भी बढ़ जाएगी, यानी शिक्षा महंगी होगी।
लेकिन, इसी के साथ गांवों में जो खर्च कम हुआ है हाल फिलहाल के दिनों में, उस पर क्या असर होगा, यह बात साफ नहीं है। हालिया रिपोर्ट बताते हैं, कि सूखे की वजह से गांवों के लोगों ने उपभोक्ता सामानों पर खर्च को सीमित कर दिया है। उत्तर प्रदेश के शामली इलाके में गन्ना किसानों का करोड़ो का बकाया है और इसलिए इस इलाके के बाजारों में मुर्दनी छाई है।
लेकिन सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद गांव की अर्थव्यवस्था में क्या और कैसे जान आएगी, इस पर राय स्पष्ट नहीं हो पाई है। खासकर किसानों की आमदनी को दोगुना करने के सरकार के संकल्प को कैसे पूरा किया जाएगा, वेतन आय़ोग की सिफारिशों के लागू होने से उस पर अमल कैसे होगा, यह सवाल भी संदेह के घेरे में है।
जो भी हो, यह तय है कि महंगाई बढ़ेगी और हमारी-आपकी जेब पर हर महीने बच्चों की शिक्षा के लिए अदा की जाने वाली फीस बढ़ेगी। सेवा कर के पहले ही 15 फीसद हो जाने से महंगाई दर हमारे लिए सुरसा बनी बैठी है।
लेकिन, वैश्विक मंदी के बीच अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए यह उपाय कई उपायों में से एक है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए अंधेरा कम नहीं होगा।
मंजीत ठाकुर
इन सिफारिशों के साथ ही अब ये सुनिश्चित हुआ है कि सरकारी सेक्टर में सबसे कम तनख्वाह 18 हज़ार रूपए होगी जबकि क्लास वन श्रेणी में न्यूनतम तनख्वाह 58 हज़ार के करीब होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट किया है, "केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनर को बधाई, वेतन और भत्तों में ऐतिहासिक बढ़ोतरी हुई है।'' उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में और जानकारी देते हुए कहा कि बहुत समय से कारपोरेट जगत के साथ सरकारी वेतनों की बराबरी की बात चल रही थी। हमने कोशिश की है कि ये बराबरी हो जाए।
सातवें वेतन आयोग ने पिछले साल नवंबर में अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी थीं. आयोग ने जूनियर लेवल के कर्मचारियों के मूल वेतन में 14.27 फ़ीसद बढ़ोतरी की सिफारिश की थी।
छठे वेतन आयोग ने इस स्तर के कर्मचारियों के लिए 20 फ़ीसद बढ़ोतरी की सिफारिश की थी। इसे लागू करते समय सरकार ने 2008 में बढ़ाकर दो गुना कर दिया था।
यह तो खबर थी, लेकिन अब इसके असर का अध्ययन करना भी जरूरी है। तो क्या सच में देश के सरकारी कर्मचारियों को इतने अधिक वेतन की जरूरत है? और अगर है, तो क्या सरकारी कर्मचारी क्या सचमुच कॉरपोरेट स्तर की उत्पादकता के लायक हैं?
वैसे, वेतन आयोग की रिपोर्ट का असर राज्यों में सरकारों के अधीन काम करने वालों सभी कर्मचारियों पर पड़ेगा। हर राज्य पर इस आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का दबाव होगा। जानकारों का कहना है कि करीब तीन करोड़ लोग इस आयोग की रिपोर्ट से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे।
माना जा रहा है कि बढ़े वेतन से लोगों को हाथों में पैसे की ताकत बढ़ेगी और इससे ऑटोमोबाइल क्षेत्र में तेजी आएगी। साथ ही, उपभोक्ता सामानों की खरीदारी भी बढ़ेगी और इससे बाजार कुछ उछलेगा। यही वजह है कि इस खबर के साथ ही शेयर बाज़ार भी उछले, और ऑटो और होम एप्लाइएंस बनाने वाली कंपनियों के शेयर ऊपर चढ़ गए।
लेकिन यकीन मानिए इससे महंगाई दर बढ़ने की पूरी संभावना है। जिस तरह से आयोग की सिफारिश के बाद कर्मचारियों का आवासीय भत्ता को बढ़ाने की बात कही गई है उससे बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक में किराए में बढोत्तरी होना तय है।
कुछ अर्थशास्त्रियों की राय में इस वेतन आयोग लागू होने का असर सेवा क्षेत्र में भी आएगा। लोग बाहर खाने और घूमने पर कुछ खर्च करेंगे। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि स्कूलों की फीस भी बढ़ जाएगी, यानी शिक्षा महंगी होगी।
लेकिन, इसी के साथ गांवों में जो खर्च कम हुआ है हाल फिलहाल के दिनों में, उस पर क्या असर होगा, यह बात साफ नहीं है। हालिया रिपोर्ट बताते हैं, कि सूखे की वजह से गांवों के लोगों ने उपभोक्ता सामानों पर खर्च को सीमित कर दिया है। उत्तर प्रदेश के शामली इलाके में गन्ना किसानों का करोड़ो का बकाया है और इसलिए इस इलाके के बाजारों में मुर्दनी छाई है।
लेकिन सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद गांव की अर्थव्यवस्था में क्या और कैसे जान आएगी, इस पर राय स्पष्ट नहीं हो पाई है। खासकर किसानों की आमदनी को दोगुना करने के सरकार के संकल्प को कैसे पूरा किया जाएगा, वेतन आय़ोग की सिफारिशों के लागू होने से उस पर अमल कैसे होगा, यह सवाल भी संदेह के घेरे में है।
जो भी हो, यह तय है कि महंगाई बढ़ेगी और हमारी-आपकी जेब पर हर महीने बच्चों की शिक्षा के लिए अदा की जाने वाली फीस बढ़ेगी। सेवा कर के पहले ही 15 फीसद हो जाने से महंगाई दर हमारे लिए सुरसा बनी बैठी है।
लेकिन, वैश्विक मंदी के बीच अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए यह उपाय कई उपायों में से एक है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए अंधेरा कम नहीं होगा।
मंजीत ठाकुर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2016) को "धरती पर हरियाली छाई" (चर्चा अंक-2405) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'