शिकायत करना हम देशवासियों का शगल है। लेकिन मैं कोई शिकायत करने नहीं जा रहा। वाकिया तब का है, जब मैं उड़ीसा के एक दौर पर जा रहा था। हिलती-डुलती गाड़ी के एसी के दूसरे दर्ज़े में बैठा था। कोशिश कर रहा था कि मैं अपने लैपटॉप पर कोई फ़िल्म ही देख डालूं। सामने की सीट पर एक बुजुर्गवार बैठे थे। साथ में उनका घरेलू कामगार था, किसी उड़िया जनजाति का लड़का था। बच्चा ही था। बुजुर्गवार की पत्नी साथ में थीं।
बुजुर्ग दंपत्ति के कपड़ों से लगता था, काफी साधारण घरों के रहे होंगे। खादी का मोटा कुर्ता, धोती कभी सफेद रही होगी। गले में खादी का मोटा गमछा। रंग ताम्रवर्णी। बाल श्वेत हो चले। भौंहे तक सफ़ेद। बीवी के हाथों में कांच की चूड़ियां। बैंगनी रंग की साधारण सूती साड़ी। दोनों के पांव में हवाई चप्पलें। नौकर के पैरों में जो हवाई चप्पल है उस पर फेसबुक लिखा है।
मैं भी गपोड़ हूं और शायद सामने बैठे बुजुर्गवार भी। ट्रेन अभी स्टेशन से बाहर निकल कर आईटीओ भी न पार कर पाई होगी कि हम दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई थी। और तब तक होती रही, जब तक हम भद्रक न पहुंच गए। पत्नी सारे रास्ते चुप बैठी रही। एक गंवई पत्नी की तरह।
कोच अटेंडेंट आता है। मुझसे बात करते वक्त उसके अंदर एक वित्तीय आदर है। उस आदर में शाम को मेरे उतरने के वक्त मिलने वाली टिप की उम्मीद का बोझ है। वही अटेंडेंट आकर उनसे ऐसे बात करता है मानो बहुत दिनों से जानता हो। पूछता है, बहुत दिनों बाद आए।
मैं पूछता हूं, आप दिल्ली बार-बार आते हैं क्या। हां। इसके बाद बातचीत महंगाई, नक्सल, जनजातियों की समस्या, वेदांता, कोरापुट, नक्सल, राहुल गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह तक पहुंच जाती है। बुजुर्गवार को महीन जानकारियां हैं।
मेरे बारे में बहुत पूछताछ करते हैं। कहां के हो, कौन है घर में...लेकिन इस पूछताछ में एक बुजुर्गाना लाड़ और आह्लाद है। अब मैं पूछता हूं आप..? तब बताते हैं कि उनका नाम अनादिचरण दास है। पांच बार सांसद रह चुके हैं। आखिरी बार सन् 91’ लोकसभा जीते थे। पहली बार 71’ में जीते थे। अपने बारे में बस इतना ही बताते हैं।
मैं सादगी देखकर दंग हूं। अब तो हाल यह है कि पहली बार विधायक बनकर लोग खदानें खरीद रहे हैँ। निर्दलीय मुख्यमंत्री ने सुना दक्षिण अफ्रीका में सोने की खान खरीद डाली थी। मेरे ही गृह राज्य का सीएम रहा था वह। और यहां, पांच बार सांसद चुना जा चुका शख्स हवाई चप्पल पहन रहा है! एसी के दूसरे दर्जे में सफर कर रहा है! चेहरे पर दबंगई का कोई भाव नहीं!
मैं सोचता हूं आजादी का जश्न पूरे भारत में मनाया गया होगा। लेकिन, पटवारी से लेकर विभिन्न मंत्री भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। वह बुझे मन से कहते हैं, किसी ने कहा है राज्यसभा की सीट सौ करोड़ में बिकती है। हामी भरने के सिवा कोई चारा नहीं है मेरे पास।
रात में गूगल किया था मैंने, अनादि चरण दास को खोजा गूगल पर। मिल गए। उड़ीसा के जाजपुर सीट से सन् 1971, 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ी, विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल गए, वहीं से दो बार 1989 और 1991 में चुनाव जीता। 1996 में फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जनता दल की आंचल दास से चार हजार वोटों से हार गए। फिर उम्र के तकाजे के साथ राजनीति छोड़ दी। जाजपुर-कोरापुट इलाके में अनादिचरण दास एक मजबूत उम्मीदवार माने जाते थे। लेकिन, उनके पास आज दौलत के नाम पर कुछ नहीं।
कह रहे थे कि हर महीने वंचितों, गरीबों, जनजातियों के आर्थिक उत्थान के लिए हर महीने योजना आयोग (यात्रा के वक्त योजना आयोग था, नीति आयोग नहीं बना था) और सोनियां गांधी को चिट्ठी लिखते थे। पता नहीं पढ़ी भी जाती थी या नहीं। पेट्रोल के दाम बढ़ाने के पक्ष में हैं, कहते है इसका पैसा एससी-एसटी बच्चों की शिक्षा के लिए करना चाहिए।
गुरूदत्त की फिल्म प्यासा का एक गीत याद आ रहा है, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं....ईमानदारी को गूगल पर खोजता हूं। इसे खोजने में तो गूगल भी नाकाम है।
मैं भी गपोड़ हूं और शायद सामने बैठे बुजुर्गवार भी। ट्रेन अभी स्टेशन से बाहर निकल कर आईटीओ भी न पार कर पाई होगी कि हम दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई थी। और तब तक होती रही, जब तक हम भद्रक न पहुंच गए। पत्नी सारे रास्ते चुप बैठी रही। एक गंवई पत्नी की तरह।
कोच अटेंडेंट आता है। मुझसे बात करते वक्त उसके अंदर एक वित्तीय आदर है। उस आदर में शाम को मेरे उतरने के वक्त मिलने वाली टिप की उम्मीद का बोझ है। वही अटेंडेंट आकर उनसे ऐसे बात करता है मानो बहुत दिनों से जानता हो। पूछता है, बहुत दिनों बाद आए।
मैं पूछता हूं, आप दिल्ली बार-बार आते हैं क्या। हां। इसके बाद बातचीत महंगाई, नक्सल, जनजातियों की समस्या, वेदांता, कोरापुट, नक्सल, राहुल गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह तक पहुंच जाती है। बुजुर्गवार को महीन जानकारियां हैं।
मेरे बारे में बहुत पूछताछ करते हैं। कहां के हो, कौन है घर में...लेकिन इस पूछताछ में एक बुजुर्गाना लाड़ और आह्लाद है। अब मैं पूछता हूं आप..? तब बताते हैं कि उनका नाम अनादिचरण दास है। पांच बार सांसद रह चुके हैं। आखिरी बार सन् 91’ लोकसभा जीते थे। पहली बार 71’ में जीते थे। अपने बारे में बस इतना ही बताते हैं।
मैं सादगी देखकर दंग हूं। अब तो हाल यह है कि पहली बार विधायक बनकर लोग खदानें खरीद रहे हैँ। निर्दलीय मुख्यमंत्री ने सुना दक्षिण अफ्रीका में सोने की खान खरीद डाली थी। मेरे ही गृह राज्य का सीएम रहा था वह। और यहां, पांच बार सांसद चुना जा चुका शख्स हवाई चप्पल पहन रहा है! एसी के दूसरे दर्जे में सफर कर रहा है! चेहरे पर दबंगई का कोई भाव नहीं!
मैं सोचता हूं आजादी का जश्न पूरे भारत में मनाया गया होगा। लेकिन, पटवारी से लेकर विभिन्न मंत्री भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। वह बुझे मन से कहते हैं, किसी ने कहा है राज्यसभा की सीट सौ करोड़ में बिकती है। हामी भरने के सिवा कोई चारा नहीं है मेरे पास।
रात में गूगल किया था मैंने, अनादि चरण दास को खोजा गूगल पर। मिल गए। उड़ीसा के जाजपुर सीट से सन् 1971, 1980 और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ी, विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल गए, वहीं से दो बार 1989 और 1991 में चुनाव जीता। 1996 में फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जनता दल की आंचल दास से चार हजार वोटों से हार गए। फिर उम्र के तकाजे के साथ राजनीति छोड़ दी। जाजपुर-कोरापुट इलाके में अनादिचरण दास एक मजबूत उम्मीदवार माने जाते थे। लेकिन, उनके पास आज दौलत के नाम पर कुछ नहीं।
कह रहे थे कि हर महीने वंचितों, गरीबों, जनजातियों के आर्थिक उत्थान के लिए हर महीने योजना आयोग (यात्रा के वक्त योजना आयोग था, नीति आयोग नहीं बना था) और सोनियां गांधी को चिट्ठी लिखते थे। पता नहीं पढ़ी भी जाती थी या नहीं। पेट्रोल के दाम बढ़ाने के पक्ष में हैं, कहते है इसका पैसा एससी-एसटी बच्चों की शिक्षा के लिए करना चाहिए।
गुरूदत्त की फिल्म प्यासा का एक गीत याद आ रहा है, जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं....ईमानदारी को गूगल पर खोजता हूं। इसे खोजने में तो गूगल भी नाकाम है।
ऐसे सादादिल लोग...तिस पर राजनीति में बिरले ही मिलते हैं। काश ऐसे कुछ और भी नेता सांसद हो जाते तो देश का कायाकल्प हो जाता।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया साझा किया आपने।