Thursday, November 10, 2016

मंगल ठाकुर की मैथिली कविताः दो

आबहु आऊ अहां अशेष,
बड़ सहलहुं अछि आब कलेष,
मेटल ठोप, बहल दृग अंजन
नहिं आओल अछि किछु संदेश।

बीतल दिन बीतल ऋतु चारि
अंकुर निकसल धरती फारि
पुलकित सब कुंठित हम छी
बाटि तकैत गेल फाटि कुहेस।

स्नेहसिक्त लोचन स्वामी के
आलिंगन दुनू प्राणी के
नयन कलश में भरल अश्रु-जल
पुलकित मन अर्पण प्राणेश।

मूल मैथिली कविताः मंगल ठाकुर

हिन्दी अनुवादः मंजीत ठाकुर

अब आ जाओ मेरे अशेष
सहा न जाए विरह क्लेश
मिटी बिन्दी और बह गए अंजन
मिला न कुछ तेरा संदेश।

बीते दिन, बीते ऋतु चार
हरियाई धरती भी अपार
पुलकित सब, मुझे विरह-विषाद
बाट देखती रहा न शेष।

स्नेहसिक्त लोचन वाले तुम
आलिंगन लोगे कब, सुन तुम
नयन कलश में भरे अश्रु-जल
पुलकित मन अर्पण प्राणेश।








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