ठहाकों के सरदार नवजोत सिंह सिद्धू अब कांग्रेस का दामन थामेंगे। उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर सिद्धू और हॉकी खिलाड़ी और सिद्धू के साथी परगट सिंह पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं।
इसका मतलब यह हुआ कि नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और वह सीट अमृतसर-पूर्व की सीट भी हो सकती है, जहां से निवर्तमान विधायक उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर रही हैं।
बीजेपी से दूरी बनाने की जो भई वजहें खुद सिद्धू गिनाएं और या फिर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से पींगे बढ़ाने के पीछे उनकी मंशा क्या है यह साफ करें, लेकिन यह जानना बेहद दिलचस्प होगा कि आखिर पंजाब की राजनीति में सिद्धू को क्या ताकत हासिल है? आखिर, पंजाब में कांग्रेस के खेवनहार कैप्टन अमरिन्दर सिंह क्यों पहले सिद्धू के कांग्रेस में आने से नाखुश थे और अब क्यों उन्होंने सिद्धू के आने की खबरों का स्वागत किया है। (गुरूवार को सिद्धू की पत्नी कांग्रेस में जाने की खबरों की पुष्टि कर चुकी हैं)
नवजोत सिंह सिद्धू को अरुण जेटली ही राजनीति में लेकर आए थे। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर के सांसद नवजोत सिंह सिद्धू की जगह बीजेपी ने अरुण जेटली को वहां से उम्मीदवार बनाया। गुस्साए सिद्धू ने जेटली के लिए चुनाव प्रचार नहीं किया। हालांकि, इसी साल अप्रैल में बीजेपी ने सिद्धू को राज्यसभा की सदस्यता दी, लेकिन सिद्धू बजाय राज्यसभा जाने के एक कॉमिडी शो में सिंहासन पर बैठकर ठहाके लगाते और शेरो-शायरी करते देखे गए।
बहरहाल, ऐसा लग गया था कि यह क्रिकेटर विधानसभा चुनाव से पहले कुछ तो करेगा और पंजाब की राजनीति में उबाल आया तो सत्ताविरोधी लहर की और आम आदमी पार्टी की संभावनाओं के मद्देनज़र सिद्धू का नाम भी आप से जोड़ा जाने लगा। हालांकि, न तो आप ने और न कभी सिद्धू ने इसके बारे में किसी अंतिम फ़ैसले पर टिप्पणी की।
फिर सिद्धू ने 18 जुलाई को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनकी पत्नी और अमृतसर से विधायक नवजोत कौर सिद्धू ने भी इस्तीफ़ा दे दिया। यानी तस्वीर साफ होने लगी थी।
आम आदमी पार्टी में शामिल होने को लेकर बात यहां तक गई कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ उनकी कई बैठकें भी हुईं, लेकिन बात किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई।
कहा जाता है कि सिद्धू आप से अपने लिए, पत्नी और अपने कुछ लोगों के लिए विधानसभा चुनाव की टिकट मांग रहे थे. लेकिन आप का संविधान एक ही परिवार के दो लोगों को टिकट देने से रोकता है।
इसके बाद उन्होंने पूर्व हॉकी खिलाड़ी परगट सिंह और लुधियान के दो विधायक भाइयों के साथ 'आवाज़-ए-पंजाब' के नाम से एक राजनीतिक मंच बनाया।
उनका कहना था कि उनका मंच चुनाव में उन लोगों का साथ देगा जो पंजाब के लिए कुछ अच्छा करना चाह रहे हैं. लेकिन उन्होंने उन लोगों का नाम नहीं बताया जिनका वो साथ देना चाहते हैं. इस तरह उन्होंने अपने विकल्पों को खुला रखा।
बाद में 'आवाज़-ए-पंजाब' में सिद्धू के साथ आए लुधियाना के दोनों विधायकों ने आप में शामिल होने का फ़ैसला किया।
सवाल यह है कि आखिर नवजोत सिंह सिद्धू में ऐसा क्या ख़ास है कि आप हो या कांग्रेस उनके आने से खुश है और अपना हाथ ऊपर मान रही है। असल में, इसकी एकमात्र वजह है सिद्धू की पृष्ठभूमि क्रिकेटर की होना और यही वजह है कि सिद्धू भी अपने मशहूर ‘खड़काओ’ की तर्ज पर मंजीरा छाप होकर निकल लिए हैं। अब यह उनका अति-आत्मविश्वास ही है कि उन्हें लगता है कि वह बेहद कामयाब या करिश्माई शख्सियत हैं और पंजाब की राजनीति के लिए अपरिहार्य हैं।
वैसे, सिद्धू ने गोटी बड़े करीने से खेली है और इस बार चुनाव में उनने पंजाबी बनाम बाहरी का दांव चल दिया है। ठीक बिहार विधानसभा चुनाव की तरह और अगर यह दांव सही पड़ गया तो मूलतः हरियाणा के केजरीवाल को नुकसान हो जाएगा।
बहरहाल, सिद्धू को जब बीजेपी में खास तवज्जो नहीं मिली तो आप के ज़रिए उन्होंने सीएम की कुरसी पर निशाना साधने की कोशिश की और अब कम से कम इतना ज़रूर चाहते हैं कि वह किंग नहीं तो कम से कम किंगमेकर की भूमिका में ज़रूर रहें।
पंजाब की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि जिस समय नवजोत सिंह सिद्धू की आम आदमी पार्टी से बातचीत चल रही थी, उस समय अगर वो आप में शामिल हो गए होते तो शायद उन्हें बड़ी सफलता मिलती।
लेकिन जिस तरीके से पिछले तीन-चार महीने में सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर अलग-अलग पार्टियों से बातचीत में मशगूल दिखाई दीं, तो लोगों में यही संदेश गया कि वे लोग सियासी मोल-भाव में व्यस्त हैं। जाहिर है, इससे उनकी चमक कम हुई है।
वैसे भी, सिद्धू के लिए इससे भयभीत होने की ज़रूरत नहीं। पंजाब की पार्ट-टाइम पॉलिटिक्स तो किसी भी स्टूडियो से हो सकती है।
मंजीत ठाकुर
इसका मतलब यह हुआ कि नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और वह सीट अमृतसर-पूर्व की सीट भी हो सकती है, जहां से निवर्तमान विधायक उनकी पत्नी डॉ. नवजोत कौर रही हैं।
बीजेपी से दूरी बनाने की जो भई वजहें खुद सिद्धू गिनाएं और या फिर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से पींगे बढ़ाने के पीछे उनकी मंशा क्या है यह साफ करें, लेकिन यह जानना बेहद दिलचस्प होगा कि आखिर पंजाब की राजनीति में सिद्धू को क्या ताकत हासिल है? आखिर, पंजाब में कांग्रेस के खेवनहार कैप्टन अमरिन्दर सिंह क्यों पहले सिद्धू के कांग्रेस में आने से नाखुश थे और अब क्यों उन्होंने सिद्धू के आने की खबरों का स्वागत किया है। (गुरूवार को सिद्धू की पत्नी कांग्रेस में जाने की खबरों की पुष्टि कर चुकी हैं)
नवजोत सिंह सिद्धू को अरुण जेटली ही राजनीति में लेकर आए थे। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर के सांसद नवजोत सिंह सिद्धू की जगह बीजेपी ने अरुण जेटली को वहां से उम्मीदवार बनाया। गुस्साए सिद्धू ने जेटली के लिए चुनाव प्रचार नहीं किया। हालांकि, इसी साल अप्रैल में बीजेपी ने सिद्धू को राज्यसभा की सदस्यता दी, लेकिन सिद्धू बजाय राज्यसभा जाने के एक कॉमिडी शो में सिंहासन पर बैठकर ठहाके लगाते और शेरो-शायरी करते देखे गए।
बहरहाल, ऐसा लग गया था कि यह क्रिकेटर विधानसभा चुनाव से पहले कुछ तो करेगा और पंजाब की राजनीति में उबाल आया तो सत्ताविरोधी लहर की और आम आदमी पार्टी की संभावनाओं के मद्देनज़र सिद्धू का नाम भी आप से जोड़ा जाने लगा। हालांकि, न तो आप ने और न कभी सिद्धू ने इसके बारे में किसी अंतिम फ़ैसले पर टिप्पणी की।
फिर सिद्धू ने 18 जुलाई को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनकी पत्नी और अमृतसर से विधायक नवजोत कौर सिद्धू ने भी इस्तीफ़ा दे दिया। यानी तस्वीर साफ होने लगी थी।
आम आदमी पार्टी में शामिल होने को लेकर बात यहां तक गई कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ उनकी कई बैठकें भी हुईं, लेकिन बात किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई।
कहा जाता है कि सिद्धू आप से अपने लिए, पत्नी और अपने कुछ लोगों के लिए विधानसभा चुनाव की टिकट मांग रहे थे. लेकिन आप का संविधान एक ही परिवार के दो लोगों को टिकट देने से रोकता है।
इसके बाद उन्होंने पूर्व हॉकी खिलाड़ी परगट सिंह और लुधियान के दो विधायक भाइयों के साथ 'आवाज़-ए-पंजाब' के नाम से एक राजनीतिक मंच बनाया।
उनका कहना था कि उनका मंच चुनाव में उन लोगों का साथ देगा जो पंजाब के लिए कुछ अच्छा करना चाह रहे हैं. लेकिन उन्होंने उन लोगों का नाम नहीं बताया जिनका वो साथ देना चाहते हैं. इस तरह उन्होंने अपने विकल्पों को खुला रखा।
बाद में 'आवाज़-ए-पंजाब' में सिद्धू के साथ आए लुधियाना के दोनों विधायकों ने आप में शामिल होने का फ़ैसला किया।
सवाल यह है कि आखिर नवजोत सिंह सिद्धू में ऐसा क्या ख़ास है कि आप हो या कांग्रेस उनके आने से खुश है और अपना हाथ ऊपर मान रही है। असल में, इसकी एकमात्र वजह है सिद्धू की पृष्ठभूमि क्रिकेटर की होना और यही वजह है कि सिद्धू भी अपने मशहूर ‘खड़काओ’ की तर्ज पर मंजीरा छाप होकर निकल लिए हैं। अब यह उनका अति-आत्मविश्वास ही है कि उन्हें लगता है कि वह बेहद कामयाब या करिश्माई शख्सियत हैं और पंजाब की राजनीति के लिए अपरिहार्य हैं।
वैसे, सिद्धू ने गोटी बड़े करीने से खेली है और इस बार चुनाव में उनने पंजाबी बनाम बाहरी का दांव चल दिया है। ठीक बिहार विधानसभा चुनाव की तरह और अगर यह दांव सही पड़ गया तो मूलतः हरियाणा के केजरीवाल को नुकसान हो जाएगा।
बहरहाल, सिद्धू को जब बीजेपी में खास तवज्जो नहीं मिली तो आप के ज़रिए उन्होंने सीएम की कुरसी पर निशाना साधने की कोशिश की और अब कम से कम इतना ज़रूर चाहते हैं कि वह किंग नहीं तो कम से कम किंगमेकर की भूमिका में ज़रूर रहें।
पंजाब की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि जिस समय नवजोत सिंह सिद्धू की आम आदमी पार्टी से बातचीत चल रही थी, उस समय अगर वो आप में शामिल हो गए होते तो शायद उन्हें बड़ी सफलता मिलती।
लेकिन जिस तरीके से पिछले तीन-चार महीने में सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर अलग-अलग पार्टियों से बातचीत में मशगूल दिखाई दीं, तो लोगों में यही संदेश गया कि वे लोग सियासी मोल-भाव में व्यस्त हैं। जाहिर है, इससे उनकी चमक कम हुई है।
वैसे भी, सिद्धू के लिए इससे भयभीत होने की ज़रूरत नहीं। पंजाब की पार्ट-टाइम पॉलिटिक्स तो किसी भी स्टूडियो से हो सकती है।
मंजीत ठाकुर