धराशायी होना अगर एक शब्द है, उसका चुनावी अर्थ यूपी चुनाव के नतीजों में यूपी के लड़के रहे। यूपी के लड़के यानी अखिलेश और राहुल गांधी। दोनों की मिली-जुली ताकत। यह ताकत फिसड्डी साबित हुई क्योंकि इन लड़कों को लोहा लेना था यूपी के लाडले से।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साबित किया इस दफा यूपी में मोदी लहर नहीं थी, 2014 की लहर अब ताकतवर तूफान बन चुका है। कांग्रेस-सपा गठजोड़ की क्रिएटिव टीम ने अखिलेश-राहुल गठजोड़ को लेकर नारा बनायाः यूपी को ये साथ पसंद है। नतीजों के साथ नारा भी धूल-धूसरित हो गया, यह कहने की बात ही नहीं। यूपी के इन लड़को का ज़ोर इस बात पर था कि प्रधानमंत्री मोदी बाहरी हैं, और सपा-कांग्रेस गठबंधन दो कुनबों का नहीं, दो युवाओं का है।
इस गठजोड़ का पूरा फोकस यूथ वोटर पर था। 18 लाख लैपटॉप बांट चुके अखिलेश ने युवाओं को स्मार्टफोन देने का वादा किया। अखिलेश ने कहा भी, जितने युवाओं ने स्मार्टफोन के लिए रजिस्ट्रेशन कराए हैं, अगर वो सब भी वोट देंगे तो यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। मगर नतीजे बताते हैं, यूपी को ही नहीं, यूथ को भी ये साथ पसंद नहीं।
दूसरी तरफ, राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी को यूपी के लिए बाहरी बताते वक्त भूल गए कि उनकी चुनाव फिल्मी डायलॉग से नहीं जीते जाते। कानून भारत के किसी भी नागरिक को देश में कहीं से भी चुनाव लड़ने की छूट देता है। आखिर इंदिरा गांधी ने चिकमंगलूर से चुनाव लड़ा था और इसके दो दशक बाद, 1990 में सोनिया गांधी ने भी बेल्लारी से चुनाव लड़ा था। ऐसे में मोदी को बाहरी बताने का प्रियंका और राहुल का दावा खोखला नज़र आया।
राहुल और अखिलेश ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, चर्चा का केन्द्र बनने के लिए चाचा के साथ फ्रेंडली ड्रामाई फाइट भी किया, लखनऊ, इलाहाबाद, गोरखपु, आगरा कानपुर और वाराणसी में, बकौल अखिलेश ही, अच्छे लड़के राहुल के साथ रोड शो किए लेकिन इन सभी इलाकों में चाहे वह इलाहाबाद हो या आगरा, गोरखपुर हो या वाराणसी, रोड शो के बावजूद गठबंधन सड़क पर आ गया है।
राहुल गांधी ने रायबरेली का दो बार दौरा किया। अमेठी में अपना पूरा दिन प्रचार में बिताते हुए तीन रैलियां की। इस इलाके को जागीर समझते हुए और प्रियंका महज एक बार गईँ, सोनिया गांधी तो गई भी नहीं। खामियाजाः अमेठी में भाजपा जीती तो रायबरेली में कांग्रेस किसी तरह इज्जत बचा पाई।
इधर, प्रचार करते वक्त प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें यूपी ने गोद लिया है, तो यूपी ने भी साबित किया कि मोदी सिर्फ गोद लिए हुए ही नहीं बल्कि यूपी के लाडले भी है। प्रधानमंत्री ने ताबड़तोड़ 23 रैलियों से बीजेपी के प्रचार को आक्रामक धार दी, जो जनता ने भी उतने ही प्यार से जवाब दिया, बीजेपी के खाते में करिश्माई 300 सीटों का आंक़ड़ा है।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साबित किया इस दफा यूपी में मोदी लहर नहीं थी, 2014 की लहर अब ताकतवर तूफान बन चुका है। कांग्रेस-सपा गठजोड़ की क्रिएटिव टीम ने अखिलेश-राहुल गठजोड़ को लेकर नारा बनायाः यूपी को ये साथ पसंद है। नतीजों के साथ नारा भी धूल-धूसरित हो गया, यह कहने की बात ही नहीं। यूपी के इन लड़को का ज़ोर इस बात पर था कि प्रधानमंत्री मोदी बाहरी हैं, और सपा-कांग्रेस गठबंधन दो कुनबों का नहीं, दो युवाओं का है।
इस गठजोड़ का पूरा फोकस यूथ वोटर पर था। 18 लाख लैपटॉप बांट चुके अखिलेश ने युवाओं को स्मार्टफोन देने का वादा किया। अखिलेश ने कहा भी, जितने युवाओं ने स्मार्टफोन के लिए रजिस्ट्रेशन कराए हैं, अगर वो सब भी वोट देंगे तो यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी। मगर नतीजे बताते हैं, यूपी को ही नहीं, यूथ को भी ये साथ पसंद नहीं।
दूसरी तरफ, राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी को यूपी के लिए बाहरी बताते वक्त भूल गए कि उनकी चुनाव फिल्मी डायलॉग से नहीं जीते जाते। कानून भारत के किसी भी नागरिक को देश में कहीं से भी चुनाव लड़ने की छूट देता है। आखिर इंदिरा गांधी ने चिकमंगलूर से चुनाव लड़ा था और इसके दो दशक बाद, 1990 में सोनिया गांधी ने भी बेल्लारी से चुनाव लड़ा था। ऐसे में मोदी को बाहरी बताने का प्रियंका और राहुल का दावा खोखला नज़र आया।
राहुल और अखिलेश ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, चर्चा का केन्द्र बनने के लिए चाचा के साथ फ्रेंडली ड्रामाई फाइट भी किया, लखनऊ, इलाहाबाद, गोरखपु, आगरा कानपुर और वाराणसी में, बकौल अखिलेश ही, अच्छे लड़के राहुल के साथ रोड शो किए लेकिन इन सभी इलाकों में चाहे वह इलाहाबाद हो या आगरा, गोरखपुर हो या वाराणसी, रोड शो के बावजूद गठबंधन सड़क पर आ गया है।
राहुल गांधी ने रायबरेली का दो बार दौरा किया। अमेठी में अपना पूरा दिन प्रचार में बिताते हुए तीन रैलियां की। इस इलाके को जागीर समझते हुए और प्रियंका महज एक बार गईँ, सोनिया गांधी तो गई भी नहीं। खामियाजाः अमेठी में भाजपा जीती तो रायबरेली में कांग्रेस किसी तरह इज्जत बचा पाई।
इधर, प्रचार करते वक्त प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें यूपी ने गोद लिया है, तो यूपी ने भी साबित किया कि मोदी सिर्फ गोद लिए हुए ही नहीं बल्कि यूपी के लाडले भी है। प्रधानमंत्री ने ताबड़तोड़ 23 रैलियों से बीजेपी के प्रचार को आक्रामक धार दी, जो जनता ने भी उतने ही प्यार से जवाब दिया, बीजेपी के खाते में करिश्माई 300 सीटों का आंक़ड़ा है।
मोदी लहर का जादू यह रहा कि उनके धुआंधार प्रचार ने 2014 की लहर को सुनामी और अंधड़ में बदल दिया। जिसमें बसपा तो खैर तिनके की तरह उड़ गई। कांग्रेस और सपा का सूपड़ा भी साफ हो गया. ऐसे में चुनाव के ऐन पहले जहां सपा-कांग्रेस गठबंधन को ओपिनियन पोल में बढ़त हासिल थी वहीं मोदी के चुनाव प्रचार शुरू करने के बाद माहौल बदलता गया. अंतिम दौर में तो पूर्वांचल की धुरी वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद आक्रामक प्रचार कर पूरी तरह से माहौल बीजेपी के पक्ष में कर दिया.
पूरा यूपी केसरिया रंग से सराबोर है। मोदी की अपील पर केसरिया होली के लिए जनता खुलकर मैदान में आ चुकी है। 2019 का सेमीफाइनल यूपी की जनता ने पीएम मोदी की झोली में डाल दिया है। ब्रांड मोदी भारतीय राजनीति का विश्वसनीय नाम साबित हुआ है। ये जीत इसलिए ही बड़ी नहीं है कि इसने 1991 में जीती गयी सीट के रिकॉर्ड तोड़े दिए। ये जीत इसलिए ऐतिहासिक है इसने इसने लोकसभा चुनाव में मिले वोट शेयर को भी मैच कर लिया है।
चुनाव के बाद जो प्रचंड मोदी लहर दिख रही है, वो पीएम मोदी की हर सभा में भी दिख रहा था लेकिन विरोधी मानने को तैयार नहीं थे। समाजवादी-और कांग्रेस पार्टी से तकरीबन 12 फीसदी वोट बीजेपी ने छीन लिए। बीएसपी से भी करीब 5 फीसदी वोट बीजेपी ने छीना है। पर, सबसे खास बात ये है कि पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी ने अपना वोट लगभग दुगुना कर लिया है।
मोदी की लहर में विरोधी पार्टियां तिनके की तरह उड़ गईं हैं। सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को करारा झटका लगा है। अखिलेश यादव और राहुल गांधी के तमाम दावों को भी जनता ने नकार दिया। इसी के साथ ये साफ हो गया कि जनता को ये साथ पसंद नहीं है। वहीं बीएसपी ने अपने जन्म के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़े राजनीतिक पंडितों के आकलन को धता बताते हुए 80 में से 73 सीटें जीती थीं। अगर इसे विधानसभा सीटों में परिणत करते तो 43 प्रतिशत वोट के साथ सीटों की संख्या 337 होती। इस चुनाव में भी वोट प्रतिशत 43 प्रतिशत बरकरार रहा। यानी मोदी की लोकप्रियता अब भी कायम है।
यूपी चुनाव की जीत मोदी-शाह की जोड़ी की जीत मानी जा रही है। मोदी की लीडरशिप और अमित शाह के माइक्रो मैनेजमेंट ने इतनी बड़ी जीत दिलाई है। जाहिर है ये जीत दोनों के लिए मनोबल और ज्यादा बढ़ाने वाली साबित होगी। इन चुनावों में भी प्रचार का केंद्र बिंदु खुद पीएम मोदी ही रहे हैं। जाहिर है कि उसका क्रेडिट उन्हें ही मिलेगा।
मुख्तसर यही कि लड़के अभी तजुर्बे के लिहाज से कच्चे ही हैं, लाडले से भिड़ने के लिए सिर्फ हाथ मिलाना ही जरूरी नहीं। कारनामों की जगह काम करके भी दिखाना होता है।
मंजीत ठाकुर
पूरा यूपी केसरिया रंग से सराबोर है। मोदी की अपील पर केसरिया होली के लिए जनता खुलकर मैदान में आ चुकी है। 2019 का सेमीफाइनल यूपी की जनता ने पीएम मोदी की झोली में डाल दिया है। ब्रांड मोदी भारतीय राजनीति का विश्वसनीय नाम साबित हुआ है। ये जीत इसलिए ही बड़ी नहीं है कि इसने 1991 में जीती गयी सीट के रिकॉर्ड तोड़े दिए। ये जीत इसलिए ऐतिहासिक है इसने इसने लोकसभा चुनाव में मिले वोट शेयर को भी मैच कर लिया है।
चुनाव के बाद जो प्रचंड मोदी लहर दिख रही है, वो पीएम मोदी की हर सभा में भी दिख रहा था लेकिन विरोधी मानने को तैयार नहीं थे। समाजवादी-और कांग्रेस पार्टी से तकरीबन 12 फीसदी वोट बीजेपी ने छीन लिए। बीएसपी से भी करीब 5 फीसदी वोट बीजेपी ने छीना है। पर, सबसे खास बात ये है कि पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी ने अपना वोट लगभग दुगुना कर लिया है।
मोदी की लहर में विरोधी पार्टियां तिनके की तरह उड़ गईं हैं। सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को करारा झटका लगा है। अखिलेश यादव और राहुल गांधी के तमाम दावों को भी जनता ने नकार दिया। इसी के साथ ये साफ हो गया कि जनता को ये साथ पसंद नहीं है। वहीं बीएसपी ने अपने जन्म के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया है।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़े राजनीतिक पंडितों के आकलन को धता बताते हुए 80 में से 73 सीटें जीती थीं। अगर इसे विधानसभा सीटों में परिणत करते तो 43 प्रतिशत वोट के साथ सीटों की संख्या 337 होती। इस चुनाव में भी वोट प्रतिशत 43 प्रतिशत बरकरार रहा। यानी मोदी की लोकप्रियता अब भी कायम है।
यूपी चुनाव की जीत मोदी-शाह की जोड़ी की जीत मानी जा रही है। मोदी की लीडरशिप और अमित शाह के माइक्रो मैनेजमेंट ने इतनी बड़ी जीत दिलाई है। जाहिर है ये जीत दोनों के लिए मनोबल और ज्यादा बढ़ाने वाली साबित होगी। इन चुनावों में भी प्रचार का केंद्र बिंदु खुद पीएम मोदी ही रहे हैं। जाहिर है कि उसका क्रेडिट उन्हें ही मिलेगा।
मुख्तसर यही कि लड़के अभी तजुर्बे के लिहाज से कच्चे ही हैं, लाडले से भिड़ने के लिए सिर्फ हाथ मिलाना ही जरूरी नहीं। कारनामों की जगह काम करके भी दिखाना होता है।
मंजीत ठाकुर
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बहादुर महिला, दंत चिकित्सक और कहानी में ट्विस्ट “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबेचारे राहुल ने तो खाट बिछा बिछा कर अपनी पैंठ जमाने की कोशिश की थी वह तो पाण्डव बन कर पांच गांव मांग रहे थे पर मोदी तो दुर्योधन बन गए व खाट खड़ी क्या की उसे तहस नहस कर दिया साथ आये अखिलेश व बुआ जी किभी खाट खड़ी कर डाली , अब न खाट रहेगी न कोई बिछा कर जमने की सोचेगा
ReplyDeleteवाह मोदी जी