आपका ध्यान ‘आप’ में ‘विश्वास’ के कायम रहने और अक्षय कुमार को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिलने जैसे राष्ट्रीय महत्व के समाचारों से जरा हटे तो आपके लिए एक खबर यह भी है कि, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पिछले हफ्ते तमिलनाडु सरकार को एक नोटिस दिया है। यह नोटिस पिछले एक महीने में किसानों की आत्महत्याओं की खबरों के बारे में है। खराब मॉनसून ने सूबे के ज्यादातर जिलों पर असर डाला है और इससे फसल खराब हुई है। लगातार दूसरे साल पड़े इस सूखे ने कई किसानों को आत्महत्या पर मजबूर किया है।
मानवाधिकार आयोग के इस स्वतः संज्ञान के बाद भेजे नोटिस में जिक्र है कि पिछले एक महीने में 106 किसानों ने तमिलनाडु में आत्महत्या की है। वैसे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी सूखा उतना ही भयावह संकट लेकर आया है। वैसे पनीरसेल्वम बनाम शशिकला बनाम पनालीसामी के सियासी चक्रव्यूह में फंसे तमिलनाडु में सरकार इस मुद्दे पर चुप है, और चारों तरफ से राज्य को सूखाग्रस्त घोषित किए जाने की मांग के जोर पकड़ने के बाद एक उच्चस्तरीय समिति गठित कर दी गई है।
सरकार के कान पर जूं तब रेंगी, जब मद्रास हाई कोर्ट ने चार हफ्ते के भीतर इस मसले पर हलफनामा दायर करने को कहा। अदालत ने सरकार से आत्महत्याएं रोकने के लिए कदम उठाने को भी कहा है, हालांकि यह कदम क्या होंगे यह कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया है। अपनी तमिलनाडु यात्रा के दौरान, और कुछ रिपोर्ट्स देखने के बाद, मुझे लग रहा है कि सूखे की यह समस्या तिरूवरूर, नागापट्टनम्, विलुपुरम्, पुदुकोट्टाई, अरियालुर, कुडालोग और तंजावुर जिलों में अधिक भयावह है।
तमिलनाडु में उत्तर-पूर्वी मॉनसून से बारिश होती है, यानी अक्तूबर के महीने में, और यह बारिश ही सूबे की जीवनरेखा मानी जाती है। इस बारिश का मौसमी औसत करीब 437 मिलीमीटर है, लेकिन भारतीय मौसम विभाग के चेन्नई केन्द्र के आंकड़े बताते हैं कि पिछले मौसम, यानी 2016 के अक्तूबर के बाद से बारिश सिर्फ 166 मिलीमीटर हुई है।
उधर, कर्नाटक से सटे कावेरी डेल्टा इलाके में किसानो की गत बुरी है। यह इलाका अनाज का भंडार माना जाता है, लेकिन कुरवई (गरमी) की फसल पहले ही मारी जा चुकी है क्योंकि उस वक्त कर्नाटक ने कावेरी का पानी छोड़ने से मना कर दिया था, और शीतकालीन मॉनसून के नाकाम हो जाने के बाद संबा की फसल भी बरबाद हो गई है।
उधर, कर्नाटक में, दो बड़े जलाशय कृष्णराजा बांध और कबीनी, सूखने की कगार पर हैं। इनमें 4.4 टीएमसी फीट पानी ही बचा है। जानकारों के मुताबिक, 5.59 टीएमसी फीट के बाद पानी नहीं निकाला जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर जलीय जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ जाता है। कर्नाटक के बाकी के 12 बांधों में सिर्फ 20 फीसद पानी बचा है, और एक तरह से देखा जाए तो कायदे से पूरी गरमी का डेढ़ महीना काटना बाकी है। बंगलूरु में हर तीसरे दिन पानी की आपूर्ति बाधित हो रही है, तकरीबन हर रिहायशी कॉम्प्लेक्स पानी के टैंकरों से पानी खरीद रहा है। पानी के एक टैंकर की कीमत तकरीबन 700 से 750 रूपये तक है। पानी के यह टैंकर निजी बोर-वेल से भरे जा रहे हैं, लेकिन यह भी कब तक साथ देंगे यह जानना ज्यादा मुश्किल भरा सवाल नहीं है।
इसी के साथ आंध्र और तेलंगाना में कुछ सियासतदानों ने अनूठे, अजूबे और मूर्खतापूर्ण हरकते भी कीं, जो उनकी समझ में पानी बचाने की कवायद थी। इनमे से एक थी, लाखों रूपये खर्च करके एक बांध को थर्मोकोल से ढंकने की, ताकि पानी भाप बनकर न उड़ जाए। बांध के पानी को थर्मोकोल से ढंका भी गया, लेकिन अगली सुबह जब हवा जरा जोर की चली सारे थर्मोकोल बांध के एक किनारे आ लगे।
एक अन्य उपाय के तहत, बंगलुरू में वॉटर सप्लाई और सीवरेज बोर्ड ने और अधिक बोल-वेल ड्रिलिंग के आदेश भी दिए हैं। अब इसके लिए कितनी गहराई तक ड्रिलिंग करनी होगी, और कितना खोदना सही होगा, यह तो विशेषज्ञ ही बता पाएंगे। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बोर-वेल खोदने से आगे क्या असर पारिस्थितिकी पर पड़ेगा, वह अच्छा नहीं होगा, यह तो हम अभी बता देते हैं। वैसे अगर आप ऐसी खबरों में दिलचस्पी रखते हों, तो पिछली बारिश में बंगलुरू में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई थी, और आज की तारीख में सूखे की है। सिर्फ बंगलुरू ही नहीं, हरे-भरे मैसूर और मांड्या में भी स्थिति कुछ ठीक नहीं है। कर्नाटक सरकार ने हालांकि अपने 176 में से 160 को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है लेकिन क्या सिर्फ इतना करना ही काफी होगा? किसानों ने खरीफ और रबी दोनों फसलें नहीं बोई हैं। कर्नाटक, आंध्र और तमिलनाडु के सरहदी इलाकों में यह स्थिति पिछले 42 सालों में सबसे भयावह है।
किसानों की आत्महत्या के मामले में कर्नाटक की स्थिति भी बेहद बुरी रही है और अनुमान है पिछले चार साल में करीब 1000 किसानों ने आत्महत्या की है।
इतना समझिए कि पिछले साल सामान्य मॉनसून होने (सिर्फ पूर्वी तमिलनाडु को छोड़कर जहां बरसात अक्तूबर में होती है) पर भी तमिलनाडु, आंध्र, केरल और कर्नाटक में पानी की यह कमी, सिर्फ बरसात की कमी नहीं है। केरल में इस बार का सूखा पिछले सौ सालों का सबसे भयानक सूखा है।
सवाल है कि किया क्या जाए। सूखे से निबटने का उपाय ट्रेन से पानी पहुंचाना या ज्यादा बोर-वेल खोदना नहीं है और थर्मोकोल से बांध ढंकना तो बहुत ही बेहूदा कदम है। इसके लिए एक ही सूत्र हैः पानी का कम इस्तेमाल, पानी का कई बार इस्तेमाल, और पानी को रीसाइकिल करना।
इसका उपाय है जलछाजन यानी वॉटरशेड मैनेजमेंट भी है और ग्रीन वॉटर का इस्तेमाल भी। पर उसके बारे में बाद में बात, अभी देखिए कि इस गहनतम सूखे पर मुख्यधारा के किसी चैनल या उत्तर भारत के किसी शहरी अखबार ने कुछ लिखा है क्या? नहीं न। वही तो, सूखा और किसान आत्महत्या खबर थोड़े न है, अलबत्ता एमसीडी चुनाव है।
मानवाधिकार आयोग के इस स्वतः संज्ञान के बाद भेजे नोटिस में जिक्र है कि पिछले एक महीने में 106 किसानों ने तमिलनाडु में आत्महत्या की है। वैसे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी सूखा उतना ही भयावह संकट लेकर आया है। वैसे पनीरसेल्वम बनाम शशिकला बनाम पनालीसामी के सियासी चक्रव्यूह में फंसे तमिलनाडु में सरकार इस मुद्दे पर चुप है, और चारों तरफ से राज्य को सूखाग्रस्त घोषित किए जाने की मांग के जोर पकड़ने के बाद एक उच्चस्तरीय समिति गठित कर दी गई है।
सरकार के कान पर जूं तब रेंगी, जब मद्रास हाई कोर्ट ने चार हफ्ते के भीतर इस मसले पर हलफनामा दायर करने को कहा। अदालत ने सरकार से आत्महत्याएं रोकने के लिए कदम उठाने को भी कहा है, हालांकि यह कदम क्या होंगे यह कुछ स्पष्ट नहीं हो पाया है। अपनी तमिलनाडु यात्रा के दौरान, और कुछ रिपोर्ट्स देखने के बाद, मुझे लग रहा है कि सूखे की यह समस्या तिरूवरूर, नागापट्टनम्, विलुपुरम्, पुदुकोट्टाई, अरियालुर, कुडालोग और तंजावुर जिलों में अधिक भयावह है।
तमिलनाडु में उत्तर-पूर्वी मॉनसून से बारिश होती है, यानी अक्तूबर के महीने में, और यह बारिश ही सूबे की जीवनरेखा मानी जाती है। इस बारिश का मौसमी औसत करीब 437 मिलीमीटर है, लेकिन भारतीय मौसम विभाग के चेन्नई केन्द्र के आंकड़े बताते हैं कि पिछले मौसम, यानी 2016 के अक्तूबर के बाद से बारिश सिर्फ 166 मिलीमीटर हुई है।
उधर, कर्नाटक से सटे कावेरी डेल्टा इलाके में किसानो की गत बुरी है। यह इलाका अनाज का भंडार माना जाता है, लेकिन कुरवई (गरमी) की फसल पहले ही मारी जा चुकी है क्योंकि उस वक्त कर्नाटक ने कावेरी का पानी छोड़ने से मना कर दिया था, और शीतकालीन मॉनसून के नाकाम हो जाने के बाद संबा की फसल भी बरबाद हो गई है।
उधर, कर्नाटक में, दो बड़े जलाशय कृष्णराजा बांध और कबीनी, सूखने की कगार पर हैं। इनमें 4.4 टीएमसी फीट पानी ही बचा है। जानकारों के मुताबिक, 5.59 टीएमसी फीट के बाद पानी नहीं निकाला जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर जलीय जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ जाता है। कर्नाटक के बाकी के 12 बांधों में सिर्फ 20 फीसद पानी बचा है, और एक तरह से देखा जाए तो कायदे से पूरी गरमी का डेढ़ महीना काटना बाकी है। बंगलूरु में हर तीसरे दिन पानी की आपूर्ति बाधित हो रही है, तकरीबन हर रिहायशी कॉम्प्लेक्स पानी के टैंकरों से पानी खरीद रहा है। पानी के एक टैंकर की कीमत तकरीबन 700 से 750 रूपये तक है। पानी के यह टैंकर निजी बोर-वेल से भरे जा रहे हैं, लेकिन यह भी कब तक साथ देंगे यह जानना ज्यादा मुश्किल भरा सवाल नहीं है।
इसी के साथ आंध्र और तेलंगाना में कुछ सियासतदानों ने अनूठे, अजूबे और मूर्खतापूर्ण हरकते भी कीं, जो उनकी समझ में पानी बचाने की कवायद थी। इनमे से एक थी, लाखों रूपये खर्च करके एक बांध को थर्मोकोल से ढंकने की, ताकि पानी भाप बनकर न उड़ जाए। बांध के पानी को थर्मोकोल से ढंका भी गया, लेकिन अगली सुबह जब हवा जरा जोर की चली सारे थर्मोकोल बांध के एक किनारे आ लगे।
एक अन्य उपाय के तहत, बंगलुरू में वॉटर सप्लाई और सीवरेज बोर्ड ने और अधिक बोल-वेल ड्रिलिंग के आदेश भी दिए हैं। अब इसके लिए कितनी गहराई तक ड्रिलिंग करनी होगी, और कितना खोदना सही होगा, यह तो विशेषज्ञ ही बता पाएंगे। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बोर-वेल खोदने से आगे क्या असर पारिस्थितिकी पर पड़ेगा, वह अच्छा नहीं होगा, यह तो हम अभी बता देते हैं। वैसे अगर आप ऐसी खबरों में दिलचस्पी रखते हों, तो पिछली बारिश में बंगलुरू में बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई थी, और आज की तारीख में सूखे की है। सिर्फ बंगलुरू ही नहीं, हरे-भरे मैसूर और मांड्या में भी स्थिति कुछ ठीक नहीं है। कर्नाटक सरकार ने हालांकि अपने 176 में से 160 को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है लेकिन क्या सिर्फ इतना करना ही काफी होगा? किसानों ने खरीफ और रबी दोनों फसलें नहीं बोई हैं। कर्नाटक, आंध्र और तमिलनाडु के सरहदी इलाकों में यह स्थिति पिछले 42 सालों में सबसे भयावह है।
किसानों की आत्महत्या के मामले में कर्नाटक की स्थिति भी बेहद बुरी रही है और अनुमान है पिछले चार साल में करीब 1000 किसानों ने आत्महत्या की है।
इतना समझिए कि पिछले साल सामान्य मॉनसून होने (सिर्फ पूर्वी तमिलनाडु को छोड़कर जहां बरसात अक्तूबर में होती है) पर भी तमिलनाडु, आंध्र, केरल और कर्नाटक में पानी की यह कमी, सिर्फ बरसात की कमी नहीं है। केरल में इस बार का सूखा पिछले सौ सालों का सबसे भयानक सूखा है।
सवाल है कि किया क्या जाए। सूखे से निबटने का उपाय ट्रेन से पानी पहुंचाना या ज्यादा बोर-वेल खोदना नहीं है और थर्मोकोल से बांध ढंकना तो बहुत ही बेहूदा कदम है। इसके लिए एक ही सूत्र हैः पानी का कम इस्तेमाल, पानी का कई बार इस्तेमाल, और पानी को रीसाइकिल करना।
इसका उपाय है जलछाजन यानी वॉटरशेड मैनेजमेंट भी है और ग्रीन वॉटर का इस्तेमाल भी। पर उसके बारे में बाद में बात, अभी देखिए कि इस गहनतम सूखे पर मुख्यधारा के किसी चैनल या उत्तर भारत के किसी शहरी अखबार ने कुछ लिखा है क्या? नहीं न। वही तो, सूखा और किसान आत्महत्या खबर थोड़े न है, अलबत्ता एमसीडी चुनाव है।
मंजीत ठाकुर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-05-2017) को
ReplyDelete"आहत मन" (चर्चा अंक-2628)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सही कहा आपने
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