Sunday, January 14, 2018

ये जो देश है मेरा

मित्रों, मेरी किताब 'ये जो देश है मेरा' छपकर आ गई है. यह किताब  पांच लंबी रिपोर्ताज का संकलन है. मेरी यह किताब मेरी लंबी यात्राओं का परिणाम है.इनमें बुंदेलखंड, नियामगिरि, सतभाया, कूनो-पालपुर और जंगल महल जैसे हाशिए के इलाकों की कहानियां हैं.

बुंदेलों की धरती बुंदेलखंड को अपनी प्यास बुझाने लायक पानी हासिल हो पाएगा या दशकों लंबा सूखा हमेशा के लिए आत्महत्याओं और पलायन के अंतहीन सिलसिले में बदल जाएगा? 

मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर के जंगलों के सरहदी इलाके में बसा टिकटोली गांव डेढ़ दशक में दोबारा जमीन से उखड़ेगा या बच जाएगा? उड़ीसा का नियामगिरि पहाड़ अपनी उपासक जनजातियों के बीच ही रहेगा या अल्युमिनियम की चादरों में ढल कर मिसाइलों और बमबार जहाजों के रूप में देशों की जंग की भट्ठी में झोंक दिया जाएगा? 
उड़ीसा का ही सतभाया गांव अपनी जादुई कहानियों के साथ समुद्र की गोद में दफ्न हो जाएगा, या उससे पहले ही उसे बचा लिया जाएगा? मैंने इन्ही सवालों के जवाब खोजने की कोशिश की है. कोशिश की है कि इसे दिलचस्प तरीके से लोककथाओं के सूत्र में पिरोकर आप तक पहुंचाया जाए.

आप इसे पढ़कर फीडबैक देंगे तो मेरा उत्साहवर्धन होगा.

दिल्ली के विश्व पुस्तक मेला में किताब के साथ प्रवीण कुमार झा

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