Friday, March 9, 2018

नीमः सकुचाते फूलों का वह वीतराग झरना

याद आता नीम के नीचे रखे
पिता के पार्थिव शरीर पर
सकुचाते फूलों का वह वीतराग झरना
– जैसे माँ के बालों से झर रहे हों –
नन्हें नन्हें फूल जो आँसू नहीं
सान्त्वना लगते थे.


कविताः कुंवर नारायण
फोटोः मंजीत ठाकुर

फोटोः मंजीत ठाकुर

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-03-2017) को "कम्प्यूटर और इण्टरनेट" (चर्चा अंक-2905) (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्‍लॉग का नाम लाजवाब और टैगलाइन और भी खूबसूरत है मंजीत जी

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    1. शुक्रिया अलकनंदा जी

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