Friday, July 13, 2018

उम्मीदों और आशाओं का नया पाठ है 102 नॉट आउट

आसानी से कहे जाने वाली इस फिल्म के खत्म होने पर आप थोड़े भावुक हो सकते हैं. लेकिन आपके पास तब जिंदगी को महज बिताने नहीं बल्कि जीने के कुछ गुर होते हैं. 
फिल्म 102 नॉट आउट की कहानी नएपन के साथ जिंदगी जीने का फलसफा देती है .फोटो सौजन्यः गूगल


भारतीय खासकर हिंदी फिल्मों की कई जरूरतों में से सबसे अहम हैः एक निहायत खूबसूरत नायिका. चलिए '102 नॉट आउट' में नायिका तो नहीं है. दूसरी प्रमुख शर्त हैः कई सारे नाटकीय दृश्य. 102... में यह भी नहीं है. गाने, हम्म...नहीं ही हैं. डायलॉगबाजीः नहीं है. नाचगानेः नहीं है. सीरियल किसिंगः नहीं है. मारधाड़ नहीं है. पात्र भी तीन ही हैं. 

तो आखिर क्या है 102 नॉट आउट में!

इसमें अमिताभ हैं. और हैं ऋषि कपूर. दोनों का सर्वोत्कृष्ट अभिनय है. शानदार सिनेमैटोग्रफी है, उम्दा संपादन है. कसी हुई पटकथा और नयापन लिए कहानी है.

'102 नॉट आउट' मुख्यधारा हिंदी सिनेमा के परिपक्वता की ओर बढ़ने का संकेत देने वाली कई फिल्मों में से एक है. फिर भी अलहदा है.

जिंदगी जीने का तरीका हमारी फिल्में पुराने समय से बताई जाती रही हैं. जागते रहो में राज कपूर ने बिना ज्यादा संवादों के यह कहा था और उसी फिल्म में मोतीलाल सड़क पर, जिंदगी ख्वाब है, ख्वाब में झूठ क्या और भला सच है क्या..कहते हुए फलसफे बता रहे थे.

याद आऩे वाली फिल्मों में ऐसा ही संदेश आनंद ने दिया. मुख्यधारा में थोड़े सतही ढंग से यही कल हो न हो ने कहा...

'102 नॉट आउट' इसी संदेश को थोड़े अलहदा मिजाज के साथ कहती है. 102 साल के पिता और 75 साल के बेटे की कहानी में फिल्म हर दृश्य में ताजा बनी रहती है. हर दृश्य में एक नयापन और एक नए किस्म का प्रयोग है. क्या आपको यह बात दिलचस्प नहीं लगेगी कि सौ साल से अधिक उम्र का बाप अपने बेटे को वृद्धाश्रम सिर्फ इसलिए भेजना चाहता है क्योंकि वह दुनिया में सबसे ज्यादा जीने वाले इंसान का रिकॉर्ड तोड़ना चाहता है. उसे लगता है कि बुजुर्गवार जैसे बरताव वाला उदासीन-सा उसका बेटा माहौल को खुशनुमा नहीं रहने दे रहा.

बाप द्वारा बेटे को वृद्धाश्रम भेजने का यह नायाब आइडिया हमारे आसपास की जिंदगी के छोटे-छोटे प्रसंगों को अपने साथ बुनती चलती है और फिर आपको गुदगुदाती है. नहीं, आप इसे कॉमिडी फिल्म न समझें. यह फिल्म जीवन का उत्सव है. बहरहाल, पुत्र बने ऋषि कपूर वृद्धाश्रम जाने से बचने के लिए पिता की हर शर्त पूरी करते हैं. और उनके जीवन में जिंदगी का रस फिर से प्रवाहित होने लगता है.

मासूम से संवाद. छोटे-छोटे दृश्य...आपको हर सीन के बाद फिल्म में मजा आने लगता है. यह फिल्म मैंने थियेटर में नहीं देखी. मौका निकल गया. अमेजन प्राइम वीडियो पर मैं ने सोचा इसे दो चार बार में देख लूंगा लेकिन फिल्म ने ऐसा बांधा कि फिर मैं उसके तानेबाने (जो कि बेहद सरल हैं) से बाहर ही नहीं निकल पाया.

सोचिए जरा पिता के उस किरदार के बारे में, जो अपने बेटे के सामने एक पौधे में फूल उगाने के लिए पखवाड़े भर की मोहलत देता है. पहले से नाउम्मीदी से घिरा बेटा फिर भी उस पौधे की सेवा करता है, कि फूल खिलेंगे. शर्त लगाने वाला पिता जानता है पखवाड़े भर में फूल नही आएंगे, पर उम्मीद जिंदा रहे इसके लिए वह फूल लगे हुए पौधे वाले गमले को बिना फूल वाले मूल गमले से बदल देता है. पिता-पुत्र का यह रिश्ता हमें क्या एक मजबूत संदेश नहीं देता?
उम्मीदों और आशाओं का नया पाठ है यह फिल्म.

अमिताभ से बेहतरीन अभिनय की तो उम्मीद थी ही, लेकिन हाल तक पूरे बाजू का स्वेटर पहनकर स्विट्जरलैंड की हसीन वादियों में नायिका के साथ बोल राधा बोल करने वाले ऋषि कपूर का आला दर्जे का अभिनय छूता है. फिल्म का शीर्षक पिता के लिए है, पर किरदार में जो गहराई बेटे में है, वह लेखक की सृजनात्मकता का कमाल है. फिल्म की शुरूआत में आपको कंधे झुकाए ऋषि कपूर दिखते हैं जो आखिरी दृश्यों तक आते-आते आत्मविश्वास से भर जाते हैं.

अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर करीब तीन दशक के बाद एक साथ किसी फिल्म में आए हैं. ‘102 नॉट आउट’ में बच्चन से पंगों के अलावा जिमित त्रिवेदी के साथ उनका लव-हेट रिलेशनशिप भी आपको मजा देगा. अपनी भूमिका में त्रिवेदी भी अच्छा अभिनय करते हैं और सिनेमा के दो दिग्गजों की मौजूदगी में भी अपनी उपस्थिति बनाए रखते हैं.

सबसे बड़ी बात कि फिल्म में सिर्फ तीन किरदार हैं. साथ मुंबई भी है. आप उसे भी एक किरदार की तरह देख सकते हैं. असल में यह फिल्म एक नाटक पर आधारित है, जिसे सौम्य जोशी ने लिखा है. सरल होते हुए भी इस फिल्म के संवाद कमाल के हैं.

आसानी से कहे जाने वाली इस फिल्म के खत्म होने पर आप थोड़े भावुक हो सकते हैं. लेकिन आपके पास तब जिंदगी को महज बिताने नहीं बल्कि जीने के कुछ गुर होते हैं.

102 नॉट आउट आज के दौर की सबसे जरूरी फिल्मों में से एक है.

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