Wednesday, August 15, 2018

मैंने वीएस नायपाल को शब्दों में देखा है

सर विदियाधर सूरजप्रकाश नायपॉल यानी वीएस नायपॉल नहीं रहे. भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त इस उम्दा लेखक का जन्म त्रिनिदाद में में 17 अगस्त 1932 को हुआ था. लेखक वह उम्दा थे उनके विचार अनोखे थे और यह कत्तई जरूरी नहीं था कि आप उनके विचारों से हमेशा इत्तफाक रखें. पर उनकी दो किताबों के अनुवादक के तौर पर मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि सर विदिया की विद्वता उनके लिखने की शैली और एकदम गजब का माहौल सिरज देने की उनकी क्षमता वाकई कमाल थी.

वीएस नायपॉल को भारत में जितना पढ़ा नहीं गया उससे अधिक उनके बारे में अफसाने बने. बमुश्किल लोगों ने उन्हें पढ़ा होगा और बिना पढ़े ही उनके बारे में राय कायम कर ली गई. मैं कह सकता हूं कि उनको लेकर बनी धारणाएं पूर्वाग्रहग्रस्त थीं. खासकर भारत को लेकर उनकी दृष्टि पर सबसे अधिक भृकुटियां टेढ़ी हुई थीं. उनकी निगाहों ने भारत को भले ही बाहर से देखा हो, लेकिन क्या यह सच नहीं कि उनके अवचेतन में भारत गहरे बसा हुआ था?

क्या किसी विषय पर लिखने के लिए वहां बसकर या रहकर लिखना जरूरी है? क्या प्रसव पीड़ा पर कविता लिखने के लिए किसी को खुद बच्चे को जन्म देना होता है?

शायद भारतीय बुद्धिजीवियों ने उनकी किताब ‘इंडिया: ए वुंडेड सिविलाइजेशन’ पर सबसे ज्यादा हैरानी और मुखालफत दर्ज कराई है. इस किताब में आजादी के बाद के भारत की सामाजिक–राजनीतिक परिस्थितियों,आन्दोलनों और नेताओं की बहुत खाल छीलने वाली पर बहुत तथ्यात्मक आलोचना है.

नायपॉल को संभवतया इस्लाम-विरोधी भी माना जाता है. पर उसको लेकर उनकी भी अपनी दलीलें थीं. पर ऐसी ही दलीलें दूसरे लेखकों के पास भी हैं, उनके अपने विचारों के पक्ष में.
द लॉस ऑफ एल दोरादो वेनेजुएला की खाड़ी के आसपास के इलाकों का इतिहास है. 
हम भारतीयों ने जिस इस्लाम के विरोध में खड़े होने वाले सलमान रुश्दी और तसलीमा नसरीन को अपने सर माथे पर बिठाया, उसके बरअक्स हम नायपॉल को लेकर तटस्थ रुख अपनाए रहे.  बहरहाल, मैंने उनकी जिस पहली किताब का अनुवाद किया था, वह थी द लॉस ऑफ एल दोरादोः एक औपनिवेशिक इतिहास. इस किताब में दो जुड़ी हुई कथाएं हैं. एल दोरादो के बेहूदा खोज अभियानों में हुई लंबी प्रतिद्वंद्विताओं के दौरान मैक्सिको के आसपास के इलाकों के मूल निवासियों पर चला दमन चक्र और फिर दो सौ साल बाद, मानव जनित निर्जन वन प्रांतर में नई गुलाम बस्तियों में पैदा किया गया इंसानी आतंक. कैरीबियाई दास बागानों के बारे में कहा जाता है कि वो अमेरिका की बनिस्बत ज्यादा क्रूर हैं. बेहद शानदार शोध के साथ लिखी गई यह किताब अनौपचारिक और नृशंस ब्योरों के साथ हमें गुलाम उपनिवेशों की रोजमर्रा की जिंदगी की हरमुमकिन नजदीकी तक ले जाती है.
नायपॉल के साथ अपना नाम एक ही पन्ने पर देखना मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था


कुलीनता की तमाम उपाधियों के बावजूद यहां कुछ भी शालीन नहीं थाः महज एक अवसरवादी और तकरीबन स्वेच्छाचारी कानून से परे तुनकमिजाज समुदाय था, जिसे हमेशा किसी न किसी गुलाम के खुदकुशी कर लेने या जहर देकर मार दिए जाने का डर बना रहता था. जिसे हमेशा अफ्रीकी जादू-टोने और बगावत का, बदनाम पोर्ट ऑफ स्पेन जेल और रोज-ब-रोज की भयावहता का भी डर था. यह समुदाय हमेशा नेपथ्य में रहा, जो इसके लिए अराजकता से बचने का एकमात्र सुरक्षा कवच था.

त्रिनिदाद और टोबैगो की इस कहानी का, असल में नॉन-फिक्शन का, जिसे नायपाल औपनिवेशिक इतिहास का दर्जा दे चुके थे, अनुवाद करते समय मुझे लगा कि असल में नायपॉल जीनियस हैं. मुझे पता है कि यह छोटी मुंह बड़ी बात होगी. पर शब्द दर शब्द, पन्ना दर पन्ना आगे बढ़ते हुए मैं नतमस्तक होता रहा.



वीएस नायपॉल की दूसरी जिस किताब का मैंने अनुवाद किया था उसका अंग्रेजी नाम थाः द नाइटवॉचमैन्स अकरंस बुक और अन्य हास्य रचनाएं.  असल में यह एक संग्रह है जिसमें दो उपन्यास थे और एक कथा संग्रह था. संग्रह का पहला उपन्यास था एलविरा में चुनाव. यह त्रिनिदाद के अंदरूनी इलाकों में चुनावी प्रचार पर हास्य-विनोद से भरा किस्सा है. जिसमें उम्मीदवारों द्वारा खुल्लमखुल्ला वोट खरीदने की तरकीबों और अलौकिक हथकंडो का जिक्र है.

संग्रह का दूसरा उपन्यास था, मि. स्टोन ऐंड द नाइट्स कंपेनियन जिसका केंद्रीय चरित्र मि. स्टोन एक ऐसा बुढ़ाता हुआ अंग्रेज है जिसकी कुछ आदतें बेहद फूहड़ किस्म की हैं. और अचानक हुए ब्याह से जिसकी जिंदगी में भारी उलट-फेर हो जाता है और पेशे में अप्रत्याशित तरक्की हो जाती है.

द नाइटवॉचमैन्स अकरंस बुक एक संग्रह है जिसमें दो उपन्यास और ग्यारह कहानियां हैं.

कहानी संग्रह टापू पर परचम में ग्यारह कहानियां हैं, जो हमें त्रिनिदाद की एक ऐसी चीनी बेकरी की कहानी सुनाती हैं जिसका अश्वेत मालिक तब तक दिवालिया रहता है जब तक वह चीनी नाम नहीं अपना लेता.

मैं वीएस नायपॉल से कभी मिल नहीं पाया. मेरी हसरत थी कि काश मैं उनसे मिल पाता. पर उनके लिखे कुछेक लाख शब्दों को मैंने हिंदी में फिर से जिया है. मुझे ताउम्र उन से नहीं मिल पाने का मलाल रहेगा और ताउम्र उनके लिखे को फिर से लिखने का अभिमान भी.


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