Monday, February 17, 2020

पुस्तक समीक्षाः बुढ़ापे में जीवन प्रबंधन की उम्दा गाइड

अगले एक दशक में भारत में बुजुर्गों की संख्या आज से कहीं अधिक होने लगेगी. न्यक्लियर परिवारों की वजह से समाज में बुुजर्गों का दखल कम हुआ है ऐसे में बीमारियों और तमाम दुश्वारियों के प्रबंधन सुझाने के लिहाज से एम्स के डॉ. प्रसून चटर्जी की किताब उम्दा गाइड सरीखी है

बुढ़ापे के बारे में कहा गया कि जीवन संध्या में आकर इंसान खुद बच्चा हो जाता है और उसे बच्चों जैसी ही देखभाल की जरूरत होती है. और अमूमन बुजुर्गों को भारतीय समाज में धर्म-कर्म-ईमान की तरफ मोड़ दिया जाता है. ऐसे में, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के गेरियाट्रिक मेडिसिन विभाग (ऐसी दवाइयां जो बुढापे से जुड़ी हों) के डॉक्टर प्रसून चटर्जी ने एक उम्दा किताब लिखी है, जिसका नाम है हेल्थ ऐंड वेल बीइंग इन लेट लाइफः पर्सपैक्टिव्स ऐंड नैरेटिव्स फ्रॉम इंडिया.

सबकी बड़ी बात कि यह किताब ओपन एक्सेस है. किताब पर मूल्य अंकित नहीं है और यही बात इस किताब के प्रकाशन को अमूल्य बनाती है. 
डॉ. प्रसून चटर्जी की किताब का कवर. फोटोः मंजीत ठाकुर


वैसे सचाई यही है कि बढ़ती उम्र को आगे बढ़ते जाने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसे खूबसूरत और स्वस्थ जरूर बनाया जा सकता है. एम्स, दिल्ली के डॉक्टर प्रसून चटर्जी ने अपनी पुस्तक में बताया है कि कैसे आप वृद्धावस्था में प्रसन्न रह सकते हैं. इस किताब में कई कहानियां हैं जो कि प्रेरणा से भरपूर है.

डॉ. चटर्जी की किताब हेल्थ ऐंड वेल बीइंग इन लेटलाइफः पर्सेपेक्टिव्स ऐंड नैरेटिव्स फ्रॉम इंडिया में इस बात का उल्लेख किया है कि कैसे आप अपने जीवन को सक्रियता से भर सकते हैं. इस किताब में ऐसे किस्से हैं जिन्हें पढ़कर आप खुद को उससे जोड़ पाएंगे. इन कहानियों के किरदार ऐसे हैं जो अपनी शारीरिक एवं सामाजिक चुनौतियों के बावजूद अपने जीवन का पूरा आनंद ले रहे हैं. इस किताब में कुल दस अध्याय हैं.

किताब के ये दस अध्यायों में पहला फ्रैलिटी पर है. यानी बढ़ती उम्र के साथ मनोवैज्ञानिक रूप से आ रहे ढलान पर. डॉ. चटर्जी विस्तार से बताते हैं कि इससे निबटा कैसे जाए. इसके साथ ही, भूलने की आदत और यादद्धाश्त का कम होते जाने जैसे बुढ़ापे के सामान्य मर्ज पर एक पूरा अध्याय है.



अगर आपको बुढ़ापे में कब्ज पर बने पीकू जैसी फिल्म की याद है तो एक पूरा अध्याय कब्ज की समस्या पर है. इसके साथ ही, कैंसर और स्ट्रोक जैसे वृद्धावस्था के तमाम पहलुओं पर बात की गई है. लेखक ने कई तरह की भ्रांतियों को भी दूर करने की कोशिश की है जैसे वृद्धावस्था का दूसरा नाम संन्यास नहीं है. साथ ही किताब में यह भी बताया गया है कि बढ़ती उम्र में उन्हें कब और किन चीज़ों का इलाज कराना चाहिए, और कब नहीं.

किताब का आठवां अध्याय यौन स्वास्थ्य पर आधारित है. यह एक ऐसी समस्या है जिसमें पूरे उप-महाद्वीप में बातचीत से बचा जाता है. ऐसे में यह किताब एक जरूरी किताब बन जाती है.

वैसे डॉ. चटर्जी की यह किताब उनकी कई पहलों का एक पहलू भर है. वह समाज को बेहतर बनाने की जिद के चलते नित नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. उनकी ही प्रेरणा से नोएडा के सेक्टर-12 के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में इंटर जनरेशनल लर्निंग सेंटर (आइजीएलसी) इस मुहिम को साकार रूप देने में लगा है. उनके इस संकल्प को आगे बढ़ाने में सरकारी सेवा से रिटायर हुए कुछ लोग भी शामिल हैं.

जाहिर है, भारत में जहां जीवन-संध्या में आकर लोग हिम्मत हारने लगते हैं वहां यह किताब एक रोशनी की तरह काम करेगी. खासकर यह और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अगले एक दशक में हम अपने डिमोग्राफिक डिविडेंड में से बुढाते हुए लोगों की बढ़ती संख्या देखेंगे. समाज में जिस तरह से न्यूक्लियर परिवारों का चलन बढ़ा है और परिवार नाम की संस्था में बुजुर्गों का दखल कम हुआ है, ऐसे में यह किताब मौजूदा बुजुर्गों और भावी बुजुर्गों के लिए बेहतरीन साबित होगी. फिलहाल, यह किताब अंग्रेजी में है और इसका हिंदी संस्करण अधिक लोगों तक एक अच्छी बात पहुंचा सकेगा.किताबः हेल्थ ऐंड वेल बीइंग इन लेट लाइफः पर्सपेक्टिव्स ऐंड नैरेटिव्स फ्रॉम इंडिया

लेखकः डॉ. प्रसून चटर्जी

कीमतः ओपन एक्सेस (कीमत का उल्लेख नहीं)

प्रकाशकः स्प्रींगर ओपन

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