देवघर के बाबा मंदिर का इतिहास-भूगोलः भाग एक
मेरे मधुपुर का जिला होता है देवघर. देवघर जिला तो बहुत बाद में बना है पर इसका इतिहास बेहद पुराना है. पहले यह संताल परगना का हिस्सा था और उससे भी पहले वीरभूम का. उसकी चर्चा आगे की किसी पोस्ट में करुंगा, पर अभी चर्चा देवघर की उन वजहों से, जिसका लिए यह धाम मशहूर है. बाबा बैद्यनाथ. महादेव के इस मंदिर की गिनती बारह ज्योतिर्लिंगों में की जाती है. हालांकि, इससे मिलते जुलते नामों वाले शिवमंदिरों ने अलग दावा जताया है, मसलन महाराष्ट्र में वैद्यनाथ और उत्तराखंड में बैजनाथ महादेव ने. लेकिन ऐतिहासिक प्रमाण तो रावणेश्वर बैद्यनाथ के पक्ष में ही जाते हैं.
इस लिहाज से, हालांकि मानव विज्ञानी अलग ढंग से इसकी व्याख्या करेंगे और शायद इतिहासकार अलग ढंग से. पर, जब हम देवघर और आसपास के इलाकों फैले तीर्थस्थानों की ठीक से, और बारीकी से विवेचना करेंगे तो इसमें इतिहास और मानव विज्ञान के साथ अलग-अलग दृष्टिकोणों को एकसाथ मिलाकर देखना होगा.
शायद देवघर की चर्चा करते समय, हमें भारत विज्ञानियों, प्राच्यशास्त्रियों और मूर्तिकला विशेषज्ञों की राय को भी शामिल करना होगा. क्योंकि वे हमें हिंदू तीर्थों की महत्ता को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने का नजरिया प्रदान करते हैं. इनमें भारत विज्ञानी (इंडोलजिस्ट) और प्राच्यशास्त्री (ओरिएंटलिस्ट) खासतौर पर पौराणिक या लिखित उद्भव, इतिहास, मान्यताओं और मिथकों की तरफ ध्यान दिलाते हुए इसका ब्यौरा देते हैं. इसी तरह मूर्तिकला के विशेषज्ञ शिल्प शास्त्र की बारीकियों के जरिए कथासूत्र पकड़ने की कोशिश करते हैं.
पर जाहिर है मानव विज्ञानी बस्तियों की बसाहट और परंपराओं के बारे में लिखकर पड़ताल करते हैं. मेरी कोशिश रहेगी कि झारखंड के देवघर के बैद्यनाथ मंदिर के बारे में विभिन्न स्रोतों से (और कथाओं से) हासिल सूत्रों को इकट्ठा कर आपके सामने रखूं.
दिलचस्प यह होता है कि ऐसे तीर्थस्थलों के बारे में पढ़ते और लिखते समय आपको ऐसे सूत्र मिलते हैं कि आप इन केंद्रों को सभ्यता के विशद केंद्रों के बारे में जानते हैं. खासकर मेरा जुड़ाव देवघर से इसलिए भी अधिक रहा है क्योंकि तीसेक किलोमीटर दूर शहर मधुपुर मेरी जन्मस्थली है और देवघर का मंदिर हमारा साप्ताहिक आने-जाने का केंद्र रहा.
देवघर जैसे धार्मिक आस्था के केंद्रों की खासियत रही है कि इसने सदियों से लोगों को जाति, नस्ल, आर्थिक स्थिति, भौगोलिक दूरी और भाषायी दूरियों से परे आसपास के लोगों को जोड़ने का काम किया है. एस. नारायण और एल.पी. विद्यार्थी जैसे मानव शास्त्रियों ने देवघर के पुण्य क्षेत्र को विभिन्न जोन, सब-जोन और खंडों में बांटा है. इसमें कई मंदिरों के समूह भी हैं. नारायण ने बैद्यनाथेश्वर क्षेत्र को दो सब-जोन में बांटा हैः बैद्यनाथ और बासुकीनाथ.
दोनों ही महादेव मंदिरों ने अपने आस-पास के इलाकों में अपने स्वतंत्र श्रद्धा तंत्र विकसित कर लिए हैं. परंतु जानने वाले जानते हैं कि इस इलाके में श्रद्धा के केंद्र हैं, इसमें तीसरा केंद्र अजगैवीनाथ हैं. इन इलाकों को पुनः सब-क्षेत्रों में बांटा जा सकता है. हालाकि विद्यार्थी के अध्ययन में इससे छोटे खंडों और मंदिर समूहों की भी चर्चा है. उनके अध्ययन में 1969-71 के बीच इस इलाके में 95 मंदिर समूह पाए गए हैं. अगर हम इस जोन में सुल्तानगंज को भी जोड़ लें तो मंदिर समूहों की संख्या और अधिक बढ़ जाएगी. हालांकि, कांवर यात्रा के मार्ग के हिसाब से वर्गीकरण किया जाए ( गंगातट पर सुलतानगंज (बिहार) से लेकर बाबाधाम और बासुकीनाथ तक) तो अलग मंदिर समूह और जोन उभरकर आएंगे.
सुल्तानगंज में गंगा का जल लेकर चले कांवरिया देवघर में वह जल चढ़ाते हैं और उनमें से कुछ लोग थोड़ा गंगाजल बचाकर बासुकीनाथ तक जाते हैं और वहां जाकर उनकी यात्रा पूरी होती है. इस संदर्भ में, यह मंदिर क्षेत्र सुल्तानगंज से बासुकीनाथ तक माना जा सकता है. हालांकि बैद्यनाथ, बासुकीनाथ और अजगैवीनाथ मंदिरों का अपना स्वतंत्र श्रद्धा क्षेत्र है पर उनको सांस्कृतिक दृष्टि से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि पौराणिक दृष्टि और सांस्कृतिक परंपराओं क लिहाज से यह एक जैसे ही हैं. सभी कांवरिया सुल्तानगंज (अजगैवीनाथ) से जल उठाते हैं और बैद्यनाथ और बासुकीनाथ पर उनको चढ़ाया जाता है.
पर यहां पर थोड़ा अंतर है. ऐसे श्रद्धालु जो बासुकीनाथ आते हैं उन्हें बैद्यनाथ जाना ही पड़ता है. पर बैद्यनाथ आने वाले बासुकीनाथ भी जाएं ऐसी कोई धार्मिक बाध्यता नहीं है. अगर भौगोलिक दृष्टि से बात करें तो इस पवित्र सर्किट में, बुढ़ै, काठीकुंड, चुटोनाथ (दुमका के पास), मालुती, पाथरोल, बस्ता पहाड़ और पथरगामा में योगिनी स्थान शामिल हैं. और इस पूरे सर्किट में बैद्यनाथ धाम देवघर का महादेव मंदिर केंद्रीय स्थान रखता है.
जारी...
मेरे मधुपुर का जिला होता है देवघर. देवघर जिला तो बहुत बाद में बना है पर इसका इतिहास बेहद पुराना है. पहले यह संताल परगना का हिस्सा था और उससे भी पहले वीरभूम का. उसकी चर्चा आगे की किसी पोस्ट में करुंगा, पर अभी चर्चा देवघर की उन वजहों से, जिसका लिए यह धाम मशहूर है. बाबा बैद्यनाथ. महादेव के इस मंदिर की गिनती बारह ज्योतिर्लिंगों में की जाती है. हालांकि, इससे मिलते जुलते नामों वाले शिवमंदिरों ने अलग दावा जताया है, मसलन महाराष्ट्र में वैद्यनाथ और उत्तराखंड में बैजनाथ महादेव ने. लेकिन ऐतिहासिक प्रमाण तो रावणेश्वर बैद्यनाथ के पक्ष में ही जाते हैं.
देवघर के बाबा मंदिर का परिसर. फोटो सौजन्य कन्हैया श्रीवास्तव |
इस लिहाज से, हालांकि मानव विज्ञानी अलग ढंग से इसकी व्याख्या करेंगे और शायद इतिहासकार अलग ढंग से. पर, जब हम देवघर और आसपास के इलाकों फैले तीर्थस्थानों की ठीक से, और बारीकी से विवेचना करेंगे तो इसमें इतिहास और मानव विज्ञान के साथ अलग-अलग दृष्टिकोणों को एकसाथ मिलाकर देखना होगा.
शायद देवघर की चर्चा करते समय, हमें भारत विज्ञानियों, प्राच्यशास्त्रियों और मूर्तिकला विशेषज्ञों की राय को भी शामिल करना होगा. क्योंकि वे हमें हिंदू तीर्थों की महत्ता को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने का नजरिया प्रदान करते हैं. इनमें भारत विज्ञानी (इंडोलजिस्ट) और प्राच्यशास्त्री (ओरिएंटलिस्ट) खासतौर पर पौराणिक या लिखित उद्भव, इतिहास, मान्यताओं और मिथकों की तरफ ध्यान दिलाते हुए इसका ब्यौरा देते हैं. इसी तरह मूर्तिकला के विशेषज्ञ शिल्प शास्त्र की बारीकियों के जरिए कथासूत्र पकड़ने की कोशिश करते हैं.
पर जाहिर है मानव विज्ञानी बस्तियों की बसाहट और परंपराओं के बारे में लिखकर पड़ताल करते हैं. मेरी कोशिश रहेगी कि झारखंड के देवघर के बैद्यनाथ मंदिर के बारे में विभिन्न स्रोतों से (और कथाओं से) हासिल सूत्रों को इकट्ठा कर आपके सामने रखूं.
दिलचस्प यह होता है कि ऐसे तीर्थस्थलों के बारे में पढ़ते और लिखते समय आपको ऐसे सूत्र मिलते हैं कि आप इन केंद्रों को सभ्यता के विशद केंद्रों के बारे में जानते हैं. खासकर मेरा जुड़ाव देवघर से इसलिए भी अधिक रहा है क्योंकि तीसेक किलोमीटर दूर शहर मधुपुर मेरी जन्मस्थली है और देवघर का मंदिर हमारा साप्ताहिक आने-जाने का केंद्र रहा.
देवघर जैसे धार्मिक आस्था के केंद्रों की खासियत रही है कि इसने सदियों से लोगों को जाति, नस्ल, आर्थिक स्थिति, भौगोलिक दूरी और भाषायी दूरियों से परे आसपास के लोगों को जोड़ने का काम किया है. एस. नारायण और एल.पी. विद्यार्थी जैसे मानव शास्त्रियों ने देवघर के पुण्य क्षेत्र को विभिन्न जोन, सब-जोन और खंडों में बांटा है. इसमें कई मंदिरों के समूह भी हैं. नारायण ने बैद्यनाथेश्वर क्षेत्र को दो सब-जोन में बांटा हैः बैद्यनाथ और बासुकीनाथ.
दोनों ही महादेव मंदिरों ने अपने आस-पास के इलाकों में अपने स्वतंत्र श्रद्धा तंत्र विकसित कर लिए हैं. परंतु जानने वाले जानते हैं कि इस इलाके में श्रद्धा के केंद्र हैं, इसमें तीसरा केंद्र अजगैवीनाथ हैं. इन इलाकों को पुनः सब-क्षेत्रों में बांटा जा सकता है. हालाकि विद्यार्थी के अध्ययन में इससे छोटे खंडों और मंदिर समूहों की भी चर्चा है. उनके अध्ययन में 1969-71 के बीच इस इलाके में 95 मंदिर समूह पाए गए हैं. अगर हम इस जोन में सुल्तानगंज को भी जोड़ लें तो मंदिर समूहों की संख्या और अधिक बढ़ जाएगी. हालांकि, कांवर यात्रा के मार्ग के हिसाब से वर्गीकरण किया जाए ( गंगातट पर सुलतानगंज (बिहार) से लेकर बाबाधाम और बासुकीनाथ तक) तो अलग मंदिर समूह और जोन उभरकर आएंगे.
सुल्तानगंज में गंगा का जल लेकर चले कांवरिया देवघर में वह जल चढ़ाते हैं और उनमें से कुछ लोग थोड़ा गंगाजल बचाकर बासुकीनाथ तक जाते हैं और वहां जाकर उनकी यात्रा पूरी होती है. इस संदर्भ में, यह मंदिर क्षेत्र सुल्तानगंज से बासुकीनाथ तक माना जा सकता है. हालांकि बैद्यनाथ, बासुकीनाथ और अजगैवीनाथ मंदिरों का अपना स्वतंत्र श्रद्धा क्षेत्र है पर उनको सांस्कृतिक दृष्टि से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि पौराणिक दृष्टि और सांस्कृतिक परंपराओं क लिहाज से यह एक जैसे ही हैं. सभी कांवरिया सुल्तानगंज (अजगैवीनाथ) से जल उठाते हैं और बैद्यनाथ और बासुकीनाथ पर उनको चढ़ाया जाता है.
पर यहां पर थोड़ा अंतर है. ऐसे श्रद्धालु जो बासुकीनाथ आते हैं उन्हें बैद्यनाथ जाना ही पड़ता है. पर बैद्यनाथ आने वाले बासुकीनाथ भी जाएं ऐसी कोई धार्मिक बाध्यता नहीं है. अगर भौगोलिक दृष्टि से बात करें तो इस पवित्र सर्किट में, बुढ़ै, काठीकुंड, चुटोनाथ (दुमका के पास), मालुती, पाथरोल, बस्ता पहाड़ और पथरगामा में योगिनी स्थान शामिल हैं. और इस पूरे सर्किट में बैद्यनाथ धाम देवघर का महादेव मंदिर केंद्रीय स्थान रखता है.
जारी...
उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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