आज से कोई 9 करोड़ साल पहले से भारत की प्लेट यूरेशिया के प्लेट से टक्कर खा रही थी. 5.5 करोड़ साल पहले यह टक्कर तेज हो गई. अपन तो इंडियन हैं तो अपन ने ऐसा धक्का दिया यूरेशियन प्लेट को, कि वह उछल गई. हिमालय और तिब्बत का पठार बन गया इस धक्के से. फटाकदेनी से नहीं बना, एकदम स्लो-स्लो बना. एकदम सरकती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता-आहिस्ता की तर्ज पर.
एक गांठ-सी बन गई यूरेशिया के निचले हिस्से में, पामीर गांठ बोलते हैं इसको. अंग्रेजी वाले व्याकुल न हो, पामीर नॉट पढ़ें आप. वहां से बहुत सारी पर्वत श्रेणियां निकलीं. हिंदूकुश, सुलेमान, काराकोरम, हिमालय और अकारान योमा.
भारतीय प्लेट और यूरेशियाई प्लेट के बीच में समंदर था एक. नाम था टेथिस सागर. अब उसकी तली ऊपर आ गई. जो कभी नीचे होता है उसका ऊपर आना तय है. आखिर, 1985 में 2 सीट पर सिमटी भाजपा 2014 में 273 और 2019 में 303 लोकसभा सीट जीती या नहीं! बस इसलिए लिए निरंतरता चाहिए होती है.
तो टेथिस सागर का एक हिस्सा ऊपर उठता गया. आप भरोसा करिए कि हिमालय की एकदम आसमान को चुम्मा लेती चोटियों पर मछली के जीवाश्म मिले हैं. अब मछली चोटी पर कैसे चढ़ी होगी, इसको ईश्वर का चमत्कार न मानकर सीधे-सीधे यह मानिए कि यह प्लेट विवर्तनिकी (प्लेट टेक्टोनिक्स) का कमाल है. इसकी दूसरी मिसाल, हिमालयी इलाकों में चूना-पत्थर चट्टानों की खदानों का होना है. तीसरी मिसाल, हिंदुकुश रेंज में नमक का निक्षेप है. आप जो व्रत में शुद्ध सेंधा नमक खाते हैं असल में वह खदानों से निकाला जाने वाला रासायनिक रूप से अशुद्ध नमक है. खैर, अब चूना पत्थर कैसे बनता है और नमक का निक्षेप कैसे होता है इसके बारे में विस्तार से बताने के लिए हम निःशुल्क उपलब्ध ‘नहीं’ हैं.
बहरहाल, उत्तर की तरफ बढ़ने का क्रम अभी भी रुका नहीं है. अपन अभी भी यूरेशियन प्लेट को उधर धकेल रहे हैं. जिद्दी हैं हमलोग.
वैसे, मोटे तौर पर भूगोल पढ़े लोगों को मेरी अभी तक की बात में ज्यादा विवाद नजर नहीं आएगा क्योंकि दुनिया भर के भूगोलज्ञ यही सिद्धांत मानते हैं. लेकिन, कुछ लोग वैज्ञानिकों की बात भी नहीं मानते, जब तक उसको बोल्ड और इटेलिक्स में व्हॉट्सऐप पर उनके गांव के चाचा न फॉरवर्ड न करे कि पिछले 70 साल में हमने कुछ नहीं किया और अब देखो, भारतीय प्लेट यूक्रेन को रूस की तरफ धकेल रही हैं. ऐसा मेसेज आएगा, लोग तभी मानेंगे. जा रे जमाना.
लेकिन, मजाक परे. इस सिद्धांत में कुछ अपवाद भी हैं. हमारे गुरुजी पटना वाले आरबी सिंह ने अपनी चवन्नी मुस्कान के साथ कहा थाः “अगर यह सिद्धांत एकदम खरंटन (सौ टका टंच) है तो गुजरात के कॉम्बे शेल में सूरत से 30 किमी उत्तर वास्तान में बड़ी संख्या में कीटों के जीवाश्म कैसे मिले हैं.”
बात सच है, क्योंकि एकाध नहीं हैं ये. 55 कीट फैमिली के 700 स्पीशीज के कीट हैं. अब इन कीटों की समानता एकदम दूरदराज के इलाके स्पेन में पाए जाने वाले कीटों से है. अब अगर उत्तर की तरफ महाद्वीप के खिसकने के सिद्धांत को माने तो इसका एक मतलब यह हुआ कि अपना इंडिया, करोड़ों साल से इस प्लेट से अलग रहा होगा और मेडागास्कर से भी अलग होने के बाद तैरकर यूरेशिया से सटने में इसको काफी वक्त लगा होगा. और खासकर उस वक्त तो भारतीय भूखंड एकदम अलग-थलग रहा होगा जब कीटों की विकास हो रहा था.
तो टेथिस सागर का एक हिस्सा ऊपर उठता गया. आप भरोसा करिए कि हिमालय की एकदम आसमान को चुम्मा लेती चोटियों पर मछली के जीवाश्म मिले हैं. अब मछली चोटी पर कैसे चढ़ी होगी, इसको ईश्वर का चमत्कार न मानकर सीधे-सीधे यह मानिए कि यह प्लेट विवर्तनिकी (प्लेट टेक्टोनिक्स) का कमाल है. इसकी दूसरी मिसाल, हिमालयी इलाकों में चूना-पत्थर चट्टानों की खदानों का होना है. तीसरी मिसाल, हिंदुकुश रेंज में नमक का निक्षेप है. आप जो व्रत में शुद्ध सेंधा नमक खाते हैं असल में वह खदानों से निकाला जाने वाला रासायनिक रूप से अशुद्ध नमक है. खैर, अब चूना पत्थर कैसे बनता है और नमक का निक्षेप कैसे होता है इसके बारे में विस्तार से बताने के लिए हम निःशुल्क उपलब्ध ‘नहीं’ हैं.
बहरहाल, उत्तर की तरफ बढ़ने का क्रम अभी भी रुका नहीं है. अपन अभी भी यूरेशियन प्लेट को उधर धकेल रहे हैं. जिद्दी हैं हमलोग.
वैसे, मोटे तौर पर भूगोल पढ़े लोगों को मेरी अभी तक की बात में ज्यादा विवाद नजर नहीं आएगा क्योंकि दुनिया भर के भूगोलज्ञ यही सिद्धांत मानते हैं. लेकिन, कुछ लोग वैज्ञानिकों की बात भी नहीं मानते, जब तक उसको बोल्ड और इटेलिक्स में व्हॉट्सऐप पर उनके गांव के चाचा न फॉरवर्ड न करे कि पिछले 70 साल में हमने कुछ नहीं किया और अब देखो, भारतीय प्लेट यूक्रेन को रूस की तरफ धकेल रही हैं. ऐसा मेसेज आएगा, लोग तभी मानेंगे. जा रे जमाना.
लेकिन, मजाक परे. इस सिद्धांत में कुछ अपवाद भी हैं. हमारे गुरुजी पटना वाले आरबी सिंह ने अपनी चवन्नी मुस्कान के साथ कहा थाः “अगर यह सिद्धांत एकदम खरंटन (सौ टका टंच) है तो गुजरात के कॉम्बे शेल में सूरत से 30 किमी उत्तर वास्तान में बड़ी संख्या में कीटों के जीवाश्म कैसे मिले हैं.”
बात सच है, क्योंकि एकाध नहीं हैं ये. 55 कीट फैमिली के 700 स्पीशीज के कीट हैं. अब इन कीटों की समानता एकदम दूरदराज के इलाके स्पेन में पाए जाने वाले कीटों से है. अब अगर उत्तर की तरफ महाद्वीप के खिसकने के सिद्धांत को माने तो इसका एक मतलब यह हुआ कि अपना इंडिया, करोड़ों साल से इस प्लेट से अलग रहा होगा और मेडागास्कर से भी अलग होने के बाद तैरकर यूरेशिया से सटने में इसको काफी वक्त लगा होगा. और खासकर उस वक्त तो भारतीय भूखंड एकदम अलग-थलग रहा होगा जब कीटों की विकास हो रहा था.
लद्दाख में पेगॉन्ग झील पर फोटो खिंचवाने की आड़ी मुद्रा |
छोड़िए, थोड़ी देर के लिए हम क्या यह मान सकते हैं कि भारत यूरेशिया से जिस समयावधि में टकराया, हम उसको कम आंक रहे हों. क्या पता!
वैसे, प्लेटों के टकराव से इस इलाके में पहले से मौजूद नदियों के रास्ते बदले होंगे. मसलन, सिंधु नदी. सिंधु हिमालय से पहले की नदी है और इसलिए इसके रास्ते में क्या बदलाव आए होंगे इस पर हमको विचार करना चाहिए.
लेकिन इसी दौरान भारत की सबसे नई भूवैज्ञानिक संरचना का विकास हो रहा था. और यह था गंगा का मैदान. हिमालय और विध्यांचल के बीच का टेथिस सागर मलबा भरते-भरते दलदली जमीन जैसा रह गया था. क्या पता दिनानुदिन बढ़ रही लवणता से इस टेथिस सागर में झाग अधिक होता हो और संभवतया इसी को हिंदू परंपरा में (कृपया माइथोलजी का इस्तेमाल न करें) क्षीर सागर कहा गया होगा.
लेकिन, यह हिमालय के मलबे और गंगा के अपवाह तंत्र की विभिन्न नदियों ने मलबे से वैसे ही भर दिया जैसे वाम दलों के वोटबैंक को तृणमूल और भाजपा ने अपने वोटबैंक से भर दिया. धीरे-धीरे टेथिस सागर गायब हो गया और इसके निशान भी नहीं बचे.
(निशान नहीं बचे, ऐसा मैं वामदलों के संबंध में नहीं कह सकता. वह एक राज्य और कुछ छात्रसंघों में अभी भी अस्तित्व में है)
वैसे, गंगा एकमात्र जगह विंध्याचल से मिलती है. यानी विंध्याचल ही गंगा को दक्षिण की तरफ बढ़ने से रोकता है. और यह जगह है चुनार.वैसे, प्लेटों के टकराव से इस इलाके में पहले से मौजूद नदियों के रास्ते बदले होंगे. मसलन, सिंधु नदी. सिंधु हिमालय से पहले की नदी है और इसलिए इसके रास्ते में क्या बदलाव आए होंगे इस पर हमको विचार करना चाहिए.
लेकिन इसी दौरान भारत की सबसे नई भूवैज्ञानिक संरचना का विकास हो रहा था. और यह था गंगा का मैदान. हिमालय और विध्यांचल के बीच का टेथिस सागर मलबा भरते-भरते दलदली जमीन जैसा रह गया था. क्या पता दिनानुदिन बढ़ रही लवणता से इस टेथिस सागर में झाग अधिक होता हो और संभवतया इसी को हिंदू परंपरा में (कृपया माइथोलजी का इस्तेमाल न करें) क्षीर सागर कहा गया होगा.
लेकिन, यह हिमालय के मलबे और गंगा के अपवाह तंत्र की विभिन्न नदियों ने मलबे से वैसे ही भर दिया जैसे वाम दलों के वोटबैंक को तृणमूल और भाजपा ने अपने वोटबैंक से भर दिया. धीरे-धीरे टेथिस सागर गायब हो गया और इसके निशान भी नहीं बचे.
(निशान नहीं बचे, ऐसा मैं वामदलों के संबंध में नहीं कह सकता. वह एक राज्य और कुछ छात्रसंघों में अभी भी अस्तित्व में है)
अरे वही चुनार, जिसका जिक्र चंद्रकांता संतति में है. और जिस सीरियल में क्रूर सिंह बने थे अपने अखिलेंद्र मिश्रा. यक्कू.
खैर, यह जानना दिलचस्प होगा कि भारतवर्ष, भले ही तब आधुनिक राष्ट्र न रहा हो, पर यहां इंसान आकर कैसे बसे? क्या हम मनु और शतरूपा, आदम और हव्वा, एडम और ईव... पिलचू हड़ाम और पिलचू बूढ़ी की सीधी संतानें हैं और यहीं पैदा हुए? या अपन कहीं और से आए? हम आए तो कैसे-कैसे आए? और आर्य कौन हैं और कब आए. लिखेंगे फिर कभी.
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